27 सितम्बर ,विश्व पर्यटन दिवस पर : -
निज़ामाबाद (तेलंगाना) शहर से लगभग तीस किलोमीटर एक छोटी सी तहसील है डिचपल्ली,साथ ही रेलवे स्टेशन भी यह अलग की बात है कि वहां पर मेल व् एक्सप्रेस गाड़ियां रुकती नहीं हैं. फिर भी यह तहसील नागपुर बेंगलूर हाई - वे पर भी पड़ता है। तेलंगाना के पर्यटन मानचित्र पर यह जगह अंकित भी है,क्यों की इसी तहसील के मुख्य गावं 'डिचपल्ली' में काकतिया राजवंश की ऐशगाह होती थी ,जिसे आज रामालय के नाम से जाना जाता है. मंदिर के बारे में जानने से पहले गावं के इतिहास पर एक नज़र डाल लेते हैं. कहते हैं कि डिचपल्ली गावं निर्माण द्रविण काल में हुआ था ,जिसे मीचुपल्ली के नाम से जाना जाता था. वहीँ एक किवदंती यह भी है कि इस गावं को डच समुदाय के लोगों ने बसाया था ,जिसे तब डिच्चू गावं के नाम से बुलाया जाता था. कालांतर में यही दिच्चु से बदल कर डिचपल्ली हो गया.
अगर इतिहास के पन्नों को पलटें तो 11वीं -12वीं शताब्दी के काकतिया राजा प्रताप रूद्रडु ने इस जगह का निर्माण कराया था ,जिसे आज डिचपल्ली मंदिर के नाम से जाना जाता है. उनके कार्यकाल में इस गावं में काकतिया राजवंश के हथियार बनते थे. जिसके अवशेष आज भी गावं में देखे जा सकते हैं. डिचपल्ली रामालय के बारे में बताते हैं शिखर वाला यह मंदिर अपने आप में अनूठा है। 17 वीं शताब्दी में बना रामालय विजय नगर की कला पद्धतियों पर आधारित है. मंदिर को लेकर आज भी यह संदेह बना है कि आखिर यह था क्या? क्यों की वर्तमान में ऊपर मंदिर बना है,वहीँ परिषर के पत्थरों पर वात्स्यान के कामसुत्र के चित्र उकेरे हुए है,जिसे लेकर इस मंदिर को दक्षिण भारत का 'खजुराहो' कहा जाता है.वहीँ अगर हम डिचपल्ली के प्राचीन नाम को लें तो इसे गिचुपल्ली भी कहा जाता था ,जिसका संस्कृत में शाब्दिक अर्थ होता है "काम" . मुख्य मार्ग से दूरी पर होने के कारण अब मंदिर तक पर्यटक नहीं आते, लेकिन युवाओं के जोड़ों को गलबहियां डाले हुए सूरज उगने के बाद से सूरज डूबने तक देखा जा सकता है.जिनको रोकने टेकने वाला कोई नहीं है. पता हो कि इसी रामालय पर भारत सरकार ने 11 दिसंबर 2004 में एक डाक टिकट एवं प्रथम दिवस आवरण निकला था ,जिसे तत्कालीन कलेक्टर डी. वी. रायडू ने एक डाक टिकट प्रदर्शनी में जारी किया था. डिचपल्ली रामालय की कई विशेषताएं भी हैं,जिनका उल्लेख फिर कभी.
आज यही विश्व प्रसिद्ध धरोहर सरकारी उपेक्षा का शिकार बन गया है, इसकी न जिला पर्यटन विकास समिति को ,न ही तेलंगाना पर्यटन निगम को और न ही निज़ामाबाद के सांसद व विधायकों को है. एक विश्व प्रसिद्ध धरोहर काल के गाल का शिकार हो रही है,जिसे आज बचाने नितांत जरुरत है.
