पिछले एक माह से अधिक समय हो रहा ,जब कोरोना नामक प्राकृतिक महामारी से जूझता हर व्यक्ति अपने घरों में रह कर बीमारी से लड़ते हुए सुरक्षित महसूस कर रहा है । वहीं दूसरी तरफ पूरा परिवार एक साथ भी है। उसमें भी पति-पत्नी एक साथ,वह भी चौबीस घंटे?क्योंकि आदिकाल से यही कहा गया है कि दोनों के विचारों में कभी एकरूपता आ ही नहीं सकती । हर घर की कहानी है । जबकि  हमारे धर्मग्रंथो में इस बात का भी उल्लेख है कि किसी भी परिवार की धुरी पति-पत्नी ही होते हैं ,बात सही भी है। तभी तो दोनों लोगों के विषय में यह भी कहते हैं कि एक गाड़ी के दो पहिये हैं दोनों, या फिर उन्हें एक सिक्के के दो पहलुओं की भी संज्ञा तक दे दी गई है । बिलकुल सही है ,दोनों के बिना परिवार चल ही नहीं सकता । दोनों एक दूसरे के पूरक भी तो हैं ।
इस एक माह के दौरान सभी पति-पत्नी एक दूसरे का हाथ भी बटा रहें हैं । आइये कुछ पत्नियों से जानते हैं कि वह अपने पति के बारे में क्या कहती हैं ? 
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 मेरे सांवरिए में भी हुआ काफी बदलाव
बृजबाला दौलतानी ,आगरा ,उत्तर प्रदेश
 
सामान्यतः मेरे श्रीमानजी की गिनती अच्छे पतियों मे की जाती है।  परंतु, दोनों के काम काजी होने के कारण गृह कार्यों मे सहयोग न देने की प्रवृत्ति कई बार मुझे कष्ट प्रद लगती। भारतीय महिला होने के नाते पूरी दम खम लगा कर भी व्यवस्था बनाये रखने की कोशिश करती।   लॉक डाउन के दिन,  हमारे कार्य स्थल बैंक खुले हुए थे।  सुरक्षा की दृष्टि से इन्होंने काम करने आई बाईजी को पहले ही दिन बाहर से ही रुखसत कर दिया था। दो दिन तो किसी तरह जल्दी उठ कर काम चला ।  तीसरे दिन नींद अपने समय से खुली।  घड़ी की रफ्तार को मै पूरी ताकत लगा कर भी थाम पाने मे समर्थ न हो पाने के कारण  रूआसी हो चली थी।  मेरे श्रीमान जी रसोई मे आये, मेरे हाथ से सब्जियाँ ली और काटने बैठ गए । मैंने एक बारगी कहा भी कि " रहने दीजिये मैं कर लूँगी। "वो बोले "तुम क्या क्या करोगी? पति को जीवन साथी ऐसे ही थोड़े ही न कहा जाता है ।"
   मुझे लगा लॉक डाउन ने परिवेश,प्रकृति को तो सँवारा ही है, मेरे  साँवरिये मे भी यह अद्भुत बदलाव
लाकर मेरी सकारात्मकता को एक कदम और आगे बढ़ने मे  मदद की है।
जय हो लॉक डाउन की।  कोरोना अब तुम मेरे प्यारे श्रीमान जी को अधिक तकलीफ़ न देते हुए विदा हो लो ताकि लॉक डाउन भी खुल सके और हम पहले जैसे ही जी सकें।  उनके द्वारा बिना हाथ बँटाये , अपनी क्षमताओं और बाई जी के सहारे ही सही । सच बताऊँ तो कई सालों से यह शिकायत मन के किसी कोने मे दबी रहने के बाद भी उनका सहयोग करना मुझे ही अपराध बोध से ग्रसित करने लगा है।
बृजबाला दौलतानी ,आगरा ,उत्तर प्रदेश
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 अब मुझे स्वयं से ज़्यादा  वे पाज़िटिवनज़र आ रहे हैं 
डॉ. आरती लोकेशगोयल ,दुबईयू.ए.ई.  
