कोणार्क का
   "सूर्य मंदिर"  
   पाषाण पर उकेरा 
      एक काव्य
   


कटक ,भुवनेश्वर एवम जगनाथ पूरी की यात्रा करें ओंर कोणार्क का सूर्य मंदिर न देखें तो यह  कोई बात नहीं हुई. कटक का किला देखने के बाद हम लोगों ने कोणार्क जाने का प्लान बनाया.उड़ीसा पर्यटन विभाग से संपर्क किया तो पता चला कि हर सुबह पर्यटन परिसर से कोणार्क एवम जगन्नाथ पूरी के लिये वातानुकूलित एवम गैर वातानुकूलित बसें पर्यटन विभाग चलता है.जो सुबह वहाँ से नौ बजे चलती हैं.हम लोगों ने एक दिन पहले ही टिकट बुक करवा लिया .मेरे साथ मेरी पत्नी ,दोनों बेटियां सृष्टि एवम दृष्टि तथा मेरे मित्र मुकेश सोनी ,उनकी पत्नी , दोनों बेटियाँ नंदिनीएवम गौरी  तथा बेटा ...और मुकेश के दो दोस्तों का परिवार .कुल मिला कर लगभग पंद्रह लोंगों का समूह.दूसरे दिन हम लोग पर्यटन विभाग की बस से कोणार्क के लिये रवाना होते हैं .बस में हमलोगों के अलावा तीन परिवार और है. लगभग आधे घंटे के चलने के बाद हमारे साथ चल रहे गाइड ने बताया कि हम पिपली पहुँचने वाले हैं जो उड़ीसा कि हस्त सिल्प कला के लिये प्रसिद्ध है.सभी ने वहाँ पर खरीददारी की.वहाँ से चल कर कोई पैतालीस मिनट चलने के बाद हम लोग विश्व प्रसिद्ध सूर्य मंदिर के पास पहुंचे.जिसका निर्माण सूर्य के काल्पनिक रथ के रूप में किया गया है.
बस से उतर कर हम सब अपने समूहों में सूर्य मंदिर देखने निकल पड़ते हैं. पुरात्तव विभाग के कार्यालय से टिकट लेने के बाद मंदिर परिसर में प्रवेश करतें हैं,सामने विश्व विख्यात सूर्य मंदिर,जो  गंग वंश के शासकों के कला प्रेम एवम कलानिष्ठा की गौरव गाथा कों आज भी बयाँ कर रहा है. कभी बचपन में गुरु रविन्द्र नाथ टेगौर जी की लिखी वे पंक्तियाँ (जिसे उन्हों ने सूर्य मंदिर के बारे में लिखा था) "यह पत्थरों की भाषा है ,जिसने मनुष्यों की भाषा कों भी शिकस्त दे दी है".याद आने लगी है. यह वही सूर्य मंदिर है जिसे ब्लेक पेगोडा भी कहा जाता है.अगर हम कहें  कि "यह मंदिर स्थापत्य कला का एक बेजोड़ अल्बम है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी .मंदिर प्रांगण में प्रवेश करते ही सामने हाथी क़ी पीठ पर सवार सिंहों कि आकृतियाँ अंकित हैं.सीडियां चढ़ने के बाद एक ही पत्थर कों तराश कर बना विशाल सूर्य मंदिर काल्पनिक रथ के रूप में दिखाई देता है.जिसके चौबीस अलंकृत पहिये भारतीय महीनों के चौबीस पखवाड़ों कों प्रदर्शित करतें हैं.हर चक्के का व्यास 2 .94 मीटर का है.जिनमें बनी आठ-आठ तीलियाँ दिन के आठों पहरों क़ी ओर संकेत करती हैं.सामने की ओर बने रथ कों खींचते सात घोड़े ,सप्ताह के सात दिनों की ओर इंगित करते हैं.कहतें हैं कि इस सुन्दर कलाकृति कों बनाने में बारह वर्ष लगे थे,जिसे बारह हजार कारीगरों ने बना कर तैयार किया था.कहते हैं कि तत्कालीन उत्कल राज्य के इन बारह वर्षों की सारी आया इसके निर्माण में ही खर्च हो गई.मंदिर परिसर में बने इतने विशालकाय पत्थरों कों तराश कर बने अवशेषों कों देख कर आश्चर्य होता है कि समुद्री किनारा  होने के कारण आस-पास कोई पर्वत तो है नहीं.चोकोर परकोटे से घिरे इस मंदिर के तीन ओर ऊँचे-ऊँचे गेट बने हैं .
