पद्मनाभस्वामी मंदिर का एक विहंगम दृश्य |
केरल का पध्नाभास्वामी मंदिर
प्रदीप
श्रीवास्तव
आज
से लगभग 9 साल पहले सन 2011 में केरल के पद्मनाभस्वामी मंदिर के तहखाने से सिलसिलेवार
मिले अकूत खजाने से पूरे देश क्या दुनिया में
सनसनी फैल गई थी । उस समय मंदिर केवल दो तहख़ानों से लगभग पचहतर हजार करोड़ की
अकूत दौलत निकली थी|जबकि अभी पांच तहख़ानों
की खोजबीन की जानी है| इसे देखते हुए यह कहा जाए कि स्वामी पध्नाभास्वामी का मंदिर सोना उगलने वाला मंदिर है ,तो कोई अतिश्योक्ति
नही होगी| कहते हैं कि इन तहखानो को 1872 के बाद से खोला ही नहीं गया था| बताया जाता है कि त्रावणकोर
राजाओं ने अंग्रेजों से बचाने के लिए अपने खजाने को मंदिर के तहखाने मैं छुपा
कर रख दिए थे |जिसे वे इसका उपयोग आकाल जैसी आपदा के समय में करना चाहते
थे |मंदिर से तब पचास हजार
करोड़ के जेवरात के साथ-साथ एक टन सोना मिला था |वहीँ भगवान विष्णु
की सोने की एक मूर्ति मिली है जिस पर हीरे व् जवाहररात जैसे कीमती रत्न जड़ें हैं| जिसकी कीमत आज तक आंकी ही नहीं गई |इसके अलावा शुद्ध सोने
की बनी कई आकृतियाँ भी मिली हैं जिका वजन एक-एक किलो है तथा उनकी लम्बाई अठारह फुट
है| जबकि सिक्कों और कीमती
पत्थरों से भरी कई बोरियां तो है हीं ,साथ ही 35 किलो वजनी
गहने भी मिलें हैं |बताया जा रहा है कि मंदिर में छह तहखाने हैं , जिन्हें ‘ए’से
लेकर ‘ऍफ़’ तक का नाम दिया गया है|उस समय केवल दो तहखाने
को ही खोला गया था।
प्रश्न यह उठता है कि आखिर उस ब्रह्मचारी और विष्णु के भक्त, जो दशकों से दिन में तीन बार मंदिर में प्रार्थना करता था,को न्यायिक हस्तक्षेप कराने के लिए क्यों बाध्य होना पड़ा ? इस संदर्भ में सुंदरराजन का कहना था कि इसकी शुरुआत 1997 में उस समय हुई जब उन्होंने तत्कालीन त्रावणकोर राज परिवार के प्रमुख 89 वर्षीय उतरदम तिरुनल मार्तंड वर्मा का एक संदेश देखा । उस संदेश में उन्होंने इस प्रसिद्ध खजाने का मुआयना करने की इच्छा जाहिर की थी.इस पर सुंदरराजन का कहना था कि , ''मुझे डर लगा कि खजाने को पार किया जा सकता है । इस पर उन्होंने 'क्वो वारंटो' हासिल कर लिया या दूसरे शब्दों में कहें तो हाइकोर्ट से मंदिर पर ट्रिब्यूनल के अधिकार को चुनौती दिलवाई । इसकी वजह से तत्कालीन राज परिवार और उसके मुखिया के साथ उनका कई बार टकराव भी हुआ था । सुंदरराजन मंदिर का प्रशासनिक कार्य देखने वाले त्रावणकोर के शाही परिवार, खासकर उसके अंतिम महाराजा श्रीचित्र तिरुनल बलराम वर्मा, जिनका 1991 में देहांत हो गया, के काफी करीबी थे. श्रीचित्र की जगह उनके छोटे भाई उतरदम तिरुनल ने ली जो अब शहर के पट्टोम पैलेस में रहते हैं । सुंदरराजन के अनुसार , ''राज परिवार के कुछ सदस्यों ने दावा किया कि