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बुधवार, 24 मार्च 2010

रास आईलेंड :जहाँ आज भी गूंजती है स्वतंत्रता सेनानियों की आवाजें

     रास आईलेंड :जहाँ आज भी गूंजती है 
           स्वतंत्रता सेनानियों  की आवाजें 
अंदमान निकोबार कि राजधानी पोर्ट ब्लेयर के पूर्व दिशा में स्थित एबदीन जट्टी से लगभग आठ सो मीटर कि समुद्री कि दूरी पर एक छोटा सा द्वीप है,जिसे रास  आईलेंड  के नाम से जाना जाता है .जिसका कुल क्षेत्रफल है 0 .6 वर्ग किलोमीटर अर्थात ०.१३ मील.जिसका अधिकांश  भाग जंगलों से घिरा हुआ है. जब पर्यटक १५ से २० मिनट कि समुद्री यात्रा कर के इस द्वीप पर पहुचाते हैं तो उन्हें लगता है कि यहाँ पर जीवन है ही नहीं.क्योंकि वहाँ पर इंसानों के रहने का कोई संकेत ही नहीं मिलता है.अंदमान सरकार ने इस द्वीप पर किसी के भी न रहने का निर्देश दिया है.यही कारण है कि सूरज ढलने के पहले ही द्वीप कि खाली करवा लिया जाता है.कहते हैं कि इस द्वीप कि भव्यता के चलते कुछ दशक  पहले तक इसे " पूरब का पेरिस " कहा  जाता था
 .कालांतर में यह द्वीप (रास  आईलेंड )ब्रिटिश हुकूमत का एक हिस्सा हुआ करता था.जहाँ से अंग्रेज अधिकारी सेल्युलर  जेल (काला पानी) में सजा कट रहे स्वतंत्रता सेनानियों पर अपनी पेनी निगाह रखते थे.इतिहास के पन्नो कों पलटें तो इस बात का पता चलता है कि रास आईलेंड भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों कों दंड देने का मुख्य कारावास भी था.जब आप रास आईलेंड पर पानी के जहाज से उतरेंगे तो सबसे पहले जापानियों द्वारा बनाया गया बनकर दिखाई देगा,उससे थोडा आगे बढ़ने पर ब्रिटिश सेना के अधिकारियों का मनोरंजन क्लब ,उससे थोडा आगे बड़ने पर सैन्य अधिकारियों एवम उनकी गोरी मेमो के स्नान करने के लिए तरन ताल (स्विमिंग पुल)दिखाई देगा.वहाँ से थोडा आगे बदने पर आपको पानी शुद्धिकरण प्लांट ,उसके आगे जनरेटर प्लांट के अवशेष दिखाई देंगे.वहीँ से आप दाहिने कि ओर मुड़ जाएँ  तो सामने आप कों ऊपर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में गिरजा घर के अवशेष दिखाई देंगे ,जो इतिहास कि गवाही देते हैं.गिरजा घर के कई हिस्से क्षतिग्रस्त हो चुकें है .उसके बगल में आप कों एक पुराना भवन दिखाई देगा,जिसे अंगरेजों का सचिवालय बताते है.सचिवालय के बगल में ही टेनिस कोर्ट ,छपाईखाना ,अस्पताल आदि कि टूटी फूटी इमारतें अपने अतीत कि गवाही देती मिलेंगी.गिरजाघर के ठीक पीछे अंगरेजों कि कब्रगाह है,जिन पर लगे शिलापट्टो से पता चलता है कि कब -कब कोन से अधिकारी वहा दफनाये गए थे.गिरजा घर के पास ही उनके लिए मनोरंजन घर बना हुआ है,जिसे नाच घर के नाम से जाना जाता है, जिसकी छत तो अब नहीं है लेकिन सीमेंट कि बेंच आज भी  अपने अस्तित्व कि गवाही देती हैं.इस आइलैंड पर अंग्रेज अधिकारियों के आवासों के अलावा बाजार-हाट भी हुआ करते थे.जिसके अवशेष आज भी विधमान हैं.