 मुख्य द्वार पूर्व दिशा की ओर है,जिसके ठीक सामने समुद्र ,जहाँ से उगते सूर्य कों देखते ही बनता है.बताते हैं कि अलसुबह जब पूर्व में समुद्र के बीच से सूर्य भगवान उदय होते हैं तो उस वक्त समुद्र का नीला पानी भी लाल हो जाता है,जिसे देखते ही बनता है.ख़ैर सम्पूर्ण मंदिर तीन भागों में विभाजित है.सामने का भाग "नृत्य मंदिर",बीच वाला "जगमोहन" जिसे आराधना मंदिर एवम उसके बाद वाले कों "गर्भगृह "के नाम से जाना जाता है.समय के काल के थपेड़ों ने नृत्य मंदिर तथा गर्भगृह कों खंडहर में तब्दील कर दिया है.लेकिन जगमोहन अभी भी ठीक हालत में है.यहाँ यह बताता चलूँ कि प्रवेश द्वार पर बने हाथी कि पीठ सवार सिंह दिन के तीनों पहर कों बताते हैं.स्थानीय निवासी पटनायक बताते हैं कि "हम रोज ही देखते हैं कि सुबह कोमल सूर्य निकालता है,दोपहर में उसका तेज प्रचंड हो उठता है, और शाम का सूर्य हमें सुहावन दिखाई देता है,यही यह शिल्प हमें बताती है.सूर्य मंदिर कि दीवारों पर बने कला कि बारीकियां देखते ही बनती हैं.जिन पर अंकित हैं पशु-पक्षियों,देवी-देवताओं,मनुष्यों -अप्सराओं,लताओं कि अनुपम पिचकारियों कों देख कर पर्यटक अपलक उन्हें निहारता ही रहता है.
 दीवारों पर बनी नर-नारी की युगल काम-मुद्राएँ देख कर लगता है कि मानों वात्स्यायन (काम-सूत्र के रचयिता) ने काम-सूत्र को ही दीवारों पर उकेर दिया गया हो.मंदिर कि दीवारों पर उकेरी काम-क्रियाओं के चित्रों को देख कर पर्यटक घंटों अपलक उन्हें निहारता ही रह जाता है.खास कर नव-दंपत्ति जोड़े.हमें पहले ही बताया गया था कि उन शिल्पों को काम-भावना कि दृष्टि से नहीं बल्कि के लालित्य के दृष्टिकोण से देखे तो उसका असली आनंद मिलेगा,हुआ भी वही. दीवारों पर बड़े-बड़े पत्थरों   को तराश कर उसमें काव्य भर दिया गया है.जिसे ओडिसी स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना कह सकतें हैं कोणार्क के सूर्य मंदिर यूनेस्को एवम वर्ल्ड हेरिटेज द्वारा संरक्षण भी प्राप्त है कोर्णाक के सूर्य मंदिर के निर्माण के बारे में "आईने-अकबरी" में लिखा है कि सूर्य मंदिर 9 वीं सदी में केशरी वंश के किसी रजा ने बनवाया था.जिसे बाद में गंगवंशीय रजा नरसिंह देव (प्रथम) ने (1238 -64 )अपने अधिपत्य में कर इसका जीर्णोधार कराकर देश को प्रकृति का एक अनुपम उपहार दिया.
कब जाएँ: किसी भी मौसम में जाया जा सकता है.लेकिन सितम्बर से मार्च के बीच सही समय होता है वहाँ जाने का.
कैसे जाएँ: निकटतम हवाई अड्डा भुवनेश्वर जो देश के सभी बड़े शहरों से हवाई मार्ग से सीधा जुडा है.सड़क व रेल मार्ग के लिये भुवनेश्वर व पुरी से भी जाया जा सकता है.जहाँ से पर्यटन विभाग के अलावा निजी बस,टैक्सी भी मिलती हैं.
कहाँ रुकें: भुवनेश्वर ,कोणार्क एवम पुरी में हर स्तर के होटलों के अलावा गेस्ट हाउस,धर्मशाला भी हैं.
                                                                                                                 -प्रदीप श्रीवास्तव 
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