वे मंदिर और उसके खजाने के मालिक हैं. इसी दावे की वजह से मुझे यह मिशन बनाना पड़ा । ''तब उन्होने 2009 में राज्यि हाइकोर्ट में याचिका दाखिल करके मंदिर का प्रशासन सरकार के हवाले करने को कहा । इस पूर्व पुलिस अधिकारी ने खजाने का मुआयना करने के बाद आरोप लगाया था कि उसमें से कुछ हिस्सा निकाल लिया गया होगा । उनका कहना था कि , ''खजाना काफी हद तक सही-सलामत लगता है. पेंटिंग के लिए रखा गया करीब 2.7 टन सोने का डस्ट (या धूल) गायब हो गया है। शायद मंदिर को सील कराने से पहले ही उसे चुरा लिया गया होगा.'' इस आरोप की पुष्टि करना महज इसलिए मुश्किल है क्योंकि उस सोने का हिसाब बहीखाते में नहीं लिखा गया था।
इस बीच 2011 में
रविवार 17 जुलाई की एक सुबह संक्षिप्त बीमारी
के बाद पदनाभास्वामी मंदिर के सबसे अहम् व्यक्ति टी.पी.सुन्दरम की निधन हो गया,उस समय वे सत्तर वर्ष
के थे|सुंदरराजन विगत दो
दिनों से बुखार से पीडित थे। टीपी सुंदरराजन
ने ही मंदिर में दबे खजाने की जांच की मांग की थी |। वे सुप्रीम कोर्ट
के आदेश के बाद बनी सात सदस्यीय कमेटी के भी सदस्य थे। सुंदरराजन 1964 बैच के भारतीय
पुलिस सेवा के अधिकारी थे। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी की सुरक्षा
में लगे स्टाफ में भी काम किया था। लेकिन बाद में उन्होंने नौकरी छोड दी थी और वे वकालत
करने लगे थे। वे मंदिर परिसर में ही रहते थे, लेकिन कुछ दिनों पूर्व
मंदिर प्रबंधन ने उन्हें परिसर से बाहर निकालने का आदेश दिया था |
‘भागवान पध्नाभ’ को केरल के तिरुअनंतपुरम में पारिवारिक देवता
के रूप में मन जाता है| इतिहासकारों के मुताबिक इस मंदिर का निर्माण त्रावणकोर वंश
के शासक राजा मार्तंड वर्मा ने अठारहवीं शताब्दी में करवाया था| जिसे भव्य स्थापत्य
कला एवम ग्रेनाईट के स्तंभों की लम्बी श्रंखला के लिए जाना जाता है|मंदिर के गर्भगृह में
हजार सिर वाले शेषनाग पर लेटी हुई भागवान विष्णु की विशाल प्रतिमा है| उल्लेखनीय है कि लोककथाओं
में इस बात का उल्लेख है कि मंदिर की दीवारों एवम तहखानों में राजाओं ने हीरे जवाहरात
छिपा दिए थे|स्वतंत्रता के बाद इस मंदिर का कामकाज त्रावणकोर राजघराने
के नेतृत्व में बनी एक ट्रस्ट देखती है |जिसके मुखिया राजघराने के मौजूदा उतराधिकारी करते हैं ,जो मैनेजिंग ट्रस्टी
भी होते हैं ।
कहानी मंदिर के संपत्ति की
मंदिर के रिकॉर्ड के मुताबिक, इसका निर्माण 10वीं
सदी में आर्य वंश ने कराया था, जो त्रावणकोर राज परिवार से पहले यहां राज करते थे । राजमहल के दस्तावेजों में 15वीं सदी के दौरान भी
मंदिर में रखे भगवान के स्वर्ण आभूषणों का जिक्र है । लेकिन इतना धन कहां से आया ? इसकी कोई विधिवत
जानकारी नहीं मिलती । अधिकतर लोग सिद्धांत त्रावणकोर राजवंश के संस्थापक और दक्षिण
