कमाल अमरोही साहब के नायाब फिल्म पाकीज़ाके पचास साल

डॉ प्रदीप श्रीवास्तव

 आज से पूरे पचास साल पहले आज के ही दिन (2 फरवरी 1972) कमाल अमरोही साहब की सुपर-डुपर फिल्म "पाकीज़ा" रूपहले पर्दे पर रिलीज़ हुई थी। जिसका मुहूर्त 1957 में हुआ था ,लेकिन पर्दे पर आई पूरे 15 साल बाद । इस फिल्म के पीछे भी कई कहानिया प्रचलित है, फिल्म को 15 साल क्यूँ लगे उसकी भी अलग दास्तान है । उन दिनों तकनीकी का इतना प्रयोग नहीं होता था । फिर भी पाकीज़ा आज भी हिन्दी फिल्मों की सरताज बनी हुई है। बहुत ही कम लोगों को पता है कि पाकीज़ा की शूटिंग महाराष्ट्र के औरंगाबाद के खुलताबाद तहसील में हुई थी । खुलताबाद वही जगह है जिसे आज भी सूफी संतों का शहर कहा जाता है। इसी शहर में औरंगजेब  अपने गुरु की कब्र के पास आज भी चीर निंद्रा में सोये है । मोहम्मद बिन तुगलक यद्यपि अधिक दिन तक के लिए  इस क्षेत्र को राजधानी तो नहीं बना  सका , लेकिन इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में इस क्षेत्र का नाम जरूर अंकित करा दिया ।

     हाँ तो बात हो रही थी पाकीज़ा की ,कमाल अमरोही साहब जब इस फिल्म को बना रहे थे तो उन्होने इसी शहर के कुछ जगहों पर फिल्म की शूटिंग का मन बनाया । बताते हैं कि उन्हें इस भूमि से काफी लगाव था ,अक्सर वह यहाँ आते रहते थे । पाकीज़ा फिल्म कि शुरुआत ही खुलताबाद से होती है। शुरुआत में मीना कुमारी की बहन जिस जगह पर मीना कुमारी ( फिल्म में नरगिस) से मिलने  आती है ,वह जगह औरंगाबाद-महेसमाल मार्ग  मुंडी  टेकरीपर आज भी खंडहर के रूप मैं  मौजूद है ,जिसका कोई पुरसहाल नहीं है। इसी के पीछे उर्स मैदान है ,जहां पर नरगिस यानि मीना कुमारी को मृत्यु के बाद दफनाया (पाकीज़ा फिल्म मैं)जाता है। मज़े की बात तो यह है कि आज पचास साल बाद भी वह टम्प्रेरी कब्रउसी तरह स्थित है, जैसा आप ने पाकीज़ा में देखा होगा। यह दृश्य तब का है जब कब्रिस्तान की रखवाली करने वाली एक महिला एक सुनार के यहाँ कंगन बेचने जाती है, जो नरगिस (मीना कुमारी) की बड़ी बहन का पति होता है। कंगन देख कर वह चौंक पड़ती है और उस महिला से पूछती है कि उसे यह कहाँ से मिला, इस पर वह महिला बताती है कि उसके कब्रिस्तान में एक महिला कई दिनों से रह रही,वह अपने बारे में किसी को कुछ नहीं बताती है। इस पर नरगिस कि बहन उससे कहती है कि मुझे उसके पास ले कर चलो । जब वह वहाँ पहुँचती है तब तक नरगिस दुनिया को अलविद कह चुकी होती है , बहन उसकी बेटी को लेकर चली आती है और उसे वही मुंडी की टेकरी के निकट ही उर्स मैदानमें दफना दी जाती है।

     दूसरा दृश्य है खुलताबाद शहर के फर्श मोहल्लेका , औरंगजेब की भी कब्र यहीं पर है (पाकीज़ा में इसका कोई कोई उल्लेख नहीं है,यहाँ केवल जानकारी के लिए ही उल्लेख कर रहा हूँ।) यहीं पर एक मस्जिद है ,जिसके सामने एक बुक स्टाल पर वहीं के मास्टर जी दुकान वाले से एक किताब की मांग करते रहते हैं ,एक दिन दुकानदार को वह किताब मिल जाती है ,तभी उधर से गुज़र रहे मास्टर जी को आवाज़ देते हैं कि .... मास्टर जी ...मास्टर जी  आप कि वह किताब मिल गई है। मास्टर जी उससे वह किताब खरीद लेते हैं। जब वह किताब को पलटते हैं तो उसमें से एक पत्र उन्हें मिलता है ,जिसे नरगिस (मीना कुमारी )ने अपने प्रियतम (अशोक कुमार) को लिखा होता है । पत्र पढ़ कर मास्टर जी विचलित हो उठाते हैं कि किस तरह संबन्धित व्यक्ति तक पत्र पहुंचाया जाय। फिर भी लगन के पक्के मास्टर जी नायक तक पत्र पाहुचने में सफल हो जाते हैं। यहीं से पाकीज़ा फिल्म फ्लेश बैक में शुरू होती है।

   इसी 26 जनवरी को "प्रणाम पर्यटन" पत्रिका के "औरंगाबाद विशेषांक" के विमोचन के लिए खुलताबाद मैं था तो मेरे सहयोगी विजय चौधरी ने इन जगहों को दिखाया । समय के साथ काफी कुछ बादल गया है, फर्श मोहल्ले में जहां किताब कि दुकान (फिल्म) में लगी थी ,वहाँ पर पक्की दुकाने बन गईं हैं , फिर भी वहाँ पर एक बोर्ड तो लगाया जा सकता है कि 'पाकीज़ा' फिल्म कि शूटिंग यहीं  पर हुई थी । एलोरा ,दौलतबाद आने वाले सिनेमा प्रेमी पर्यटक जरूर इस जगह को देखना पसंद करेंगे । जिस खंडहर में मीना कुमारी की मौत होती है उसे संरक्षित किया जा सकता है। फिल्म में उसकी बनी कब्र को भी सुरक्षित करने से पर्यटकों में देखने की जिज्ञासा जरूर होगी। इसके लिए खुलताबाद के स्थानीय लोगों के अलावा जिला प्रशासन एवं प्रदेश सरकार को पहल करनी होगी की उस जगह को इतिहास के रूप मैं संरक्षित करें। 

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