29 पहले औरंगाबाद के देवगिरी समाचार में  छपी रचना 

प्रदीप श्रीवास्तव

बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर भारत में ही जन्मे थे. श्री जिमी कार्टर 1 अक्तूबर 1924 को हरियाणा के गुड़गांव जिले में ही जन्मे थे. गुड़गांव शहर से लगभग तीन किलोमीटर दूर एक गांव है चौमारवेडा. सन 1924 में इसी चौमारवेडा के एक साधारण से प्राथमिक चिकित्सा केंद्र में पैदा हुए थे. श्री कार्टर की मां वहीं पर नर्स नियुक्त थीं. हरियाणा की भूमि पर जन्में जिमी नामक बालक ने बड़े होकर दुनिया के एक बड़े देश अमेरिका की बागडौर सम्हाली थी. चौमारवेडा गांव का नाम कार्टर पूरी कर दिया गया था. 

कहते हैं कि 197 7 में जब जिमी कार्टर भारत आये थे तो आनन-फानन में इसका नाम बदल कर कार्टर पुरी कर दिया गया था . उस वक्त हरियाणा के मुख्यमंत्री चौधरी देवी लाल थे. अमेरिकी राष्ट्रपति ने उस समय इसका विकाश करना चाहते थे लेकिन देवी लाल ने यह  आश्वाशन दे कर टाल  दिया था कि इस गांव का विकास हरियाणा सरकार करेगी.इस पर अमेरिकी राष्ट्रपति चुप्पी साध गए.  गुड़गांव से करीब तीन किलोमीटर दूर बसे ऐतिहासिक गांव कार्टर पुरी का अब तक केवल नाम ही बदलता रहा है. लेकिन इसका नसीब ज्यों का त्यों बना हुआ है. इसका इतिहास उतना ही पूराना है जितना पुराना हिंदु-मुस्लिम भाईचारा. इसकी पुष्टि में यद्यपि


समूचित साक्ष्य  जुटा पाना  संभव नहीं है फिर भी जो मिलते है उनके मुताबिक यहां हिंदु-मुसलमानों के दो बड़े परिवार एक दूसरे से थोड़ी दूरी पर बसे थे, हिंदु परिवार के मुखिया का नाम दौलतराम व मुस्लिम परिवार के मुखिया का नाम नसीरा (नसीरुद्दीन) था. यह अंग्रेजों के भारत आगमन से भी पहले की बात है. तब इन परिवारों के निवास स्थान को दौलत का खेड़ा अथवा नसीरा का खेड़ा कहा जाता था. परिवारों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ इन खेड़ो की दूरी घटती गई और ये दोनों ही खेड़े फैलकर एक गांव का स्वरूप  लेने लगे. इसके बाद स्थानीय लोगों के लिए इस गांव का नाम दौलत का  खेड़ा ही  रह गया. जबकि सरकारी कागजों में यह दौलतपुर नसीराबाद लिखा हुआ है. स्वतंत्रता के बाद इस गांव को चौमारवेडा गांव का नाम फिर बाद में कार्टरपुरी  कर दिया गया था.