प्रदीप श्रीवास्तव
उपेक्षाओं का शिकार हो गया
है , डिचपल्ली का रामालय
निज़ामाबाद के डिचपल्ली स्थित रामालय |
* दीवारों पर अंकित हैं कामसूत्र के चित्र
* कभी यहीं बनते थे काकतिया राजवंश के हथियार
* अब गलबहियां डाले दिखते हैं युवा जोड़े
निज़ामाबाद (तेलंगाना) शहर से लगभग तीस किलोमीटर एक छोटी सी तहसील है डिचपल्ली,साथ ही रेलवे स्टेशन भी यह अलग की बात है कि वहां पर मेल व् एक्सप्रेस गाड़ियां रुकती नहीं हैं. फिर भी यह तहसील नागपुर बेंगलूर हाई - वे पर भी पड़ता है। तेलंगाना के पर्यटन मानचित्र पर यह जगह अंकित भी है,क्यों की इसी तहसील के मुख्य गावं 'डिचपल्ली' में काकतिया राजवंश की ऐशगाह होती थी ,जिसे आज रामालय के नाम से जाना जाता है. मंदिर के बारे में जानने से पहले गावं के इतिहास पर एक नज़र डाल लेते हैं. कहते हैं कि डिचपल्ली गावं निर्माण द्रविण काल में हुआ था ,जिसे मीचुपल्ली के नाम से जाना जाता था. वहीँ एक किवदंती यह भी है कि इस गावं को डच समुदाय के लोगों ने बसाया था ,जिसे तब डिच्चू गावं के नाम से बुलाया जाता था. कालांतर में यही दिच्चु से बदल कर डिचपल्ली हो गया.
अगर इतिहास के पन्नों को पलटें तो 11वीं -12वीं शताब्दी के काकतिया राजा प्रताप रूद्रडु ने इस जगह का निर्माण कराया था ,जिसे आज डिचपल्ली मंदिर के नाम से जाना जाता है. उनके कार्यकाल में इस गावं में काकतिया राजवंश के हथियार बनते थे. जिसके अवशेष आज भी गावं में देखे जा सकते हैं. डिचपल्ली रामालय के बारे में बताते हैं शिखर वाला यह मंदिर अपने आप में अनूठा है। 17 वीं शताब्दी में बना रामालय विजय नगर की कला पद्धतियों पर आधारित है. मंदिर को लेकर आज भी यह संदेह बना है कि आखिर यह था क्या? क्यों की वर्तमान में ऊपर मंदिर बना है,वहीँ परिषर के पत्थरों पर वात्स्यान के कामसुत्र के चित्र उकेरे हुए है,जिसे लेकर इस मंदिर को दक्षिण भारत का 'खजुराहो' कहा जाता है.वहीँ अगर हम डिचपल्ली के प्राचीन नाम को लें तो इसे गिचुपल्ली भी कहा जाता था ,जिसका संस्कृत में शाब्दिक अर्थ होता है "काम" . मुख्य मार्ग से दूरी पर होने के कारण अब मंदिर तक पर्यटक नहीं आते, लेकिन युवाओं के जोड़ों को गलबहियां डाले हुए सूरज उगने के बाद से सूरज डूबने तक देखा जा सकता है.जिनको रोकने टेकने वाला कोई नहीं है. पता हो कि इसी रामालय पर भारत सरकार ने 11 दिसंबर 2004 में एक डाक टिकट एवं प्रथम दिवस आवरण निकला था ,जिसे तत्कालीन कलेक्टर डी. वी. रायडू ने एक डाक टिकट प्रदर्शनी में जारी किया था. डिचपल्ली रामालय की कई विशेषताएं भी हैं,जिनका उल्लेख फिर कभी.
आज यही विश्व प्रसिद्ध धरोहर सरकारी उपेक्षा का शिकार बन गया है, इसकी न जिला पर्यटन विकास समिति को ,न ही तेलंगाना पर्यटन निगम को और न ही निज़ामाबाद के सांसद व विधायकों को है. एक विश्व प्रसिद्ध धरोहर काल के गाल का शिकार हो रही है,जिसे आज बचाने नितांत जरुरत है.
प्रदीप श्रीवास्तव
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