यहाँ पत्थरों का सीना चीर कर बहती हैं "माँ नर्मदा"
डॉ प्रदीप श्रीवास्तव 
बात कोई 70 के दशक की है , लखनऊ से उन दिनों प्रकाशित होने वाला  एक हिन्दी  दैनिक अखबार अपनी लोकप्रियता के शीर्ष पर था । जिसके साप्ताहिक परिशिष्ट रविवारीय’ (तब टेबलाईट आकार में निकलता था) को पढ़ने के लिए पाठक व्याकुल रहते थे । उसमे एक फोटो प्रतियोगिता आयोजित की गई थी , जिसमे से एक फोटो को अपने कवर पर प्रकाशित किया था, जिसमे दो संगमरमर की चट्टानों के बीच श्वेत निर्मल जल में एक मल्लाह अपनी नाव को खे रहा है, सुबह के समय का दृश्य रहा होगा ,क्यों कि फोटो श्वेत-श्याम (ब्लेक एंड व्हाइट) में प्रकाशित हुआ था । जिसने मुझे इतना प्रभावित किया कि मै ने उस जगह की जानकारी के लिए अखबार के संपादक को पत्र लिखा और उस जगह की जानकारी मांगी, जिसका जवाब देते हुए संपादक जी ने लिखा कि यह जगह जबलपुर के भेड़ाघाट की है ,जो नर्मदा के तट पर स्थित है । बस तभी से मेरे मन में बैठ गया कि एक दिन उसे देखने जरूर जाऊंगा ।  
लेखक भेड़ाघाट के संगमरमर की चट्टानों पर 
हाल ही में तेलंगाना महाराष्ट्र की यात्रा से वापस आ रहा था ,लेकिन टिकट सीधे लखनऊ तक न मिल पाने की वजह से पहले जबलपुर तक फिर वहाँ से लखनऊ तक का मिला । जबलपुर में अगली गाड़ी पकड़ने के लिए पूरे 12 घंटे का समय ,सोचा क्या किया जाए इतने समय का ? स्टेशन पर स्थित मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग के कार्यालय प्रमुख से मिला और सलाह मांगी कि इस समय का सदुपयोग वहाँ पर क्या देख कर सकता हूँ , तो उन्होने कहा कि सबसे बेहतर होगा कि आप भेड़ाघाट देख आइये ,हाँ लौटते समय चौसठयोगनि मंदिरदेखना मत भूलिएगा ,जो अपने आप में अनूठा है ।
स्टेशन से निकल कर बाहर एक दक्षिण भारतीय व्यक्ति के ठेले पर इडलीसांभर खाया और आटो पकड़ कर निकल पड़ा अपने गंतव्य भेड़ाघाट की ओर ..., ऊबड़ खाबड़ रस्तों से होता हुआ माँ नर्मदा के तट पर स्थित भेड़ाघाट।  संगमरमरी चट्टानों से सजा ये गांव नर्मदा नदी के तट पर बसा है। मानचित्र में इसकी स्थिति 23’8’’ उत्तर, 78’48’’ पूर्व, एमएसएल 408 मीटर है । पश्चिम मध्य रेल के इलाहाबाद तथा इटारसी को जोड़ने वाले मुख्य मार्ग पर जबलपुर स्टेशन से भेड़ाघाट की दूरी 25 किलोमीटर है । आंखों को सुकून देकर मन मोह लेने वाले झरने, संगमरमरी चट्टानें और अपने आकर्षक दृश्य के लिए यह विश्व प्रसिद्ध है। वहाँ पर सैलानियों का हुजूम देखते बना,घाट पर अपार समूह , रंग बिरंगे परिधान में महिलाएं,बच्चे व युवतियाँ ,कोई स्नान कर रहा है तो कोई नर्मदा के बीच पड़े चट्टानों में अपने जान की परवाह न करते हुए सेल्फी लेने में मशगूल ।
