संपादकीय 
कुसुम श्रीवास्तवा
इसी जुलाई माह के पहले सप्ताह में हैदराबाद क्या कहें ,तेलंगाना के लिए बुरी खबर मिली जब यूनेस्को ने राजस्थान की राजधानी ,जिसे गुलाबी शहर के नाम से दुनिया भर में जाना जाता है। जयपुर को विश्व धरोहर घोषित कर दिया । जिससे हैदराबाद की झोली खाली की खाली ही रह गई। पहले सप्ताह में अज़र बाईजान में आयोजित सम्मेलन में जयपुर को विश्व का दर्जा दिये जाने की घोषणा की गई । जब कि जयपुर की तरह सभी विशेषताएँ अपने हैदराबाद में भी मौजूद है , लेकिन इसका मुख्य कारण रहा तेलंगाना सरकार की पर्यटन के प्रति उपेक्षा वाला रवैया । या यूं कहे सरकार की कमजोर इच्छा शक्ति, जिसके कारण हैदराबाद विश्व धरोहर बनने से चूक गया । यूनिस्को ने जिन कारणों से जयपुर को विश्व का दर्जा दिया है ,वह सब कुछ तो है अपने हैदराबाद में भी था बस नहीं थी तो केवल सरकारी इच्छाशक्ति । नहीं तो आज हम गर्व से कहते कि विश्व की धरोहर में हमारा हैदराबाद भी है।
प्रश्न यह है कि जिन मापदण्डों को चिन्हित करते हुए गुलाबी शहर ''जयपुर'' को इस उपलब्धि से नवाजा गया है तो वह सभी विशेषताएँ इस ट्विन सिटी में भी तो थीं। लेकिन हम मारे गए तो केवल उनके रख रखाव में घोर उपेक्षाओं के कारण । दूसरी बात जो उपलब्ध  विशेषताएँ थीं भीं तो उन्हें सरकारी तंत्र यूनिस्को की हेरिटेज समिति के सामने रखने में नाकाम रही। पता हो कि सन 2010 में इस हैदराबाद शहर को विश्व धरोहर बनाने के प्रयास शुरू किए गए थे ,लेकिन इन 19 वर्षों में कोई मूलभूत प्रयास देखने को मिला ही नहीं।
जयपुर को जिन कारणों  से विश्व धरोहर का दर्जा दिये जाने का उल्लेख है ,ठीक उसी तरह की ऐतिहासिकता हैदराबाद की स्थापना ,ऐतिहासिक धरोहरों की शिल्पकारी में भी तो है। कुतुबशाही काल में किए गए शहर के निर्माण में वैदिक और इस्लामिक ,दोनों वास्तुकला का समावेश है। नील गगन की छांव में खड़ा चार मीनार ,गुलजार हौज ,पुराने शहर के गली कूचे ,पत्थरगट्टी में कई ऐसी विशेषताएँ है जिनके रख रखाव से इस ट्विन सिटी को विश्व धरोहर का दर्जा दिलाया जा सकता था । केवल इतना ही नहीं इस शहर में हिन्दू-मुस्लिम एवं बौद्ध संस्कृतियों के प्रभाव की कुछ ऐसी  विशेषताएँ हैं जो अन्य किसी और शहर में नहीं मिलेगी। इन सब के पीछे केवल हैदराबाद प्रशासन एवं सरकारी तंत्र ही मुख्य कारण है।
कुसुम श्रीवास्तव
कार्यकारी संपादक