निजामाबाद ,एक नया पर्यटन स्थल
कौलास किले में राखी ककतीया राजवंश की तोप |
-----------------
कुसुम श्रीवास्तव ------------------------------------ |
प्राचीन काल में इन्द्रपुरी
और इन्दूर के नाम से विख्यात तेलंगाना का निजामाबाद अपनी समृद्ध संस्कृति के साथ-साथ
ऐतिहासिक स्मारकों और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है। इस जिले की सीमाएं करीमनगर, मेडक और नांदेड़ , व बीदर जिलों से मिलती और पूर्व में आदिलाबाद से मिलती
हैं। इसका नाम हैदराबाद प्रांत के निज़ाम के नाम पर रखा गया है।
किंवदंती के अनुसार निज़ामाबाद
नगर प्राचीन समय में त्रिकुंटकवंशीय इंद्रदत्त द्वारा लगभग 388 ई. में बसाया गया था।
इस का राज नर्मदा और ताप्ती के निचले प्रदेशों में था। यह भी संभव जान पड़ता है कि
नगर का नाम विष्णुकुंडिन इंद्रवर्मन् प्रथम (500 ई.) के नाम पर हुआ था।
1311 ई. में निज़ामाबाद पर अलाउद्दीन ख़िलजी ने आक्रमण किया। तत्पश्चात् यह नगर क्रमश:
बहमनी, कुतुबशाही और मुग़ल राज्यों में सम्मिलित रहा। अंत में हैदराबाद प्रांत के निज़ाम
का यहाँ आधिपत्य हो गया और इस ज़िले का नाम 1905 में निज़ामाबाद कर दिया
गया था।
यह जिला चालुक्य, तुगलक, गोलकुंडा और निजाम शासकों
के अधीन रह चुका है। इन सभी शासकों की अनेक निशानियां इस नगर में देखी जा सकती है।
प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर यह स्थान औद्योगिक विास से पथ पर तेजी से अग्रसर हो रहा
है। निजामाबाद से गोदावरी नदी आंध्रप्रदेश में प्रवेश कर इस राज्य को समृद्ध करने
में अहम भूमिका अदा करती है। इस ज़िले के प्राचीन मंदिरों की वास्तुकला अतीव सुंदर
है। नगर में 12वीं शती ई. की जैन-मूर्तियों के अवशेष मिले हैं जिन का कुतुबशाही काल में बने दुर्ग
में उपयोग किया गया था। कंठेश्वर का शिव मंदिर अपेक्षाकृत अत्यंत सुंदर है। नगर से
छ: मील पर हनुमान मंदिर है जहाँ जनश्रुति के अनुसार महाराज शिवाजी के गुरु श्री समर्थ
रामदास कुछ समय तक रहे थे। और हनुमान मंदिर की स्थापना की थी।
लगभग आठ हज़ार किलोमीटर
वर्ग क्षेत्र मैं फैले निजामाबाद जिले को सौ साल पहले ‘इंदूर’ के नाम से जाना जाता
था।एसएन 1905 में इसे निजामाबाद नाम दिया गया । इंदूर से निजामाबाद नाम क्यों हुआ इसका इतिहास
में कोई स्पष्ट कारण का पता नहीं चलता है । कहा यह जाता है की निज़ामों के अधीन होने
के कारण हो सकता है इसका नाम निजामाबाद कर दिया गया हो। लेकिन जब हम इतिहास के पन्नों
को पलटते हें तो पता चलता है कि प्राचीन कल में यह ‘अश्मक’ नाम से प्रसिद्ध था।
इतिहास में जी 16 महा जनपदों का उल्लेख मिलता है उनमे से एक ‘अश्मक’ भी था। अन्य जनपद थे।
अंग,काशी,कोसल,मगध,बज्जि,मल्ल,छेड़ी,बरस,कुरु,पांचाल,शूरसेन,अवन्ती,कम्बोज,एवं गांधार ।
संस्कृत में 'अश्म' का अर्थ होता है 'पत्थर',हो सकता है कि पत्थर
एवं पहाड़ों के बीच बसे होने के कारण इसका नाम 'अश्मक' पड़ा हो। महा भारत काल
में भी इसका उल्लेख मिलता है। इतिहासकर डॉ श्याम नारायण पांडे अपनी पुस्तक 'जियोग्राफ़िकल होरिजन
आफ द महाभारत' में पृष्ठ संख्या -129 पर लिखते हैं कि 'अयोध्या में इक्ष्वाकुवंशीय चक्रवती राजा राज करते थे । उन्ही के वंश में कल्माषपाद नामक राजा हुए,जिनकी पत्नी का नाम मंदमती