मै भी एक चट्टान पर बैठ माँ नर्मदा के अविरल प्रवाह को देखते हुए कभी बचपन में  कैप्टन जे फोरसिथ के उन वाक्यों का स्मरण करने लगता हूँ, जो उन्होने अपनी किताब ‘’हाई लैण्डस ऑफ सैण्ट्रल इंडिया ‘’ में लिखा था । जिसमे वे लिखते हें किऐसा सुन्दर दृश्य देख आँखे थकती नहीं जब इन शफ्फाक चट्टानों से सूर्य की किरणें छनछन कर, टकरा कर पानी पर पडती हैं. इन सफेद चट्टानों की ऊँची नुकीली पंक्तियां नीले आकाश और गहरे नीले पानी के बीच अपनी रूपहली आभा लिए दूर तक दिखाई देती हैं।कहीं धूप, कहीं छांव का यह मोहक खेल और दूर तक फैली शान्ति आपको अलग ही दुनिया में ले जाती है। इन चट्टानों में बहती नर्मदा नदी का पाट इन चट्टानों के अनुरूप घटता बढता रहता है। कहीं संकरी तो कहीं चौड़ी । वे आगे लिखते हें कि इस दृश्य को देखते हुए ऑखें कभी नहीं थकती... सूर्य की विखंडित किरणें खुले नीलेआकाश से परावर्तित होकर आ रही है,सफेद दूधिया चमचमाते संगमरमर की चोटी से परावर्तित होकर शुभ्र किरणें आसपास की चट्टानों से टकराती हुई मानों जल में विलीन होती है । आसपास स्थित लाइम स्टोन हरी और काली चट्टानों के बीच एक संधि रेखा का निर्माण करती है जिससे उत्पन्न विषमता जेट सा प्रतीत होती है। यहाँ नौका विहार की सुविधा नवम्बर माह से मई तक होती है। यहाँ भेडाघाट में धुंआधार फाल्स एक और देखने योग्य स्थान है।
  भेड़ा घाट  जिसका मूल नाम भैरव घाट था। यह नर्मदा नदी के किनारे लगे मार्बल रॉक्स या संगमरमर की चट्टानों की सैर के लिए प्रसिद्ध है। यहां स्थित संगमरमर सफेद, गुलाबी और नीले इत्यादि रंगों वाले हैं जिसका नजारा बॉलीवुड की कई फिल्मों में भी आपने जरूर देखा होगा। यहां चांदनी रात में नर्मदा के चांदी के समान जल का नजारा वाकई जादू से भरा होता है।
   10वीं शताब्दी में निर्मित और देवी दुर्गा को समर्पित चौसठ योगिनी मंदिर यहां का अन्य आकर्षण है जबकि मार्बल रॉक्स से होते हुए नर्मदा नदी नीचे की ओर गिरते हुए धुंआधार नामक जल-प्रपात का निर्माण करती है जो यहां का खास स्थल है जिसका शोर दूर-दूर तक सुना जा सकता है। भेडाघाट में नर्मदा नदी को पार करने के लिए रोपवे भी लगी है जो सैलानियों के लिए बडा आकर्षण है।
  मै अपलक उस दृश्य को जो नर्मदा के दोनों ओर 100 फीट ऊंची संगमरमर की चमचमाती चट्टाने भेडाघाट के गौरव को महिमा मंडित करती है। सफेद संगमरमर की चोटी पर पडती चमचमाती सूरज की किरणें और निर्मल जल पर चितकबरीछाया बिखेरती हुई दृश्य शांत,स्नेहिल और निश्चलता की एक प्रतिमूर्ति है। काले और गहरे हरे ज्वालामुखी की परतों को निहारने से ये चट्टाने वास्तव में तेजस्वी लगती हैं और चॉदनी रात में अपना जादू बिखेरती है। यह पवित्र नदी शांत भाव से आगे बढते हुए खडी चट्टानों के बीच निरंतर प्रवाहित होती हैं जो प्रकृति के बदलते हुए स्वरूप को आइने के रूप में प्रतिबिंबित करती है। यहॉ से थोडी ही दूर पर नर्मदा की धाराएं प्रबल वेग से गिरती हुई एक जलप्रपात का निर्माण करती है,जिसे धुंआधार के नाम से जाना जाता है।
