विशेष संवाददाता 

बनारस, प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र ,बाबा भोले नाथ की नगरी ,जिनके कभी प्रतिनिधि के रूप में लोकप्रियता होती थी काशी  राज्य के पूर्व नरेशों की . उन्हीं में से एक काशी नरेश थे डॉ विभूति नारायण सिंह . उस समय अवागमन के लिए इतने सुख सुविधा वाले साधन नहीं थे, हवाई जहाजों के उड़ानों की संख्या भी नगण्य थी. ऐसे में काशी नरेश को आने जाने के लिए अपने साधनों का प्रयोग करना पड़ता था. तब उनके लिए भारतीय रेल के सहयोग से एक विशेष सैलून (बोगी) का निर्माण किया गया था. बताते हैं कि यह सैलून नौ रत्नों से जड़ा हुआ था. सन 1947 मैं देश स्वतंत्र हुआ तो उसके बाद राजशाही परम्परा भी ख़त्म हो गई. फिर इस सैलून को काफी दिनों तक वाराणसी के कैंट स्टेशन में ही खड़ा कर दिया गया . पंडित कमला पति त्रिपाठी जी जब तक रेल मंत्री रहे ,तब तक यह सैलून प्लेट फार्म नंबर तीन पर बीच  में एक विशेष लाइन डाल  कर  रखा गया था. सूत्रों के मुताबिक बाद में इसे डी एल डब्ल्यू के 'राजा यार्ड' में एक विशेष केबिन में खड़ा कर दिया गया है. जहाँ जाने की किसी को भी अनुमति नहीं है . 

जब काशी  नरेश को कहीं आना-जाना होता था तो वे और उनका परिवार इसका उपयोग करता था. पूरा सैलून राजशाही  की डिज़ाइन में बना हुआ है . जिसे उस दिशा की ओर आने - जाने वाली गाड़ियों में जोड़ दिया जाता था. मज़े की बात है कि इस सैलून के बारे मैं अधिकांश काशीवासियों को भी पता नहीं है, जिसे है भी उन्हों ने इसे हलके  में ही लिया. भारतीय रेल का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है यह सैलून. जिसे ठीक-ठाक कर पर्यटकों के लिए भारतीय रेल उपयोग में  ला सकती है . इससे काशी आने वाले पर्यटकों के बीच एक और आकर्षण होगा,साथ  ही राजस्व में ईजाफा भी . 

राजा यार्ड वाराणसी रेल कर्मियों के बीच  एक लोकप्रिय सांकेतिक चिन्ह भी है. उधर से गुजरने वाली हर गाड़ियों का लोकेशन राजा यार्ड के नाम से ही दिया जाता है. सूत्र बताते हैं रेलकर्मी ड्यूटी पर तैनात अपने सहयोगियों के बीच संकेत के रूप में कहते हैं की गाड़ी राजा यार्ड से निकल चुकी है ,या आने वाली  है. 

(पूरी स्टोरी प्रणाम पर्यटन के अक्तूबर-दिसंबर-21 के अंक में पढ़ें )