यह पीढ़ी उन कुछ भाग्यशाली लोगों की है जिन्हें लॉकडाउन जैसी सर्वाधिक नवीन परिस्थितियों का साक्षी बनने का अवसर प्राप्त हुआ है। वातावरण बदला तो पति के व्यवहार में भी परिवर्तन लक्ष्य किया।
परिवर्तन ही संसार का नियम है, यह पाठ अपने विद्यार्थियों को पढ़ाते-पढ़ाते इतना न समझा होगा जितना कि अब समझ आ रहा है। गृहबंदी के दौरान पति की सर्वथा अनूठी चारित्रिक विशेषताओं से सामना हुआ। छींक मारते ही डॉक्टर का अपोइंट्मेंट लेने वाले मेरे पति अब मुझे डॉक्टर से बस फोन पर ही बात कर लेने की सलाह देने लगे हैं। हर सप्ताहांत रेस्टोरेंट में खाने का शौक छोड़ यू-ट्यूब पर खाना बनाने की नई-नई विधि से खाना पका रहे हैं। तापमान 15 डिग्री हो या 51, प्रतिदिन 5-6 किलोमीटर पैदल चल कसरत करना छोड़ कम्पाऊंड में ही घूमकर काम चला रहे हैं।
 साल में कई विदेशी यात्राओं के शौकीन पति अब विदेशों की वीडियो देखकर मन बहला रहे हैं। घर पर टिके न रह सकने वाले मेरे पति पिछले महीने से एक ही सोफ़े पर टिके हुए अपना आफिस चला रहे हैं। हमेशा मुझे माइक्रोसोफ़्टवर्ड, एक्सेल सिखाने वाले अब मुझसे मेरी ई-लर्निंग की कक्षाओं में काम आने वाले टीम्सऔर अन्य नए-नए एप्स सीख रहे हैं। बच्चों को केवल पढ़ाई का संदेश देते-देते अब नेटफ़्लिक्स की अच्छी सीरीज़भी बताने लगे हैं।
हालात से समझौता न करने वाला व्यक्तित्व लेकर भी बड़ी ही शांति से ताल-मेल बिठाते दीख रहे हैं। रुपए पैसे का सारा प्रबंध स्वयं सँभालते हुए भी मुझे बैंको का लेन-देन सिखा रहे हैं।  जिन्हें मैंने बात-बात पर नैगेटिवहोने का टैग लगाया अब मुझे स्वयं से ज़्यादा पाज़िटिवनज़र आ रहे हैं।
डॉ. आरती लोकेशगोयल ,दुबई, यू.ए.ई.  
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घर के भीतर बंद होकर भी दोनों सुकून से
माला वर्मा ,(पश्चिम बंगाल) 

मेरे पति एक जूट  मिल में मेडिकल आफिसर हें, चूंकि लाक डाउन की वजह से मिल बंद है ,तो इन्हें फुर्सत है । मिल का अपना कैम्पस है ,अपना क्वार्टर है । घरेलू कामों में पत्नी की मदद कारण इनकी शुरू की आदत है । अभी तो मिलजुल कर बड़े आराम से घर का कम हो रहा है । हम दोनों लोगों को गाने-बजाने  एवं साहित्य  से बड़ा लगाव है। आज कल तो हर शाम गाने की महफिल हम दोनों सज़ा ही लेते हैं। इस लाक  डाउन के कई किताबें भी हम दोनों ने पढ़ डाली है । चूंकि में खुद भी एक लेखिका हूँ ,तो मेरा लेखन का कार्य तो चलता ही रहता है ।
 सच कहूँ ,जिंदगी में पहली बार ऐसा मौका मिला है कि हम घर के अंदर बंद होकर भी शांति व सुकून की सांस ले रहे हैं। शौक तो ढेरों हैं ,पहले वक्त कम मिलता था ,अब समय की कमी नहीं है । घर में रह कर कोरोना  से लड़ना है ,साथ ही साथ हम यह भी ध्यान रख रहे हैं  कि किसी जरूरतमन्द की मदद भी जरूर करें। वैसे अपनी तरफ से हम कोई मौका भी नहीं छोड़ रहे हैं । इस आपदा से हमें निपटना है ,जब तक हम एकजुट नहीं होंगे ,सरकार की बात नहीं मानेंगे ,तब तक कोरोना को पराजित नहीं कर पाएंगे।
-माला वर्मा ,24 परगना उत्तर (पश्चिम बंगाल) 

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इस बीच पति देव में दो बदलाव दिखे  .....