धौलाधार जलप्रपात ,भेड़ाघाट 
  अभी मै यहाँ सौंदर्य का रसपान कर ही रहा हूँ कि एक फोटोग्राफर मेरी तंद्रा को भंग करते हुए कहता है ,साहब बहुत खूबसूरत जगह है यह , आप भी अपनी एक फोटो खिंचवा लीजिये ,एक यादगार रहेगी ? अभी मै कुछ बोलूँ कि वह फिर से एक और सवाल दाग देता है ? अकले आयें हें, बीबी बच्चों को नहीं लाए , क्यों ? चलिये कोई बात नहीं अगली बार जरूर लेते आइएगा। आप नहीं भी लाएंगे तो वह खुद फोटो देख कर आप को ही ले आएंगे , बड़े आत्मविश्वास के साथ वह बोले जा राहा है,और मै सुनता जा राहा हूँ । आदमी रोचक लगा , इस शर्त पर फोटो की बात तय होती है कि प्रिंट नहीं चाहिए ,केवल सीडी मै सभी फोटो दे देगा , और उसके साथ नर्मदा के किनारे किनारे चल पड़ता हूँ ,वह मुझे लगभग नर्मदा के बीच एक ऊंची चट्टान पर ले जाता , जहां से वहाँ का दृश्य देखते ही बनता है , मै अपने सामने उस चट्टान से देख रहा हूँ सामने  चारों ओर फैले पर्वतों में से विंध्य और सतपुडा पर्वतों के मिलन स्थल पर 1065 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं, अमरकंटक हिंदुओं के लिये एक पवित्र तीर्थ स्थल हैं और सोन नदी का उदगम स्थल हैं। नर्मदा अमरकंटक से पश्चिम की ओर बहती है जबकि सोन पूर्व की ओर। नर्मदा वास्तव में प्रकृति का वरदान हैं। पवित्र तालाब ऊंचे पर्वत,चारों ओर वन,मनोहारी सुंदर जलप्रपात और व्यापक हवाएं अमरकंटक को निर्मल बनाती है जो धार्मिक विचारधारा वाले प्रकृति प्रेमियों को दूर से खींच लाती है। तभी वह बताता है कि आप जहां पर खड़े हैं यहीं कुछ साल पहले ‘’अशोका’’ फिल्म की शूटिंग यहीं पर हुई थी ,अरे वही जिसमे शाहरुख खान और करीना कपूर थे। वह बोलता जा रहा है , और मै कुछ अलग सोच रहा हूँ । भारत के सभी पवित्र नदियों में से नर्मदा एक विशिष्ठ स्थान रखती हैं। मान्यता यह है कि भगवान शंकर ने पवित्र करने की शक्ति नर्मदा को दी है। नर्मदा नदी पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली भारत की सबसे लंबी नदी है, जिसे स़िर्फ नदी न मानकर देवी मां अमृतस्य का नाम माना गया है. यह देश के उत्तर तथा दक्षिण को सांस्कृतिक रूप से विभाजित करती हुई उत्तरी अंचल के विंध्य पर्वत श्रृंखला के अमरकंटक से निकलती है. अमरकंटक के उद्‌गम स्थल से 327 किलोमीटर के पश्चिम की ओर बहने के बाद नर्मदा भेड़ाघाट के संगमरमरी नगरी में प्रवेश करती है. यहां पर नदी अपनी चौड़ाई की तिहाई भाग तक सिकुड़ जाती है और नदी 32 मीटर की ऊंचाई वाली शक्तिशाली एवं अद्भुत संगमरमरी चट्टानों के मध्य से लगभग 3.22 किलोमीटर