था । महर्षि वसिष्ठ के आशीर्वाद से वह गर्भवती हुईं ,लेकिन प्रसव की निर्धारित
समय सीमा बीत जाने के बाद भी जब उन्हें संतान की प्राप्ति नाही हुई तो एक दिन रानी
आवेश में आकर अपने पेट पर एक पत्थर से प्रहार कर दिया ,प्रहार के बाद उन्हें
एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई ,जिसका नाम 'अश्मक' रखा गया । कालांतर में अश्मक राजा बने और उन्होने ने
'पौदन्य ' नगर की स्थापना की । वही 'पौदन्य ' नगर निजामाबाद जिले की
बोधन तहसील के नाम से जाना जाता है। डॉ पांडे आगे लिखते हैं कि 'पौदन्य' ही 'अश्मक' राज्य की राजधानी हुआ
करती थी । 'अश्मक' का उल्लेख महाभारत के भीष्म-पर्व के अनुच्छेद 9/38 में भी मिलता है । भीष्म
पर्व के अंतर्गत ज्ंबुखंडे विनिर्माण -पर्व में घृतराष्ट्र के पूछने पर संजय जनपदों
के नामों को गिनते हुए 'अश्मक' का भी उल्लेख करते हैं। वहीं दूसरी तरफ महाभारत में यह भी उल्लेख मिलता है कि कर्ण
ने अश्मक राजा को परास्त कर उनसे कर वसूल किया था । शायद यही कारण था कि अश्मक को विवश
हो कर कौरवों का साथ देना पड़ा था ।
इतिहास के पन्नो को पलटने
पर पता चलता है कि निजामाबाद का संबंध कई राजवंशों से जुड़े हुए थे। सातवाहन,बादामी चालुक्य वंश,के सामंती राजाओं ,कल्याणी चालुक्य वंश
,काकतिया वंश,दिल्ली के मोहम्मद सुल्तान,,बहमनी राजाओं,,मुगल सम्राटों के साथ-साथ
निज़ाम शासकों के अधिपत्य होने का गवाह है। इसका इतिहास 17वीं एवं 15वीं शताब्दी के साथ ही
ईसा पूर्व का भी है । उस समय की कई इमारतें व मंदिर आज भी अपनी बुलंदियों की दास्तान
बयां करती हैं। चाहे वह डोमकोंडा का किला हो या कौलास का किला । आज भी निजामाबाद की
गलियों में छत्रपती शिवाजी महाराज के गुजरने कि दास्तां गूँजती है ।
यह वही शहर है जहां निज़ाम
शासन के खिलाफ आज़ादी की पहली लड़ाई का बिगुल बजा था,निजामाबाद ,यह वही शहर है जहां छठी
आंध्र महा सभा एवं पहला राजी कांग्रेस सम्मेलन हुआ था। यह वही शहर है जहां रजाकारों
के खिलाफ आवाज उठाने वाले आर्यसमाजी राधाकृष्ण मोदनी की नृशंस हत्या हुई थी।
पर्यटन की दृष्टि से
निजामाबाद में देखने वाली बहुत सी जगह हैं। जो अपने में इतिहास ,संस्कृति व सभ्यता को
समेटे हुए है। आइये इस बार छुट्टियों में निजामाबाद चलते हें।
गांधी गंज का क्लाक टावर
निजामाबाद शहर के बीच स्थित गंज कमान ----------------------------------------------------- |
निजामाबाद शहर के मध्य
स्थित गांधी गंज निज़ामों के समय प्रमुख व्यापार का केंद्र हुआ करता था । यहीं से हल्दी
,चावल एवं लाल मूंग पूरे देश में
भेजे जाते थे । पुराने लोगों के मुताबिक उस समय स्थापित मार्केट कमेटी इसी जगह से प्रति
वर्ष 70 लाख 826 रुपये का व्यापार करती थी । विशेष बात यहा है कि इस बाज़ार पर राजस्थान
से आए मारवाड़ी समाज का एकाधिकार था । कहते हें कि व्यापारियों की सुविधा के लिए 19
वीं शताब्दी में सिरनापल्ली की महारानी शीलम
जानकी बाई ने गंज बाज़ार के मध्य में क्लाक टावर का निर्माण करवाया था ।जो शहर की धड़कन
बन गई थी ।जिसके हर घंटे की टन -टन से शहरवासियों की दिनचर्या शुरू होती थी । इस क्लाक
टावर का निर्माण नरसगौड़ नमक मिस्त्री ने किया था। लेकिन पिछले कई वर्षों से क्लाक टावर
की घड़ी खराब होने के कारण प्रशासन ने निकलवा तो दिया है,लेकिन उसकी जगह अभी तक नया नहीं लग सका है। फिर भी आज