केरल को एकजुट करने वाले योद्धा राजकुमार मार्तंड वर्मा को इसका श्रेय देते हैं । वर्मा
ने एक के बाद एक अभियानों में स्थानीय राजाओं को अपने अधीन कर लिया था । कहते हैं कि उन्होंने एक डच समुद्री बेड़े के हमले
को भी नाकाम करके उसके बेलजियम निवासी कमांडर यूस्टेकियस डी लिनॉय को गिरफ्तार कर लिया
था । विशेष बात तो यह थी कि उन्होंने महत्वपूर्ण कालीमिर्च के व्यापार पर अपना कब्जा
कर लिया । जिसकी वजह से यूरोपीयन लोग केरल
आते थे । सन 1750 तक त्रावणकोर राज कोच्चि से कन्याकुमारी तक फैल गया । ऐसा लगता
है कि उस समय उनके पास सोने की कभी नहीं रही । कहते हैं कि कोलंबिया के 'अल डोराडो' एक वार्षिक समारोह
में मार्तंड वर्मा ने सोने के एक बर्तन में स्नान किया और उसे तोड़कर ब्राह्मणों में
बांट दिया । इसके अलावा, उन्होंने अपने वजन के बराबर सोना दान किया । इसके बाद उन्होंने मंदिर के उसके मौजूदा स्वरूप में पुनर्निर्माण किया. उन्होंने
1750 में एक भव्य समारोह में अपना राज प्रासाद , पद्मनाभस्वामी
को समर्पित कर दिया । जो उसके बाद से 'त्रावणकोर के शासक' के बतौर जाने जाने
लगे । वर्मा और उनके शासक भगवान के दास या ''पद्मनाभदासों'' के रूप में
शासन करने लगे. यह अपने प्रतिद्वंद्वियों को चकमा देने और अपने शासन को दैविक स्वीकृति
दिलाने की रणनीतिक चाल भी थी। मंदिर और उसके भगवान, काले रंग के शालिग्राम
पत्थर से बनी विष्णु की मूर्ति जो 100 फनों वाले नाग पर विश्राम की मुद्रा में आरूढ़
हैं, राजवंश से पूरी तरह
जुड़ गए । वर्षों तक राजाओं और भक्तों के चढ़ावे, कर और उपहार मंदिर
के खजाने में जमा होते रहे । यह मंदिर ऐसे
इलाके में स्थित है जहां कोई हमला नहीं हुआ ।
सिर्फ एक बार मैसूर के शासक टीपू सुल्तान ने हमला किया था लेकिन त्रावणकोर की
अग्रिम पंक्ति के रक्षक दलों ने 1790 में कोच्चि के पास उसे परास्त कर दिया था । यह साम्राज्या 1947 में भारतीय संघ में शामिल हो
गया हालांकि उसके दीवान, सर सी.पी. रामस्वामी अय्यर ने कुछ समय तक आजादी हासिल करने
की कोशिश की थी । त्रावणकोर धार्मिक संस्थान कानून 1951 के तहत तत्कालीन रियासत के
शासक को मंदिर के प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंप दी गई । यह विशेषाधिकार 1971 में पूर्व रियासतदारों के निजी
खर्च भत्ते (प्रिवीपर्स) को खत्म किए जाने तक हासिल था । त्रावणकोर राज परिवार काफी अमीर है और अपनी जायदाद
के किराये एवं निवेशों से अपना खर्च चला रहा है ।
सन 2011 के
31 जनवरी को न्यायमूर्ति के. सुरेंद्र मोहन और न्यायमूर्ति सी.एन. रामचंद्रन नायर की
सदस्यता वाली हाइकोर्ट की पीठ ने सुंदरराजन की याचिका को मंजूरी दे दी । पीठ ने राज्य् सरकार को तीन महीने के भीतर मंदिर