की दूरी तक प्रवाहित होकर निकलती है. यह भेड़ाघाट का ऐसा सौंदर्यमयी अद्भुत दृश्य है जो संभवत: विश्व में अद्वितीय है. भारत वर्ष की सभी नदियों में यह एक ऐसी नदी है जो भेड़ाघाट में पत्थरों का सीना चीरकर प्रवाहित होने वाली प्रसिद्ध नदियों में अतुलनीय है. स्वच्छ पारदर्शी चौंधियाने वाला शांत जल, कल-कल, क्षल-छल करता तट का निर्माण करने वाली संगमरमरी चट्टानों के विस्तृत नीले गगन के नीचे आश्चर्यजनक चकाचौंध छंटा उत्पन्न करती है. स़फेद बर्फीली चोटियों के नीचे परिवर्तित होने वाला सूर्य प्रकाश अपने तेज़ को खोकर सोने की गेंद की तरह परिवर्तित हो जाता है. सबसे खूबसूरत नज़ारा तो रात का होता है जब आसमान में फैले तारे और चांद, भेड़ाघाट के शांत जल में चमकते हैं. ऐसा लगता है मानो करोड़ों जुगनू जल में आईने की तरह अपनी खूबसुरती निहार रहे हों और चांद पानी में ज़रा सी हलचल से नृत्य शुरू करने लगता हो. चांदनी रात में जब जल विस्तार दूर-दूर तक आसमान से जुड़ा दुधिया रंग की चादर के समान परिवर्तित हो जाता है तब यह किसी सपने की दुनिया से कम नहीं होता. ऐसे में खड़ी नुकीली रंग-बिरंगी चट्टानों के बीच नौकायन निश्चय ही अद्भुत आनंद देने वाला होता है. इस अनंत सौंदर्य से आंखें नहीं थकतीं और कान निर्जन एकांत में पानी की लगातार होने वाली कल-कल, छल-छल की ध्वनि सुनते नहीं अघाते. इस पावन और ताकतवर नदी के एक संकरे स्थान पर जहां गहराई वाली विपरीत तटों की संगमरमरी चट्टानें एक दूसरे के नज़दीक आती हैं, उसे यहां रहने वाले लोगों ने बंदर कूदनी नाम दिया है.
संगमरमरी चट्टानों के बीच बहती माँ नर्मदा 
   सूर्य देवता विश्राम के लिए पश्चिम की ओर भागे जा रहे हें, और मुझे गाड़ी पकडनी है , इसी बीच मै एक ढाबे क्या गुमटी कहें ,में चाय पीने लगता हूँ ,इसी बीच वह फॉटोग्राफर एक सीडी ला कर मुझे दे देता है ,उससे अगली बार मिलने का वादा कर चौसठयोगनि मंदिर की ओर पैदल ही चल पडता हूँ, लगभग 125 सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद मंदिर तक पहुंचता हूँ । शिल्पकला का अद्भुत दृश्य देखने को मिलेगा आप को । जहां से आप नर्मदा नदी को दूर से निहार सकते हें ।
चलते - चलते एक नज़र जबलपुर भी डालते चलें ,जबलपुर की मनोहारी प्राकृतिक सुन्दरता की वजह से 12शताब्दी में गोंड राजाओं की राजधानी रही , उसके बाद कालाचूडी राज्य के हाथ रहा और अन्तत: इसे मराठाओं ने जीत लिया और तब तक उनके पास रहा जब तक कि ब्रिटिशर्स ने 1817 में उनसे ले न लिया। जबलपुर में ब्रिटिश काल के चिन्ह आज भी मौजूद हैं, कैन्टोनमेण्ट, उनके बंगले और अन्य ब्रिटिश कालीन इमारतें। जबलपुर देश के सभी प्रमुख शहरों से सीधे रेलसेवा से जुड़ा है । निकटतम हवाई अड्डा , भोपाल व नागपुर ।