स्वयंवर के बाद अयोध्या लौटने पर श्री राम एवं सीता जी का टीका करते हुए बहन शांता (चित्रकार की परिकल्पना ) |
हिमाचल के कुल्लू में है रानी शांता एवं ऋंगी ऋषि का मंदिर,जहां होती है पति-पत्नी की एक साथ पूजा
डॉ प्रदीप श्रीवास्तव
शांता (चित्रकार की परिकल्पना ) |
अभी तक हम यही पढ़ते व सुनते आ रहे हैं कि सूर्यवंशी राजा दशरथ के चार पुत्र थे ,लेकिन कभी भी यह नहीं सुना कि उनकी कोई पुत्री भी थी । महर्षि वाल्मीकि जी द्वारा रचित बाल्मीकी रामायण हो या गोस्वामी तुलसी दास की श्री रामचरित मानस । कहीं भी राजा दशरथ की पुत्री का उल्लेख नहीं मिलता है । कुछ दिनों पहले कि बात है एक रामकथा वाचक की कथा के दौरान जब राजा जनक की पुत्री का उल्लेख किया गया तो मेरे मन में जिज्ञासा उठी यह जानने कि क्या राजा दशरथ की कोई पुत्री भी थी। काफी खोज बीना के बाद यह पता चला कि दक्खिन की रामायण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि श्री राम , लक्ष्मण ,भारत एवं शत्रुघ्न के अलावा राजा जनक एवं माता कौशल्या को शांता नमक एक कन्या भी थीं ,जो बेहद सुंदर थीं। वह भगवान राम से बड़ी थीं। जिनका लालन-पालन अंग देश के राजा रोमपद ने किया था। इस कथा के पीछे एक किवदंती बताई जाती है ,जिसके मुताबिक अयोध्या की रानी कौशल्या की एक बहन थीं ,जिनका नाम था वर्शिनी , जो निःसंतान थीं । जिन्होंने ने एक दिन अपने जीजा राजा दशरथ एवं बहन कौशल्या से मज़ाक-मज़ाक में उनकी बेटी शांता को मांग लिया। सूर्यवंशी राजा दशरत ने 'रघुकुल रीति सदा चली आई । प्राण जाए पर वचन न जाई॥' वाली बात को चरितार्थ करते हुए उन्होने सहर्ष शांता को अपनी साली को सौंप दिया। यही शांता बाद में अंग देश की राजकुमारी शांता कहलाई । जिनका लालन-पालन करने वाले अंग देश के राजा रोमपद एवं रानी वर्शिनी ने राजकुमारी शांता का विवाह ऋषिश्रंगा से कर दिया। कहते हैं कि ऋषिश्रंगा एवं राजकुमारी शांता का ही वंश आगे चलकर सेंगर राजपूत कहलाया ,जिन्हें आज ऋषिवंशी कहा जाता है।
जब भी सौंदर्य का नाम आता है तो भगवान राम का नाम ही आता है । मिले विवरणों के मुताबिक भगवान राम की बहन शांता उनसे कहीं अधिक सुंदर थीं । जिन्हें वेदों में भी महारत हासिल थी। राजकुमारी शांता की शादी के विषय में भी एक किवदंती बताई जाती है। कहते हैं कि एक बार एक किसान अपने क्षेत्र में फसल के पैदावार की मदद के लिए अंग देश के राजा रोमपद के पास गए , लेकिन राजा रोमपद ने उनकी बात को अनसुनी कर दिया। उधर अपने भक्त की इस अनदेखी पर इन्द्र्देव ने अंग देश में बरसात ही नहीं होने दी। जिसके कारण वहाँ सूखा पड़ गया । राजय में वर्षा न होने से हा-हा-कार मच गया । तब राजा रोमपद ने ऋषि ऋषिश्रंगा को यज्ञ के लिए आमंत्रित किया। यज्ञ समाप्त होते ही अंग देश में भरी वर्षा हुई ,जिससे वहाँ की प्रजा ने खुशी में दीपावली मनाई । इससे प्रभावित हो कर राजा दशरथ ,माता कौशल्या एवं राजा रोमपद ने शांता का विवाह ऋषि ऋषिश्रंगा के साथ कर दिया।
एक अन्य कथा के मुताबिक एक बार जब अयोध्या में अकाल पड़ा तो राजा दशरथ से पुरोहितों ने कहा कि पुत्री का दान किए बिना इस अकाल से मुक्ति मिलना संभव नहीं है । हालांकि राजा किसी को भी अपनी पुत्री यूं ही सौंपने को तैयार नहीं हुए । उस युग में राजा दशरथ के सबसे करीबी मित्र राजा रोमपद हुआ करते थे , रोमपद की कोई संतान नहीं थी । दशरथ ने पुरोहितों की बात मानकर शांता को अपने एक निःसंतान मित्र और अंग के राजा रोमपद को दान कर दिया । बाद में रोमपाद ने एक सफल यज्ञ से खुश होकर शांता का विवाह ऋंगी ऋषि के साथ करवा दिया.