प्रबंधन और संपत्तियों को अपने हाथ में लेने के लिए एक प्राधिकरण के गठन का आदेश दिया
। पीठ ने कहा कि त्रावणकोर शाही परिवार मंदिर
और उसकी संपत्तियों पर अपना दावा नहीं ठोक सकता ।
अदालत ने उतरदम तिरुनल की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि 1991 में उनके
भाई की मौत के बाद उस मंदिर पर केवल राज्यल सरकार का स्वामित्व हो सकता है । ट्रिब्यूनल ने
इस आदेश को चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी विशेष अवकाश याचिका के आधार पर हाइकोर्ट
के आदेश पर रोक लगा दी. लेकिन न्यायमूर्ति आर.वी. रवींद्रन और न्यायमूर्ति ए.के. पटनायक
की सदस्यता वाली पीठ ने तहखानों को खोलने और संपत्ति का विस्तृत ब्यौरा बनाने का आदेश
दे दिया । तहखानों को खोलने और उसकी निगरानी
के लिए सात सदस्यीय समिति बना दी गई, जिसमें हाइकोर्ट के दो पूर्व न्यायाधीश और राज्ये सरकार का
एक वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं ।
छठे तहखाने में बंद
है कई रहस्य ?
उल्लेखनीय है कि तिरूवनंतपुरम। सुप्रीम कोर्ट में पद्मनाभस्वामी मंदिर के छठे तहखाने को खोलने के सवाल पर सुनवाई चल रही थी तो दूसरी तरफ पद्मनाभस्वामी मंदिर के सामने लोग पूजा-पाठ और हवन कर रहे थे। इन्हें डर था कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने छठे दरवाजे को खोलने की इजाजत दे दी और दरवाजा तोडा गया तो भगवान पkनाभस्वामी नाराज हो जाएंगे और फिर होगा...सर्वनाश! सन 1930 में एक अखबार में छपा एक लेख बेहद ही डरावना था। लेखक एमिली जी हैच के मुताबिक 1908 में जब कुछ लोगों ने पद्मनाभस्वामी मंदिर के छठे तहखाने के दरवाजे को खोला गया तो उन्हें अपनी जान बचाकर भागना पडा, क्योंकि तहखाने में कई सिरों वाला किंग कोबरा बैठा था और उसके चारों तरफ नागों का झुंड था। जान बचाने के लिए सारे लोग दरवाजा बंद करके जान बचाकर भाग खडे हुए। तहखाने में छुपा है कई सिरों वाला नाग कहा जा रहा है कि एक विशालकाय किंग कोबरा जिसके कई सिर हैं और उसकी जीभ कांटेदार है वो मंदिर के खजाने का रक्षक है।
उल्लेखनीय है कि तिरूवनंतपुरम। सुप्रीम कोर्ट में पद्मनाभस्वामी मंदिर के छठे तहखाने को खोलने के सवाल पर सुनवाई चल रही थी तो दूसरी तरफ पद्मनाभस्वामी मंदिर के सामने लोग पूजा-पाठ और हवन कर रहे थे। इन्हें डर था कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने छठे दरवाजे को खोलने की इजाजत दे दी और दरवाजा तोडा गया तो भगवान पkनाभस्वामी नाराज हो जाएंगे और फिर होगा...सर्वनाश! सन 1930 में एक अखबार में छपा एक लेख बेहद ही डरावना था। लेखक एमिली जी हैच के मुताबिक 1908 में जब कुछ लोगों ने पद्मनाभस्वामी मंदिर के छठे तहखाने के दरवाजे को खोला गया तो उन्हें अपनी जान बचाकर भागना पडा, क्योंकि तहखाने में कई सिरों वाला किंग कोबरा बैठा था और उसके चारों तरफ नागों का झुंड था। जान बचाने के लिए सारे लोग दरवाजा बंद करके जान बचाकर भाग खडे हुए। तहखाने में छुपा है कई सिरों वाला नाग कहा जा रहा है कि एक विशालकाय किंग कोबरा जिसके कई सिर हैं और उसकी जीभ कांटेदार है वो मंदिर के खजाने का रक्षक है।
