अपने अतीत की वैभवशाली गाथा को
बयां करता "कदवाया का शैव मठ"
हेमंत दुबे |
खजुराहो साँची और भीमबैठिका जैसी तीन तीन विश्व धरोहरों को अपने आँचल में समेटे मध्यप्रदेश ऐतिहासिक सांस्कृतिक दृष्टि से बेहद समृद्ध प्रांत है। कदवाया इस प्रदेश के अशोकनगर जिले में स्थित है। कदवाया आज भले ही एक ग्राम का दर्जा रखता है लेकिन एक समय यह स्थान धार्मिक दृष्टि से ही नहीं राजनैतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण था यहाँ के वैभव और गौरव की गाथा कहते मठ मंदिर आज भी मौजूद है कदवाया की पवित्र भूमि पर धार्मिक गतिविधियाँ सदैव ही विद्यमान रही है प्राचीन काल में यहाँ के शैव मठ और मंदिर धार्मिक आस्था के बड़े केंद्र थे तो आज यहाँ का बीजासन मंदिर हिंदू धर्मावलंबियों के लिए ख़ासा महत्व रखता है कदवाया प्राचीन समय में कदम्बगुहा कदवही कछवाह कदवाहा आदि नामों से जाना जाता था शिलालेखों से ज्ञात होता है कि कदम्बगुहावासी नाम के मुनि कदम्बगुहा के मठाधीष थे लगता है यह उनका नाम नहीं पदवी रही होगी चूँकि वह कदम्बगुहा के मठाधीष थे इस कारण वह कदम्बगुहावासी कहलाये हो। लिंग पुराण में कदम्बगुहावासी को भगवान शंकर का 32वा अवतार बताया गया है अल्बत्ता कदवाया प्राचीन काल में कदम्बगुहा के नाम से प्रसिद्ध हो कर शैव संप्रदाय का बड़ा समृद्ध मठ था डाॅ.कीलहार्न के द्वारा प्रकाशित एक लेख से पता चलता है कि कदवाया शैव सिद्धांत मत के सिद्धों के लिए और मत्तमयूर संप्रदाय के आचार्यों के कारण जाना जाता था इन सिद्धों और आचार्यों के अनुयायी त्रिपुरी के कल्चुरी मालवा के परमार ग्वालियर के कच्छपघात चंदेरी के प्रतिहार आदि राजा इस संप्रदाय में दीक्षित थे जो इन्हें दान में ग्रामदान गाय के साथ ही धन भी बड़ी मात्रा में देते थे और मंदिर मठों का निर्माण भी कराते थे कल्चुरी रानी नौहला ने तो इस संप्रदाय के आचार्यों के लिए बहुत से मंदिर और मठों का निर्माण कराया। । यही कारण है कि यह मठ बेहद समृद्ध और सम्पन्न हो गये थे।8वीं 9वीं शताब्दी में निर्मित यह मठ आज भी कदवाया कस्बे के बीचों बीच अपना अस्तित्व बनाऐ हुए है।
दो मंजिला इस इमारत में करीब बाबीस कक्ष बने हुए है मठ के आग्नेय कोण में रसोईघर तो नैऋत्य कोण में शौचालय बना हुआ है पूर्वोत्तर कोण पर स्नानागार बना है तो निचले कक्ष में उत्तर दिशा में संभवतः कोषागार भी था जिसे आजकल एक्स रे रूम के नाम से जाना जाता है क्योंकि इस कक्ष के दरवाजे पर जब आप खड़े होते है तो आपका प्रतिबिंब विखंडित हो कर बनता है जो एक्स रे जैसा प्रतीत होता है हालाँकि कक्ष के जो रोशनदान हैं उन्हीं के कारण ऐसा होता है लेकिन लोगों के लिए यह रोचक और मजेदार होता है । बहरहाल इस ग्यारह सौ वर्ष प्राचीन मठ की प्रथम तल पर निर्माण करने के लिए बड़ी बड़ी चिन्खारी(शिलाखण्ड) उपयोग में ली गईं है तो दूसरे तल के निर्माण में छोटी चिन्खारियों का प्रयोग किया गया है ।मठ बनाने में चूने का प्रयोग बिल्कुल भी नहीं किया गया है ।
मठ के प्रथम तल पर बने कक्षों में शिष्यों को रखा जाता था और द्वितीय तल पर आचार्य रहते थे इस मठ के दो नियम बहुत सख्त थे एक यहाँ कोई भी स्त्री रात नहीं ठहर सकती थी दूसरा इस मठ में कोई भी खटिया(चारपाई) पर नहीं सो सकता था ।
मठ के आसपास एक मील की परिधि में बहुत से मंदिर बने हुए थे जिन्हें एक -एक आचार्य के लिए समर्पित कर दिया गया था मठ के समीप बने मंदिर को आज भी भूतेश्वरनाथ महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है जो भूतेश्वरनाथ आचार्य को समर्पित था। कदवाया और आसपास से मिले शिलालेखों से करीब चौदह आचार्यों के नाम प्राप्त हुए है इनमें मत्तमयूरनाथ व्योमशिव हरिशिव पतंगेश हरिहर भूतेश्वरनाथ शंभूशिव शिवशिव मधुमतिनाथ आदि महत्वपूर्ण है ।