यह आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। बाज़ार के उत्तर एवं दक्षिण तरफ आकर्षक प्रवेश द्वार
बने हुए हैं ।
निजाम सागर
हैदराबाद से 144 किलोमीटर उत्तर पश्चिम
में स्थित कृत्रिम जलकुंड निजाम सागर गोदावरी नदी की एक शाखा मंजीरा नदी पर बनाया गया
है। यह स्थान अपनी मनमोहक खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध है। यहां का मुख्य आकर्षण विशाल
बांध है जिसपर तीन किलोमीटर लंबी सड़क है जिस पर गाडियां चलती हैं। यहां के खूबसरत
उद्यान लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। निजाम सागर में बोटिंग का भी आनंद लिया
जा सकता है। पर्यटकों के लिए भी यहां सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं।
अशोक सागर
निजामाबाद से करीब 7 किलोमीटर दूर अशोक सागर
एक विशाल कृत्रिम जलाशल है। यहां पर सफाई से बनाए गए उद्यान और खूबसूरत चट्टानें हैं।
जलाश्ाय के बीचों बीच देवी सरस्वती की 15 फीट ऊंची प्रति इस स्थान की सुंदरता में चार चांद लगाती
है। अष्टभुजाकार रेस्टोरेंट में खानपान का आनंद भी उठाया जा सकता है। अशोक सागर में
झूलने वाला सेतु और बोटिंग सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।
कंठेश्वर
शहर में स्थित श्री नीलकंठेश्वर मंदिर ----------------------------------------------------------------- |
निजामाबाद में एक जगह
है जिसे कंठेश्वर के नाम से जाना जाता है। यह स्थान यहां स्थित मंदिर के लिए प्रसिद्ध
है जो करीब 500 साल पुराना है। भगवान शिव (नील कंठेश्वर) को समर्पित इस मंदिर का वास्तुशिल्प
देखते ही बनता है। इस मंदिर का निर्माण सातवाहन राजा सतकर्नी द्वितीय ने करवाया था।
रथसप्तर्णी उत्सव यहां हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
निंबाद्री गुट्टा
मनोरम दृश्यावली के
बीच स्थित लिंबाद्री पर्वत पर श्री नरसिंह स्वामी मंदिर प्रमुख दर्शनीय स्थल है।
यह जगह निजामाबाद से 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। हर साल कार्तिक सुद्दा तडिया से त्रयोदशी तक यहां
मेले का आयोजन किया जाता है।
सारंगपुर
निजामाबाद से 8 किलोमीटर दूर सारंगपुर
में विशाल हनुमान मंदिर है जो इस जिले का प्रमुख धार्मिक स्थाल है। छत्रपति शिवाजी
के गुरु संत समर्थ रामदास ने करीब 452 साल पहले इस मंदिर की नींव रखी थी। आवागमन की सुविधा, बिजली पानी का प्रबंध, धर्मशाला, बच्चों के लिए उद्यान
आदि के होने से यह स्थान बड़ी संख्या में भक्तों को अपनी ओर खींचता है।
किला रामालयम
मूल रूप से इंद्रपुरी
के नाम से जाना जाने वाले इस शहर और किले का निर्माण राष्ट्रकुटों ने किया था। किले
में 40 फुट ऊंचा एक विजय स्तंभ है जिसका निर्माण राष्ट्रकुट शासन के दौरान किया गया
था। 1311 में अलाउद्दीन खिलजी ने इस किले पर अधिकार कर दिया। इसके बाद यह बहमनी, कुतुब शाही और असफ जोहिस
के हाथ में आया। वर्तमान किला असफ जाही शैली के वास्तुशिल्प को दर्शाता है। किले
में ही छत्रपति शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास द्वारा बनाया गया बड़ा राममंदिर भी है।
राजालयम किले से निजामाबाद शहर का सुंदर नजारा दिखाई देता है।
मशरूम रॉक गार्डन
निजामाबाद शहर से लगभग
7 किलोमीटर दूर मदनूर मार्ग से गुजरने पर