रंजना अवस्थी इंदौर 
इस लाक डाउन के दौरान मेरे पति में दो महत्वपूर्ण बदलाव आये, पहले तो आपको बता दूं, हमारे विवाह को 13 साल हो गए, हमारी सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि हम एक दूसरे के सर्वोच्च आलोचक भी है, साथ ही हम दोनों ही उस आलोचना को कभी व्यर्थ नही जाने देते हमेशा कार्य करते हैं दोनो अपनी आलोचना पर। तो चलिए आज आपको वो दोनों बदलाव बताती हूँ जो इस लाक डाउन  में मेरे पति में मैंने पाए।
पहला
मेरे पति हमेशा से ही इन्फॉर्मेशन पसंद व्यक्ति रहे है,अखबार, लेटेस्ट न्यूज़, लेटेस्ट इन्फॉर्मेशन, ये उनके मनपसंद क्षेत्र हैं, संक्षिप्त में कहूँ तो वे सूचनाओं और टेक्नोलॉजी से अपडेट रहते हैं, इंदौर (मध्यप्रदेश) में वैसे भी इस महामारी का आतंक था ही,अभी कॅरोना लोकडौन के माहौल में भी, कहाँ, किस शहर नया आंकड़ा ?कितने पोज़िटिव,? कितने नेगेटिव सब जानकारी वे रख रहे थे,
धीरे-धीरे मैंने महसूस किया कि जहाँ एक ओर मैं ऐसे संजीदा माहौल में भी खुश, प्रश्न और चिंता मुक्त रहती थी , कहीं न कहीं वो थोड़े चिंता से भरे रहते थे।
एक दिन मैंने उनको बतलाया कि किस प्रकार हमे इन्फॉर्मेशन जैसे अखबार टी वी न्यूज़ आदि स्त्रोत लिमिटेड ही रखने चाहिए और इनकी जगह घर पर योग, आद्यात्मिक सूचना, किताबें पढ़ना, कोई नई स्किल सीख कर अपने इस मुश्किल समय को गुज़ारना चाहिए। धीरे-धीरे गौर किया कि लगभग 15 दिन से अब न तो वो सुबह उठते ही अख़बार खोल रहे और न ही एक के बाद एक न्यूज़ चैनल स्विच कर रहे, जिसके स्वत्: ही परिणामवश घर पर हमेशा सकारात्मक और खुशनुमा माहौल बढ़ गया। आज तक के 13 वर्ष के अनुभव में कभी भी मैंने ये बदलाव नही पाया कि वे पूरा एक भी दिन बिन अख़बार के या न्यूज़ अपडेट के गुज़री हों।
अत्यधिक इंफॉर्मेशन जैसे अखबार आदि का आपकी सेहत, खुशी,समृद्धि पर या तो कोई असर नही होगा या नकारात्मक भी हो सकता है।यदि आप ये चींजे घंटो करते हैं तो भले ही आप मानव जाति के इतिहास में सबसे कुशल अखबार पाठक या टेलीविजन दर्शक बन जाएंगे, लेकिन इसका आपके भविष्य पर शून्य प्रभाव पड़ेगा। परिभाषा के अनुसार ये कम महत्व या महत्वहीन काम है क्योंकि इनके सकारात्मक परिणाम नही हैं।
दूसरी ओर सुबह उठकर आधा घंटा पढ़कर, व्यायाम, ध्यान आदि के अन्य सकारात्मक प्रभाव हैं।
दूसरा
यह लोकडौन मेरे लिए बहुत अच्छे बदलाव लेकर आया, मेरे पति एक टेलीकॉम प्राइवेट कंपनी में जॉब के कारण अत्यधिक व्यस्त रहते थे, और मैं घर की पूर्ण जिम्मेदारी संभालती, हम दोनों ही अपने अपने कार्यक्षेत्र को अच्छे से संभालते थे, मेरे पति सफाई पसंद पूर्णतावादी व्यक्ति है, जो भी कार्य करते पूर्ण और परफेक्ट, पर रसोईघर के मामले में वो जीरो ही थे, जिसका sideeffct यह था कि कुछ कुछ मेरी परेशानियां वो समझ ही नही पाते थे, जिसके फलस्वरूप मैं कभी कभी झुझलती थीं पर अन्य कार्यों में उनके परफेक्शन के कारण कुछ कह न पाती थी।कॅरोना के कारण घर पर रहकर मुझे एक उपाय सुझा, हम दोनों ने ही मिलकर अपने काम बांट लिए, मैंने पतिदेव से बोला कि आपको खाना बनाना नही आता आप इस बीच सीख लीजिये क्योकि कई बार अचानक ट्रांसफर से नए शहर में ट्रांसफर के कारण आपको खाना बाहर का लेना पड़ता, तो पतिदेव बोले नही, खाना मेरे बस की बात नही मैं बर्तन धो दूंगा और घर के छोटे मोटे सामान व्यवस्थित रख दूंगा, पानी की बोतले भरना इत्यादि, बाकी भोजन और सफाई मैंने संभाल लिया।