जिमी कार्टर की जन्मभूमि 'कार्टरपुरी' (गुड़गांव) का अब तक केवल नाम ही बदलता रहा है. उसका नसीब ज्यों का त्यों ही है, गांव का इतिहास उतना ही पुराना है जितना हिंदू मुस्लिम भाई चारे का है. आबादी आज भी लगभग ढाई लाख के आसपास है. मार्च सन 1977 में राष्ट्रपति बनने के बाद श्री कार्टर भारत आए थे. तब वह गुड़गांव के चौमारवेडा का नाम बदलकर कार्टर पुरी कर दिया गया था. उस वक्त हरियाणा के मुख्यमंत्री थे चौधरी देवीलाल. गांव वालों का कहना है कि उस दिन श्री कार्टर चाहते थे कि इस गांव का विकास हो, परंतु चौधरी देवीलाल के इस आश्वासन पर कि यहां का विकास हरियाणा सरकार करेगी. वह चुप हो गए थे. परंतु आज तक कार्टर पुरी का कोई विकास नहीं हो पाया है. जबकि आज भी वह अस्पताल जीर्णशीर्ण अवस्था में हैं. साथ ही कार्टर पुरी नामक रेलवे स्टेशन भी है. यहां यह भी बताना आवश्यक है कि जिमी कार्टर आजकल अमेरिका अभी खड़ी हुई हैं. आजादी के करीब तीस वर्ष तक यह दौलतपुर नसीराबाद रहा लेकिन इसी बीच 1977 में यह भेद खुला कि संयुक्त राज्य अमेरिका के तत्कालिन राष्ट्रपति जिमी कार्टर की पैदाईस भी इसी दौलतपुर नसीराबाद में हुई थी व उनकी मां उस समय अंग्रेजी राज्य के दौरान यहां नर्स के में कार्यरत थी. वर्ष १९७७ में श्री जिमी कार्टर ने अपनी स्थली का दौरा किया और इस गांव का नाम बदलकर कार्टर पुरी रख दिया गया,

अब तक इस गांव के केवल नाम ही बदलते रहे हैं. इसकी तकदीर भी बदले, इस दिशा में कोई ठोस प्रयास अब तक नहीं किया गया. मात्र इसके प्राईमरी स्कूल का दर्जा बढ़ा कर मिडिल तक कर दिया गया. दिल्ली गुडगांव मुख्य मार्ग से करीब तीन किलोमीटर पश्चिम में बसे इस गांव में यातायात का भी रिक्शा व तिपाहियां स्कूटर के अलावा कोई साधन नहीं है. हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण ने गांव की सारी कृषि भूमि का अधिग्रहण कर लिया है. यहां तक कि गांव का लालडोरा भी नहीं बढ़ाया गया जिससे गांव की बढ़ती आबादी के प्रवृति को इस रूपए ने खूब बढ़ा दिया है और गांव की बगल में ही शराब के दो-दो ठेके खूल गए है. भूमि अधिग्रहण का सबसे बुरा असर पड़ा है खेतिहर मजदूरों पर.

अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद जिमी कार्टर मार्च 977 में भारत आए थे. उस दौरान वह अपनी जन्म स्थली कार्टरपुरी भी गए थे. इस ऐतिहासिक गांव में चिकित्सा की भी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है. इसके लिए भी गांव वालों को गुड़गांव के सरकारी अस्पताल में ही शरण लेनी पड़ेगी वर्ष 1980-81 में शुरू हुए भूमिग्रहण के बाद तो गांव की चारों ओर से जैसे नाकाबंदी ही हो गई है. कुछ प्राईवेट कालोनाईजरों के अलावा लिए विकास की सभी संभावनाएं अधिग्रहित भूमि पर ही रहे बड़े बड़े भवन निर्माणों के नीचे दबकर रह गई. इसका परिणाम यह हुआ कि गलियों एवं अन्य भूमि पर अवैध कब्जे होने शुरू हो गए और भाई भाई एक दूसरे के विरोधी हो गए भूमि अधिग्रहण के बदले मिली मीटी मोटी रकम ने लोगों के दिमाग से भाईचारे की भावना निकालकर दंगे की भावना भर दी. ऐसे लोगों की गिनती बहुत कम है। जिसके मुआवजे में मिली रकम का सद उपयोग किया हो. अधिग्रहण के बाद भू स्वामियों को मुआवजे की मोटी रकम मिल गई और मजदूरों को मिली बेरोजगारी अवैध कब्जों, आलीशान भवन निर्माणों, नशा एवं बेरोजगारी ने गांव का स्वरूप  व परिभाषा बदल कर रख दी है. कुल मिलाकर गांव का नाम बदलते रहने के अलावा इस गांव में मूलभूत सुविधाएं अभी कोसों दूर है. बिना किसी ठोस प्रयास के इस गांव का ठीक से कायाकल्प होना नामुमकिन है.