कुल्लू (हिमाचल) स्थित रानी शांता का मंदिर। |
दशरथ और उनकी तीनों रानियां राज्य के उत्तराधिकारी को लेकर बहुत चिंतित थीं. कुलगुरू वशिष्ठ ने ने राजा दशरथ और उनकी पत्नियों को सलाह दी कि दामाद ऋंगी ऋषि की देखरेख में पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाएं । दशरथ ने यज्ञ में देश के कई महान ऋषियों के साथ ऋंगी ऋषि को मुख्य ऋत्विक बनने के लिए आमंत्रित किया इस यज्ञ के लिए पत्नी को आमंत्रित न किए जाने पर ऋंगी ऋषि बेहद दुखी हुए. आखिरकार दशरथ ने मुश्किल की घड़ियों में शांता को भी न्योता भेजा. ऋंगी ऋषि के साथ शांता के अयोध्या पहुंचते ही राज्य में कई सालों बाद भरपूर वर्षा होने लगी. हालांकि इतने वर्षों बाद बेटी को सामने देख दशरथ उन्हें पहचान नहीं पाए. दशरथ ने हैरान होकर पूछा- 'देवी, आप कौन हैं? आपके पांव रखते ही अयोध्या में चारों ओर वसंत छा गया है.' शांता ने अपना परिचय दिया तो पुत्री और माता-पिता की बरसों से सोई स्मृतियां भी जागीं और भावनाओं के कई बांध भी टूटे. यज्ञ के सफल आयोजन के बाद शांता ऋषि श्रृंग के साथ लौट गई।
देवी शांता के बारे में वाल्मीकि रामायण में कोई उल्लेख्य नहीं मिलता लेकिन दक्षिण के पुराणों में स्पष्ट रूप से शांता के चरित्र का वर्णन किया गया हैं | हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में श्रृंग ऋषि का मंदिर हैं एवम वहां से 60 किलोमीटर की दुरी पर देवी शांता का मंदिर हैं | यह भी कहा जाता हैं कि राजा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए देवी शांता का त्याग किया था | वैसे तो देवी शांता एक परिपूर्ण राजकुमारी थी लेकिन बेटी होने के कारण उनसे वंश वृद्धि एवम राज कार्य पूरा नहीं हो सकता था इसलिये राजा दशरथ को उनका परित्याग करना पड़ा |कहते हैं कि इस प्रकार जब चारों भाई अपनी बहन शांता से मिलते हैं तो वे अपने भाइयों से अपने त्याग का फल मांगती हैं और उन्हें सदैव साथ रहने का वचन लेती हैं | भाई अपनी बहन के त्याग को व्यर्थ नहीं जाने देते और जीवन भर एक दूसरे की परछाई बनकर रहते हैं |
एक अन्य कथा के मुताबिक रावण को अपने पितामह ब्रह्मा से पता चला कि उसकी मृत्यु कौशल्या और दशरथ के यहां जन्में दिव्य बालक के हाथों होगी इसलिये रावण ने कौशल्या को विवाह पूर्व ही मार डालने की योजना बनाई। उसने कौशल्या को अगवा कर एक डिब्बे में बंद कर सरयू नदी में बहा दिया उधर विधाता भी अपना खेल रच रहा था, दशरथ शिकार करके लौट रहे थे उनकी नजर रावण के भेजे राक्षसों के इस कृत्य पर पड़ गई लेकिन जब तक दशरथ वहां पहुंचते मायावी राक्षस अपना काम करके जा चुके थे। राजा दशरथ अब तक नहीं जानते थे कि डिब्बे में कौशल