क्या आपने कभी विचार किया है कि, प्रत्येक वर्ष रथ यात्रा के ठीक पहले भगवान जगन्नाथ स्वामी बीमार पड़ते हैं। उन्हें बुखार एवं सर्दी हो जाती है। बीमारी की इस हालत में उन्हें Quarantine किया जाता है जिसे मंदिर की भाषा में अनासार कहा जाता है। भगवान को 14 दिन तक एकांतवास यानी Isolation में रखा जाता है। आपने ठीक पढ़ा है 14 दिन ही। Isolation की इस अवधि में भगवान के दर्शन बंद रहते हैं एवं भगवान को जड़ी-बूटियों का पानी आहार में दिया जाता है यानी Liquid diet और यह परंपरा हजारों साल से चली आ रही है।अब बीसवीं सदी में पश्चिमी लोग हमें पढ़ा रहे हैं कि Isolation & Quarantine का समय 14 दिन होना चाहिए।
*वो हमें ऐसा पढ़ा सकते हैं क्योंकि हम स्वयं सोचते हैं कि हिंदू धर्म अन्धविश्वास से भरा हुआ अवैज्ञानिक धर्म है।
*जो आज हमें पढ़ाया जा रहा है हमारे पूर्वज हजारों साल पहले से जानते थे।
*गर्व करो अपने धर्म पर, अपनी सभ्यता पर और अपनी परंपराओं पर।
जगन्नाथ से जुड़ी दो रोचक कहानियाँ हैं। पहली कहानी में श्रीकृष्ण अपने परम भक्त राज इन्द्रद्युम्न के सपने में आये और उन्हे आदेश दिया कि पुरी के दरिया किनारे पर पडे एक पेड़ के तने में से वे श्री कृष्ण का विग्रह बनायें। राज ने इस कार्य के लिये दक्ष बढ़ई की तलाश शुरु की। कुछ दिनो बाद एक रहस्यमय बूढा ब्राह्मण आया और उसने कहा कि प्रभु का विग्रह बनाने की जिम्मेदारी वो लेना चाहता है। लेकिन उसकी एक शर्त थी – कि वो विग्रह बन्द कमरे में बनायेगा और उसका काम खत्म होने तक कोई भी कमरे का द्वार नहीं खोलेगा, नहीं तो वो काम अधूरा छोड़ कर चला जायेगा। ६-७ दिन बाद काम करने की आवाज़ आनी बन्द हो गयी तो राजा से रहा न गया और ये सोचते हुए कि ब्राह्मण को कुछ हो गया होगा, उसने द्वार खोल दिया। पर अन्दर तो सिर्फ़ भगवान का अधूरा विग्रह ही मिला और बूढा ब्राह्मण लुप्त हो चुका था। तब राजा को आभास हुआ कि ब्राह्मण और कोई नहीं बल्कि देवों का वास्तुकार विश्वकर्मा था। राजा को आघात हो गया क्योंकि विग्रह के हाथ और पैर नहीं थे और वह पछतावा करने लगा कि उसने द्वार क्यों खोला। पर तभी वहाँ पर ब्राह्मण के रूप में नारद मुनि पधारे और उन्होंने राजा से कहा कि भगवान इसी स्वरूप में अवतरित होना चाहते थे और दरवाजा खोलने का विचार स्वयं श्री कृष्ण ने राजा के दिमाग में डाला था। इसलिये उसे आघात चिंतन करने का कोइ कारण नहीं है और वह निश्चिन्त हो जाये क्योंकि सब श्री कृष्ण की इच्छा ही है।
दूसरी कहानी महाभारत में से है और बताती है कि जगन्नाथ के रूप का रहस्य क्या है। माता यशोदा, सुभद्रा और देवकी जी, वृन्दावन से द्वारका आये हुए थे। रानियों ने उनसे निवेदन किया कि वे उन्हे श्री कृष्ण की बाल लीलाओ के बारे में बतायें। सुभद्रा जी द्वार पर पहरा दे रही थी, कि अगर कृष्ण और बलराम आ जायेंगे तो वो सबको आगाह कर देगी। लेकिन वो भी कृष्ण की बाल लीलाओ को सुनने में इतनी मग्न हो गयी, कि उन्हे कृष्ण बलराम के आने का विचार ही नहीं रहा। दोनो भाइयो ने जो सुना, उस से उन्हे इतना आनन्द मिला की उनके बाल सीधे खडे हो गये, उनकी आँखें बड़ी हो गयी, उनके होठों पर बहुत बड़ा स्मित छा गया और उनके शरीर भक्ति के प्रेमभाव वाले वातावरण में पिघलने लगे। सुभद्रा बहुत ज्यादा भाव विभोर हो गयी थी इस लिये उनका शरीर सबसे जयदा पिघल गया (और इसी लिये उनका कद जगन्नाथ के मन्दिर में सबसे छोटा है)। तभी वहाँ नारद मुनि पधारे और उनके आने से सब लोग वापस आवेश में आये। श्री कृष्ण का ये रूप देख कर नारद बोले कि “हे प्रभु, आप कितने सुन्दर लग रहे हो। आप इस रूप में अवतार कब लेंगे?” तब कृष्ण ने कहा कि कलियुग में वो ऐसा अवतार लेंगे और उन्होंने ने कलियुग में राजा इन्द्रद्युम्न को निमित बनाकर जगन्नाथ अवतार लिया।