अगर छठे दरवाजे के तहखाने को खोला गया तो वो किंग
कोबरा बिजली की रफ्तार से पानी के अंदर से निकलेगा और सब कुछ तहस-नहस कर देगा। वैसे
नागों के जानकारों का कहना है कि तहखाने के अंदर किसी भी किंग कोबरा के जिंदा रहने
की संभावना नामुमकिन है। क्योंकि बंद तहखाने के अंदर ऑक्सीजन न के बराबर है और न ही
खाने-पीने का कोई सामान है। ऎसे हालात में किंग कोबरा प्रजाति का कोई भी नाग जिंदा
नहीं रह सकता है। लेकिन धार्मिक मान्यताएं और आस्थाएं इन दलीलों को नहीं मानतीं इसलिए
लोग किसी भी अनहोनी को टालने के लिए लगातार पूजा-पाठ कर रहे हैं।
जब कि ज्योतिषाचायों
का मानना है कि नाग धन का रक्षक है इसलिए पहले नाग प्रतिमा की पूजा की जानी चाहिए वरना
तहखाना खोलने की कोशिश खतरनाक भी साबित हो सकती है। इससे तिरूअनंतपुरम और पूरे राज्य
पर संकट आ सकता है। वैसे बंद तहखाने को खोलने के लिए शास्त्रों में विधि बताई गई है।
सबसे पहले सांप की पहचान की जाए, जो खजाने की रक्षा कर रहा है। इसके बाद वैदिक और शास्त्रों
की पद्धतियों से नाग की उस जाति की पूजा कर उसे प्रसन्न किया जाए। इसके बाद तहखाना
खोला गया तो किसी प्रकार के अपशकुन से बचा जा सकता है।
एक अन्य किवदंती के मुताबिक करीब 136 साल पहले तिरूअनंतपुरम में
अकाल के हालात पैदा हो गए थे । तब मंदिर के कर्मचारियों ने इस छठे तहखाने को खोलने
की कोशिश की थी और उन्हें इसकी कीमत चुकानी प़डी थी। अचानक उन्हें मंदिर में तेज रफ्तार
और शोर के साथ पानी भरने की आवाजें आने लगी थीं। इसके बाद उन्होंने तुरंत दरवाजे को
बंद कर दिया था। शहर के लोगों का मानना है कि मंदिर का ये छठा तहखाना सीधे अरब सागर
से जु़डा है जो इस पूरे राज्य को पश्चिमी दुनिया से जो़डता है।
कहा तो यहाँ तक
जाता है कि त्रावणकोर शाही घराने ने अपने वक्त के ब़डे कारीगरों से एक तिलिस्म बनवाया
है जिसमें समंदर का पानी भी शामिल है। वजह ये कि अगर उस वक्त कोई खजाने को हासिल करने
के लिए छठा दरवाजा तो़डता तो अंदर मौजूद समंदर का पानी बाकी खजाने को बहा ले जाता और
किसी के हाथ कुछ नहीं लगता। महान आत्माएं जाग जाएंगी सभी छह तहखाने मंदिर के मुख्य
देवता पद्मनाभ स्वामी की मूर्ति के चारों तरफ मौजूद हैं । इनमें तहखाने मूर्ति के सिर
की तरफ मौजूद हैं। मान्यता है कि छठा तहखाना महान आत्माओं की समाधि है । और अगर इसे