कहते हैं कि सन 1788 -89 आर्कबाल्ड नामक एक अंग्रेज अधिकारी अंदमान-निकोबार द्वीप समूह का दौरा करने के बाद पोर्ट ब्लेयर के उत्तरी दिशा में स्थित दिगलीपुर से पूर्व में कार्नवालिस पोर्ट कों आवासीय स्थल के रूप में विकसित किया.उसने इस द्वीप पर अस्पताल एवम कब्रगाह बनवाई,लेकिन सन 1796 में आद्रता कि मात्र इस द्वीप  पर बढ जाने के करण आम लोगों के  द्वीप  आने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया. लगभग छह दशक के बाद सन 1857 में जब ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ आन्दोलनकारियों ने बिगुल बजाया,तब उन आन्दोलनकारियों क कला पानी की सजा के लिए पोर्ट ब्लेयर भेजा गया.उस समय यह छोटासा द्वीप ही था,उसी दौरान अंग्रेज सरकार ने रास आई लेंड को नवम्बर 1857 में स्वतंत्रता सेनानियों के लिए कारावास के रूप में उपयोग करना शुरू कर दिया था.उन दिनोंवहाँ पर दो तरह के कैदियों कों रखा जाता था .एक वे कैदी होते थे जो ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बगावत का बिगुल बजा रहे थे तथा दूसरे वे जो बगावत के सन्दर्भ में मुखबिरी करते थे.बताते हैं कि दो माह बाद ही अंग्रेजों ने 1858 में पोर्ट बेलेयर के आस-पास के तीन अन्य द्वीपों पर भी अपना अधिपत्य कर लिया.उन्ही दिनों वहाँ पर एक अंग्रेज इंजिनियर के.एच .मन ने " यूनियन जैक " का झंडा फहराया .बाद में सेल्युलर जेल के अधिक्षक जे .पी.वाकर ने अपने 14 यूरोपियन अधिकारियों ,एक भारतीय निगरानी करता ,दो डाक्टर 50 नाविकों एवं कुछ सुरक्षा कर्मियों के साथ लगभग 773 स्वतंत्रता सेनानियों कों लेकर पोर्ट बेलेयर पहुंचे,उन दिनों पोर बेलेयर में पानी कि काफी किल्लत थी,जिसके चलते उसे पोर बेलेयर छोड़ कर रास आईलेंड में शरण  लेनी पड़ी.उल्लेखनीय है कि जलपोत पर्वेक्षक सर ड़ोनियल रास ने ही इस द्वीप पर पहल जेल बनवाया था.उन्ही के नाम पर इस द्वीप का नाम रास आईलैंड पड़ा.सर ड़ोनियलरास ने सबसे पहले स्वतंत्रता सेनानियों कों घास -फूँस कि झोपड़ियों में रखा. बाद में उन स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने अथक परिश्रम से द्वीप पर माकन,कार्यालय व बेरेक आदि बनाये.उन स्वतंत्रता सेनानियों के कार्य दक्षता कों देखते हुए अंगरेजों ने उन्हें वाइपर द्वीप पर स्थान्तरित कर दिया .बताते हैं कि आगे चल कर रास आईलेंड पर दंडाधिकारियों के लिए भवन आदि बनवाये गए, जिसके अवशेष आज भी विधमान हैं.पूरा का पूरा बाज़ार ,घर आदि के खँडहर इस बात कि गवाही देते हैं कि कभी यहाँ कि इमारतें बुलंद थी, जिन पर पेड -पोधे  उग आये हैं.
सन 1872 में अंग्रेज हुकूमत ने अपने प्रशासनिक विभाग में फेर बदल करते हुए अधीक्षक पद कों पदोन्नति देते हुए उसे मुख्य आयुक्त का ओहदा दे दिया . जिस पर सबसे पहले सर डोनाल्ड मार्टिन स्टीवर्ट नामक एक अंग्रेज अधिकारी बैठा .बताते हैं कि सर स्टीवर्ट एक साल तक रास आईलेंड पर ही रहे.उनके बाद 24 मुख्य आयुक्तों ने रास आईलेंड पर रह कर काम किया लेकिन चार्ल्स फ्रांसिस वाटरफाल के कार्यकाल के दौरान ही रास आइलें से अंग्रेजों कि हुकूमत खत्म होने लगी.कयोंकि सन 1938 में जब उन्हें मुख्य आयुक्त नियुक्त किया गया तो इसी बीच मार्च 1942 में जापानियों ने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अंदमान और निकोबार पर कब्ज़ा कर लिया.कब्ज़ा होते ही जापानी अधिकारियों ने सबसे पहले सर वाटर फाल कों अपनी हिरासत में लिया,इसी बीच उनके निकट सहयोगी उपायुक्त मेजर बर्ड कों जापानी सेना ने पोर्ट  ब्लेयर के मुख्य बाज़ार एबरदीन क्लाक टावर के पास गिरफतार कर बंदी बना लिया.