छोटा और एकल परिवार के कारण काम इतना भी ज्यादा नही होता था कि मैं अपने पति के हिस्से वाले काम भी न कर पाऊँ, कई बार तो कढ़ाई, कुकर देख दिल करता ,क्यूं पतिदेव को काम सौंपू खुद ही कर लेती हूं, पर फिर मन मे जगा की नही कुछ तो करना ही होगा इनको, काम करने से ये व्यस्त भी रहेंगे,। अब अपने वादे अनुसार काम मे मदद वाले काम करने के बीच ही इन्होंने किचन में समय व्यतीत करना प्रारंभ किया और धीरे धीरे छोटे मोटे आइटम खाने के ये बनाने भी लगे और साथ ही उनको बनाने की प्रक्रिया में कई बार कुछ अच्छा न बनने पर, यदि अच्छा बना तो कम बनने पर, जल जाने पर, या बनने के उपरांत किचन में अन्य फैले कई कामों की तरफ इनका ध्यान जाने लगा, तो इनको यह अहसास हुआ कि किचन और घर संभालना कंपनी को संभालने से कम टेढ़ा नही। तो आज खुशी हुई कि मेरे पूर्णतावादी पति जिस चीज में अपूर्ण थे उस ओर कदम बढ़ा लिया उन्होंने, ये बदलाव मेरे लिए जीवन भर कोरोना इफेक्ट के नाम से याद रखूंगी।
- रंजना -मनीष अवस्थी , इंदौर (मध्यप्रदेश) 
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शुरू से ही हेल्पफूल नेचर के हैं  पतिदेव
सत्या शर्मा कीर्ति रांची
मेरे पतिदेव का स्वभाव शुरु से ही हेल्पफुल रहा है ।शादी के बाद से ही वो हमेशा मेरी मदद करते रहे चाहे घर का काम हो या बाहर का ।ऐसे में इस लॉकडौन में वो और भी ज़्यादा घर और हम सभी पर ध्यान दे रहें है जबकि ऑन लाइन वर्क भी रहता है । बाहर जाना मुश्किल है फिर भी जब भी जरूरत होती है खुद ही जाते हैं । मेरे उठने के पहले ही कई काम समेट देते हैं । मुझे और मेरे बच्चों को तो इसी बात की खुशी है कि वो इतने लम्बे समय से हमारे साथ रह रहे हैं क्योंकि वो यू.पी. में पोस्टेट हैं और मैं और बच्चे रांची में रहते हैं।
-सत्या शर्मा ' कीर्ति ' रांची , झारखण्ड 

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बेटी का पूरा ख्याल रख रहे हैं वो
चाँदनी सेठी कोचर,नई दिल्ली
मेरे पति यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर हैं । इसलिए उनकी अधिकतर छुट्टी शनिवार और इतवार को रहती है। उन दो दिनों में वह सिर्फ अपने प्रोजेक्ट्स पर काम करते थे। क्योंकि प्रोफेसर के साथ ही साथ वह इंग्लिश राइटर भी है। इसलिए काम उनके पास बहुत रहता है। लेकिन लॉक डाउन के दौरान मैंने उन मे काफी बदलाव देखा, उनको घर पर रह  कर पता लग गया कि मेरी पत्नी अपना सारा काम और पढ़ाई छोड़कर अपने 7 माह की बच्ची की परवरिश में दिन रात एक कर रही है जिसके चलते न वह समय से खाना खाती है, न अपना ध्यान रखती है । बस अपना सारा दिन अपनी छोटी बच्ची और पति पर लगा देती है। जब उन्हें इस बात का अहसास हुआ तो उन्होंने उसी दिन से बेटी की ज़िम्मेदारी खुद ले ली, और मुझसे सिर्फ इतना कहा कि तुम बस बानी को खाना खिला दिया करो, क्योंकि खाते समय वह बहुत ज़िद करती है बाकि मैं सारा दिन उसके पास हूँ। और मैं उसका अच्छे से ध्यान रखूंगा। तुम अपने आप और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो । वह भी तुम्हारे लिए उतनी ही जरूरी है जितना मैं और बानी ।
जब से उनको अहसास हुआ है , तब से ही वह मेरे साथ घर के कामों मे भी मेरा साथ दे रहे है। साथ ही घर मे राशन का समान क्या - क्या लाने वाला है इसकी भी सूची वही बनाते हैं। बनी का डाइपर से उसको नहलाने तक की ज़िम्मेदारी भी उन्होंने अपने पर ले रखी है ! शायद उनको समझ आ गया कि माँ को जितना समय बच्चे को देना पड़ता है , उतना ही समय एक पिता को भी अपने बच्चे को देना चाहिए ताकि ज़िंदगी बिलकुल सही और अच्छे से चल सके !
कहा जाए तो इस लॉक डाउन में मेरे पति में तो बहुत ही बदलाव आया है। लेकिन साथ ही मेरी ये भी दुआ है कि सब जल्दी से ठीक हो जाये। ताकि सब फिर से अपने कामों में लग सके और सभी की जिंदगी में फिर एक रफ़्तार सी आ जाये।
चाँदनी सेठी कोचर,रोहणी ,नई दिल्ली