एक आकर्षक पत्थर के ऊपर रखा पत्थर आप को आकर्षिक करेगा ,जिसे मशरूम राक के नाम
से जाना जाता है । कहते हें की आज से लगभग 1.45 मिलियन वर्ष पहले का यह पत्थर है । पता हो की यह क्षेत्र
वन विभाग के तहत आता है,जहां पर अक्सर चीता आदि दिखाई देते हें। पास में एक विशाल तलब भी है ,जो लोगों को अपनी ओर
आकर्षित भी करता है। वहीं पास में पहाड़ी पर वियू प्वाइंट भी है ,जहां से पूरे क्षेत्र
का नज़ारा देखते ही बनता है।
सूर्य मंदिर : निजामाबाद
शहर से लगभग 25 किलोमीटर दूर बोधन शहर के मध्य स्थित है सूर्य मंदिर,जिसे सौ खंबों वाला मंदिर
के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं कि अज्ञातवास के दौरान एक साल तक पांडव इसी जगह
पर रुके थे । मंदिर परिसर में बड़े -बड़े पत्थर की शिलाएँ हैं ,जिन पर पत्थर से चोट
करने पर संगीत कि सातों स्वर लहरियाँ निकलती हैं। मंदिर का निर्माण चोल वंश के राजाओं
द्वारा कराया गया था। मंदिर की एक विशेषता यह भी है कि मंदिर में सौ खंबे लगे हैं, जिन्हें गिनने पर निन्यानबे
ही मिलते हैं। मंदिर के भीतर से पास के मंदिर रकासीपेट तक एक सुरंग हुआ करती थी ,जिसे अब बंद कर दिया
गया है।
भीम का मंदिर : बोधन
शहर से थोड़ी दूर पर रकासीपेट है,जिसके बारे में कहा जाता है कि अपने अज्ञातवास के दौरान
भीम ने इसी जगह पर बकासुर नमक राक्षस का वध किया था । बताते हें कि जिस शिलाखंड पर
बकासुर विश्राम करता था ,उसी से भीम ने उसका वध किया था । वहाँ के लोग बताते हैं कि दुनिया में भीम केवल
एक मंदिर है जो यह है। मंदिर चार एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है,लेकिन सरकारी उपेक्षा
के कारण आज भी जीर्णशीर्ण अवस्था मैं खड़ा है।
गोदावरी नदी के किनारे स्थित कंदकुरती मंदिर --------------------------------------------------- |
कंद्कुर्ती : निजामाबाद
शहर से लगभग तीस किलोमीटर दूर हरिद्रा ,मंजीरा एवं गोदावरी नदी के संगम पर एक स्थान कंद्कुर्ती
है ,जिसे संघ के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार का ननिहाल है। यहीं पर उनका जन्म
भी हुआ था। इसी जगह से गोदावरि नदी तेलंगाना मैं प्रवेश करती हैं । यही वह जगह है जहां
कन्नड भाषा के आदि कवि अमृत राय की समाधि भी है। स्कन्द प्राण में भी इस जगह का वर्णन
मिलता है, गोदावरि नदी के तट पर आज भी जीर्ण-शीर्ण स्कन्द मटा का मंदिर आप को देखने को मिलेगा।
यह भी कहा जाता है कि जब भगवान राम वांगमन को निकले थे तो पंचवटी के बाद कुछ समय के
लिए यहाँ पर रुके थे। यहाँ पर भी भगवान राम ने भगवान शिव कि पूजा अर्चना की थी। बताते
हें कि हिन्दू पद पाद शाही के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी इसी जगह एक रात
बिताई थी ।
बड़ा पहाड़ : जिले के वर्णी
मण्डल में एक जगह है बड़ा पहाड़ ,जहां पर सय्यद सादुल्ला हुसेन साहब की समाधि हे। जिनके
बारे में कहा जाता है कि वह निज़ाम के तहसीलदार थे। एक बार भयंकर अकाल पड़ा तो उन्होने
कर (टैक्स) के रूप में वसूली राशि को अकाल पीड़ितों में बाँट दी,जिस पर निज़ाम के लोग
उनकी हत्या के लिए उन्हें खोजने लगे। हुसेन साहब इसी पहाड़ी पर छुप गए। निज़ाम के सिपाहियों
ने उन्हें खोज कर उसी जगह पर समाधि बना दी जहां पर आज हे। कहते हें कि यहाँ पर मन्नत
मनाने पर भक्तो की मनोकामना पूरी होती है ।
0 टिप्पणियाँ