खोला गया तो वो महान आत्माएं जाग जाएंगी और विनाश होगा। इन्हीं मान्यताओं की वजह से
यहां लोग छठे तहखाने का दरवाजा नहीं खोलना चाहते।
ढह जाएगा पूरा मंदिर
कयास ये भी हैं
कि मंदिर की बनावट कुछ इस तरह की है कि छठे तहखाने से उसकी नींव का रिश्ता है। कहा
जा रहा है कि तहखाने में लोहे की दीवार है और इससे छे़डछ़ाड की गई तो मंदिर के भरभराकर
गिरने का अंदेशा है।हो सकता है और ज्यादा खजाना अब तक के पांच तहखानों में एक लाख करो़ड
से भी ज्यादा दौलत पाई गई है। इतनी दौलत एक साथ पहले किसी ने नहीं देखी थी लेकिन लोगों
की मान्यता है कि ये दौलत तो कुछ भी नहीं क्योंकि छठे दरवाजे में इतनी दौलत मौजूद है
कि अब तक की मिली दौलत बौनी साबित होगी।
यह मामला
2011 में उस समय प्रकाश में आया था जब एक सत्तर साल के बुजुर्ग, पूर्व आइपीएस अधिकारी
टी.पी. सुंदरराजन ने एक अकल्पनीय काम किया था . वे श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर से बमुश्किल
100 फुट की दूरी पर एक साधारण से ब्राह्मण
बस्ती में रहते थे .उन्होंने एक याचिका दाखिल की जिसकी बदौलत मंदिर के तहखानों को नाटकीय
ढंग से खोलने का आदेश मिला और फिर इतना खजाना मिला जिसके बारे में कुछ लोगों का आकलन
है कि वह एक लाख करोड़ रु. से अधिक का है (
उस समय के केरल के पूर्व मुख्य सचिव सी.पी. नायर के मुताबिक, मंदिर के खजाने का
बाजार भाव पांच लाख करोड़ रु. से अधिक हो सकता है.) इसने केरल के सबसे बड़े मंदिर को
शायद दुनिया की सबसे धनी धार्मिक स्थान बना दिया । इसने उस राज्यी को चकित कर दिया
था , जो भारत के
936 टन वार्षिक सोने के उपभोग का करीब 20 फीसदी
इस्तेमाल करता है। और इसने खजाने के स्वामित्व
पर पेचीदा सवाल खड़े कर दिए थे .सुंदरराजन सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित उस सात सदस्यीय
समिति के सदस्य थे जो गर्भ गृह के इर्दगिर्द के छह तहखानों में गई और वहां का मुआयना
किया । उनकी सफेद दाढ़ी उनके खुले सीने पर लहराती
रहती थी और कभी-कभी वे ऑक्सीजन मास्क लगाए रहते थे |समिति के अन्य सदस्यों
के साथ वे दो तहखानों में गए. मंदिर के भूरे ग्रेनाइट फर्श के पांच फुट नीचे चार सीढ़ियां
उतरने पर उन तहखानों में हजारों फ्रांसीसी और डच सोने के सिक्कों, हीरे और सोने की मूर्तियों
और हीरा जड़ित जेवर समेत 1 टन सोना मिला.मंदिर अधिकारियों ने उस खजाने की कीमत 1 लाख
करोड़ रु. आंकी है, लेकिन इसमें उसके सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और पुराने
होने के मूल्य को शामिल नहीं किया गया है. फ्रांसीसी औपनिवेशिक काल के 5 ग्राम के एक
असली सोने के सिक्के, 'नैपोलियन' का मौजूदा बाजार भाव 10,000 रु. से थोड़ा अधिक
होगा. लेकिन संग्रहकर्ताओं के लिए 1 लाख रु.