आज भी कदवाया मठ के आसपास पन्द्रह मंदिर बने हुए है जो 8वीं शताब्दी से 11वीं शताब्दी के बीच में प्रस्तर खण्डों से निर्मित किए हुए है । जिनकी मूर्ति कला बेहद उत्कृष्ट और शास्त्रीय है । यहाँ के एक मंदिर को मुरायता मंदिर कहा जाता है संभवतः यह गुरायता मंदिर का अपभ्रंश प्रतीत होता है चूँकि कदवाया के मौजूदा सभी मंदिरों में उत्कृष्ट और ऊँचा यह मंदिर गुरू यानी मठ के प्रधानाचार्य को समर्पित होने से गुरायता यानी गुरू का मंदिर भी हो सकता है इस मंदिर के गर्भगृह में तोतेश्वर महादेव के रूप में एक भव्य शिवलिंग स्थापित था जिसे बाद में संभवतः सल्तनत काल में गर्भगृह से हटा दिया गया और नंदी को बाहर फेंक दिया गया । मंदिर के पास एक सुंदर तालाब भी था जिसके घाट आज भी बने हुए है । समय के साथ साथ यहाँ के मठ और आचार्यों की प्रतिष्ठा बढ़ती गईं और इन शैव मठों के अनेकानेक मंदिर और मठ इस क्षेत्र में बनते चले गए कदवाया के पास रन्नौद सुरवाया महुआ तेरही में भी मठ मंदिरों का निर्माण बलुआ पत्थर से किया गया इन मठों का वैभव दूर दूर तक फैलता गया बस यही प्रसिद्धि इन मठों के पराभव का कारण बनी दिल्ली सल्तनत पर अलाउद्दीन काबिज हुआ और उसने चंदेरी पर विजय प्राप्त करने के लिए मालबा के सेनापति एनउल मुल्क को भेजा उसने चंदेरी फ़तह के दौरान जब कदवाया मठ के बारे में सुना तब उसने कदवाया के मठ पर भी हमला किया और लूटपाट की खूब धन दौलत लूट खसोट कर मंदिर मूर्ति भी तोड़ी जिससे इस मठ की प्रतिष्ठा को बहुत हानि हुई कुछ समय बाद यहा चंदेरी विजय के समय बाबर आया जिसका उल्लेख उसने तुजुक ए बाबरी में भी किया है उसने कदवाया को कछवाह लिखा है उसने कदवाया पर हमला नहीं किया क्योंकि कदवाया के लोग उसकी सेना देख कर डर गये और उसकी आधीनता स्वीकार कर ली
वह अपना एक अधिकारी यहाँ से लगान वसूल करने के लिए छोड़ गया जो अपनी एक सैन्य टुकडी के साथ यहाँ के मठ में रहने लगा तब इस मठ के महत्वपूर्ण आचार्य दक्षिण भारत में चले गए बाकी सभी शिष्य अन्य मठों के लिए प्रस्थान कर गये। मुगलो के समय कदवाया के मठ को गढी यानी उपकिला बना कर इसमें मुगलो की एक छाबनी स्थापित कर दी गई। इनके समय में मंदिर के पत्थरों को तोड़ कर एक मस्जिद का निर्माण किया गया और एक बावडी भी बनाई जो आज भी हमें गढी में दिखाई देती है।
1927 में सिंधिया स्टेट के समय एमबी गर्दे नाम के विद्वान पुरातत्व अधिकारी ने इस मठ का जीर्णोद्धार कराया और कदवाया को ग्वालियर की पुरी कह कर इसके महत्व पर प्रकाश भी डाला 1954 में इस क्षेत्र के अधिकांश मठों और मंदिरों को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने अपने संरक्षण में ले लिया । गुमनाम यह मठ और मंदिर आज भले ही अपनी पहचान खो रहे हो लेकिन इनका अस्तित्व हमारी वैभवशाली धार्मिक संस्कृति परंपरा और इतिहास की कहानी वया करता प्रतीत होता है जो हमें गौरवान्वित ही नहीं सम्मानित भी करती है।
कदवाया को लेकर एक कहावत प्रचलित है जो यहाँ के भूगोल ही नहीं संस्कृति पर भी पर्याप्त प्रकाश डालती है ।
"छप्पन मड,चौरासी कुआ,आठ तलैया चार तला। इनके बीच कदवाया वसा।।
वर्तमान में कदवाया के इस मठ और मंदिरों को एक पहचान की जरूरत हो चली हैं गुलामी के लम्बे दौर ने लोगों को अपनी प्राचीन संस्कृति परंपरा इतिहास से बहुत दूर कर दिया है हम फिर से अपनी पहचान को जानना होगा जो विश्व गुरु का दर्जा रखा करती थी ।
1 टिप्पणियाँ
I have visited Kadwaya at the time of last Navaratri,but couldn't visit all due to lack of knowledge. Many thanks for your information.
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