(हिन्दी मीडिया डाट काम से आभार सहित)
*वो हमें ऐसा पढ़ा सकते हैं क्योंकि हम स्वयं सोचते हैं कि हिंदू धर्म अन्धविश्वास से भरा हुआ अवैज्ञानिक धर्म है।
*जो आज हमें पढ़ाया जा रहा है हमारे पूर्वज हजारों साल पहले से जानते थे।
*गर्व करो अपने धर्म पर, अपनी सभ्यता पर और अपनी परंपराओं पर।
जगन्नाथ से जुड़ी दो रोचक कहानियाँ हैं। पहली कहानी में श्रीकृष्ण अपने परम भक्त राज इन्द्रद्युम्न के सपने में आये और उन्हे आदेश दिया कि पुरी के दरिया किनारे पर पडे एक पेड़ के तने में से वे श्री कृष्ण का विग्रह बनायें। राज ने इस कार्य के लिये दक्ष बढ़ई की तलाश शुरु की। कुछ दिनो बाद एक रहस्यमय बूढा ब्राह्मण आया और उसने कहा कि प्रभु का विग्रह बनाने की जिम्मेदारी वो लेना चाहता है। लेकिन उसकी एक शर्त थी – कि वो विग्रह बन्द कमरे में बनायेगा और उसका काम खत्म होने तक कोई भी कमरे का द्वार नहीं खोलेगा, नहीं तो वो काम अधूरा छोड़ कर चला जायेगा। ६-७ दिन बाद काम करने की आवाज़ आनी बन्द हो गयी तो राजा से रहा न गया और ये सोचते हुए कि ब्राह्मण को कुछ हो गया होगा, उसने द्वार खोल दिया। पर अन्दर तो सिर्फ़ भगवान का अधूरा विग्रह ही मिला और बूढा ब्राह्मण लुप्त हो चुका था। तब राजा को आभास हुआ कि ब्राह्मण और कोई नहीं बल्कि देवों का वास्तुकार विश्वकर्मा था। राजा को आघात हो गया क्योंकि विग्रह के हाथ और पैर नहीं थे और वह पछतावा करने लगा कि उसने द्वार क्यों खोला। पर तभी वहाँ पर ब्राह्मण के रूप में नारद मुनि पधारे और उन्होंने राजा से कहा कि भगवान इसी स्वरूप में अवतरित होना चाहते थे और दरवाजा खोलने का विचार स्वयं श्री कृष्ण ने राजा के दिमाग में डाला था। इसलिये उसे आघात चिंतन करने का कोइ कारण नहीं है और वह निश्चिन्त हो जाये क्योंकि सब श्री कृष्ण की इच्छा ही है।
दूसरी कहानी महाभारत में से है और बताती है कि जगन्नाथ के रूप का रहस्य क्या है। माता यशोदा, सुभद्रा और देवकी जी, वृन्दावन से द्वारका आये हुए थे। रानियों ने उनसे निवेदन किया कि वे उन्हे श्री कृष्ण की बाल लीलाओ के बारे में बतायें। सुभद्रा जी द्वार पर पहरा दे रही थी, कि अगर कृष्ण और बलराम आ जायेंगे तो वो सबको आगाह कर देगी। लेकिन वो भी कृष्ण की बाल लीलाओ को सुनने में इतनी मग्न हो गयी, कि उन्हे कृष्ण बलराम के आने का विचार ही नहीं रहा। दोनो भाइयो ने जो सुना, उस से उन्हे इतना आनन्द मिला की उनके बाल सीधे खडे हो गये, उनकी आँखें बड़ी हो गयी, उनके होठों पर बहुत बड़ा स्मित छा गया और उनके शरीर भक्ति के प्रेमभाव वाले वातावरण में पिघलने लगे। सुभद्रा बहुत ज्यादा भाव विभोर हो गयी थी इस लिये उनका शरीर सबसे जयदा पिघल गया (और इसी लिये उनका कद जगन्नाथ के मन्दिर में सबसे छोटा है)। तभी वहाँ नारद मुनि पधारे और उनके आने से सब लोग वापस आवेश में आये। श्री कृष्ण का ये रूप देख कर नारद बोले कि “हे प्रभु, आप कितने सुन्दर लग रहे हो। आप इस रूप में अवतार कब लेंगे?” तब कृष्ण ने कहा कि कलियुग में वो ऐसा अवतार लेंगे और उन्होंने ने कलियुग में राजा इन्द्रद्युम्न को निमित बनाकर जगन्नाथ अवतार लिया।
(हिन्दी मीडिया डाट काम से आभार सहित)
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