मार्च 1942  से अक्तूबर 1945  तक रास आईलेंड जापानी एडमिरल का सरकारी आवास बना रहा .इसी दौरान भारत कि स्वतंत्रता  कों लेकर नेताजी सुभास चन्द्र  बोस ने जापानियों की थी इसलिए सन 1943 की दिसंबर माह में नेताजी ने रास आईलेंड के सरकारी आवास पर भारतीय तिरंगा फहराया था.दूसरे उध के बाद एक बार फिर से रास आईलेंड अन्गेरेजी हुकूमत के अधीन आ गया,लेकिन इस बार अंग्रेज अधिकारियों ने इस द्वीप की ओर मुड़कर नहीं देखा.विश्व युद्ध खत्म हने के 9  माह बाद भूकंप के कई झटके इस द्वीप ने सहे.द्वीप जापानियों के कब्जे में था,उनहोने ने भी इसे छोड़देना मुनासिब समझा.फिर यहीं से शुरु हो गई  रास आईलेंड के पतन की कहानी. समय के थपेड़ों ने "पूरब का पेरिस "कहे जाने वाले इस द्वीप कों अपने आगोश में लेना शुरु कर दिया.आज भी इस द्वीप पर अंगरेजों की क्रूरता के निशान ,बंदी भर्ती स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा बनाये गए भवनों के अवशेष इतिहाश की गवाही देते हैं.आप कों इस द्वीप पर बन्दर, हिरण के अलावा अन्य कोई जानवर नहीं दिखाई देंगे.हाँ वहाँ पर आप कों चिड़ियों की चह-चाहट जरुर सुनाई देगी.बंगाल की खड़ी के बीच बसे इस द्वीप पर आप कों कौवे भी दिख जायेंगे .
सन 1979 के अप्रेल माह मे भारतीय नौ सेना ने रास आईलेंड कों अपने कब्जे में ले लिया.दिसंबर 1993 में भारत सरकार एवम अंदमान प्रशासन ने इस आईलेंड पर एक छोटे से संग्रहालय "स्मृतिका" की स्थापना की. जसमे अंग्रेजों के क्रूरता के साथ-साथ ब्रिटिश हुकूमत द्वारा अंग्रेजी में लिखे गए पत्रों की मूल प्रतियाँ संजोकर रखी हुई  है.अब इस द्वीप पर सूरज ढलने के बाद किसी कों भी रुकने की इजाजत नहीं है,यहाँ तक की नौ सेना के जवानों कों भी नहीं.  शाम चार बजे इस द्वीप से अंतिम बोट (छोटी जहाज) पोर्ट बेलेयर के लिए वापस लौटता है जिसमे पर्यटकों के साथ-साथ ड्यूटी पर तैनात सेना के जवान भी वापस लौट जाते हैं.इसके पीछे बताते हैं कि आज भी अँधेरा होते ही इस द्वीप पर शहीद स्वतंत्रता सेनानियों एवम  क्रूर अंग्रेजों क़ी भयानक आवाजें गूंजती हैं. कहते तो यहाँ तक हैं कि आधी रात के बाद किसी के नाचने कि आवाजें भी आती हैं .दिन में भी द्वीप पर सन्नाटा छाया रहता है . बात जो भी हो अगर आप अंदमान जाएँ तो " रास आईलेंड" पर जरुर जाएँ .जहाँ पर आप कों भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के साथ गोरों द्वारा किये गए अत्याचारों कि दास्तान आप कों स्वयं  महसूस कराएगी.
दूरी        :    1200 किलोमीटर हवाई दूरी.
कैसे पहुंचे:    पोर्ट ब्लेयर  से रास आईलेंड (द्वीप) के लिए अंदमान प्रसाशन द्वार छोटे जहाज चलाये जाते हैं.
                  पोर्ट ब्लेयर के लिए चेन्नई व कोलकत्ता से सीधी हवाई सेवा उपलब्ध है.दो घंटे का सफ़र है.
                  विशाखापत्तनम ,चेन्नई एवम कोलकत्ता से पानी के जहाज चलते हैं.जो कम -से-कम 56 घंटे लेता है.           
                                                                                                   प्रदीप श्रीवास्तव 
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1 टिप्पणी:

  1. Pradeep, bahut achchha laga. Tumne mujhe phir se khoj liya. tumhara blog achchha hai. bahut kasee hui jankaaree de rahe ho. chalo ab milte rahenge. han ek sujhav, blog par apne chehre kee photo laga do.

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