नरेश की पुत्री कौशल्या है उन्हें तो यही आभास था कि हो न हो किसी का जीवन खतरे में है। राजा दशरथ बिना विचारे ही नदी में कूद गये और डिब्बे की तलाश में लग गये। कुछ शिकार के कारण और कुछ नदी में तैरने के कारण वे बहुत थक गये थे यहां तक उनके खुद के प्राणों पर संकट आ चुका था वो तो अच्छा हुआ कि जटायु ने उन्हें डूबने से बचा लिया और डिब्बे को खोजने में उनकी मदद की। तब डिब्बे में बंद मूर्छित कौशल्या को देखकर उनके हर्ष का ठिकाना न रहा। देवर्षि नारद ने कौशल्या और दशरथ का गंधर्व विवाह संपन्न करवाया। अब विवाह हो गया तो कुछ समय पश्चात उनके यहां एक कन्या ने जन्म लिया लेकिन यह कन्या दिव्यांग थी। उपचार की लाख कोशिशों के बाद समाधान नहीं निकला तो पता चला कि इसका कारण राजा दशरथ और कौशल्या का गौत्र एक ही था इसी कारण ऐसा हुआ समाधान निकाला गया कि कन्या के माता-पिता बदल दिये जायें यानि कोई इसे अपनी दत्तक पुत्री बना ले तो इसके स्वस्थ होने की संभावना है ऐसे में अंगदेश के राजा रोमपाद और वर्शिनी ने शांता को अपनी पुत्री स्वीकार कर लिया और वह स्वस्थ हो गई। युवा होने के बाद ऋंग ऋषि से शांता का विवाह करवाया गया।
यह सब कोरी कल्पना:शीतला सिंह (संपादक ,जनमोर्चा)
भगवान श्री राम की बहन शांता के बारे में फ़ैज़ाबाद (अब अयोध्या) से प्रकाशित हिन्दी दैनिक जनमोर्चा के प्रधान संपादक श्री शीतला सिंह जी कहते हैं कि भगवान राम की कोई बहन नहीं थी। यह सब कोरी कल्पना है। वह आगे कहते हें कि एक साकेत डिग्री कालेज में आयोजित एक सेमिनार में एक विद्वान ने भी यही बात राखी थी , जिस पर काफी विवाद भी हुआ था। वे कहते हें "में जरा सा भी इस बात से सहमत नहीं हूँ?
मुझे यह बात निरर्थक लगती है:प्रकाश दुबे (समूह संपादक भास्कर ,नागपुर)
भगवान राम की बहन शांता के बारे में पूछने पर भास्कर ,नागपुर के समूह संपादक प्रकाश दुबे कहते हैं कि मैं न तो रामचरित मानस का मर्मज्ञ हूँ न ही ज्ञाता । यह बात मुझे निरर्थक लगती है । में तो इतना कहना चाहूँगा कि हमें अतीत से प्रेरणा लेनी चाहिए।
दक्षिण की रामायणों में है इस तरह की जानकारी:डॉ राधेश्याम शुक्ल (वरिष्ठ पत्रकार)
अयोध्या निवासी श्री राम चरित मानस पर शोध कर चुके वरिष्ठ पत्रकार डॉ राधेश्याम शुक्ल कहते हें कि अपने दोनों रामायण में शांता के बारे में कोई उल्लेख नहीं मिलता है । दक्षिण की रामायण में जरूर इस बात की जानकारी दी गई है । वह भी कल्पनाशील हो सकती है? जहां तक मैं समझता हूँ उत्तर भारत में इस तरह का कोई उल्लेख नहीं मिलता है ।
चित्रकार की परिकल्पना में कैनवास पर साकार हुईं रानी शांता |
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