हो सकते हैं । इस बीच सुंदरराजन ने इससे भी
बड़े खजाने की ओर संकेत किया था जो जमीन के नीचे स्थित एक तहखाना, जहां माना जाता है
कि त्रावणकोर के शासक मलयालम कैलेंडर के आखिरी महीने करकिडिकम के दौरान मंदिर के अंदरूनी
हिस्से में तांबे के बर्तनों में सोने के सिक्के रखते थे. वे कहते थे कि , ''यह प्रथा सदियों
तक चली , लेकिन उस तहखाने के रास्ते के निशान मिट गए हैं.''पश्चिम बंगाल कैडर के 1964 के अधिकारी सुंदरराजन ने खुफिया ब्यूरो
में सहायक निदेशक के रूप में काम किया और वे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के भी
करीबी सहयोगी थे । उन्होंने छह साल बाद आइपीएस
से इस्तीफा दे दिया| इस संदर्भ मैं उनका कहना था कि ''मैं अंदरूनी
राजनीति नहीं झेल सका''-और सुप्रीम कोर्ट में वकालत शुरू कर दी. लेकिन 80 के दशक
में अपने पैतृक इलाके तिरुअनंतपुरम में ''अपने पिता को प्रतिदिन पद्मनाभस्वामी मंदिर ले जाने की खातिर'' वकालत भी छोड़
दी ।
प्रश्न यह उठता है कि आखिर उस ब्रह्मचारी और विष्णु के भक्त, जो दशकों से दिन में तीन बार मंदिर में प्रार्थना करता था,को न्यायिक हस्तक्षेप कराने के लिए क्यों बाध्य होना पड़ा ? इस संदर्भ में सुंदरराजन का कहना था कि इसकी शुरुआत 1997 में उस समय हुई जब उन्होंने तत्कालीन त्रावणकोर राज परिवार के प्रमुख 89 वर्षीय उतरदम तिरुनल मार्तंड वर्मा का एक संदेश देखा । उस संदेश में उन्होंने इस प्रसिद्ध खजाने का मुआयना करने की इच्छा जाहिर की थी.इस पर सुंदरराजन का कहना था कि , ''मुझे डर लगा कि खजाने को पार किया जा सकता है । इस पर उन्होंने 'क्वो वारंटो' हासिल कर लिया या दूसरे शब्दों में कहें तो हाइकोर्ट से मंदिर पर ट्रिब्यूनल के अधिकार को चुनौती दिलवाई । इसकी वजह से तत्कालीन राज परिवार और उसके मुखिया के साथ उनका कई बार टकराव भी हुआ था । सुंदरराजन मंदिर का प्रशासनिक कार्य देखने वाले त्रावणकोर के शाही परिवार, खासकर उसके अंतिम महाराजा श्रीचित्र तिरुनल बलराम वर्मा, जिनका 1991 में देहांत हो गया, के काफी करीबी थे. श्रीचित्र की जगह उनके छोटे भाई उतरदम तिरुनल ने ली जो अब शहर के पट्टोम पैलेस में रहते हैं । सुंदरराजन के अनुसार , ''राज परिवार के कुछ सदस्यों ने दावा किया कि वे मंदिर और उसके खजाने के मालिक हैं. इसी दावे की वजह से मुझे यह मिशन बनाना पड़ा । ''तब उन्होने 2009 में राज्यि हाइकोर्ट में याचिका दाखिल करके मंदिर का प्रशासन सरकार के हवाले करने को कहा । इस पूर्व पुलिस अधिकारी ने खजाने का मुआयना करने के बाद आरोप लगाया था कि उसमें से कुछ हिस्सा निकाल लिया गया होगा । उनका कहना था कि , ''खजाना काफी हद तक सही-सलामत लगता है. पेंटिंग के लिए रखा गया करीब 2.7 टन सोने का डस्ट (या धूल) गायब हो गया है। शायद मंदिर को सील कराने से पहले ही उसे चुरा लिया गया होगा.'' इस आरोप की पुष्टि करना महज इसलिए मुश्किल है क्योंकि उस सोने का हिसाब बहीखाते में नहीं लिखा गया था।
आई पी एस स्व टी पी सुंदररजन |
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