मोदी-योगी ने रचा काशी का नया अध्याय
श्री काशी विश्वनाथ धाम
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तीन लोक से न्यारी है महादेव के त्रिशूल पर बसी काशी । यह वह नगरी है जिसके अधिपति बाबा विश्वनाथ, पालक माता अन्नपूर्णा तथा रक्षक स्वयं बाबा कालभैरव हैं। जहां श्मशान भी शिव की लीला भूमि है और मां गंगा का अंतिम स्पर्श मोक्ष का द्वार । मृत्युभय से मुक्त काशी जीवन का शाश्वत उत्सव है और आज तो यह उल्लास जैसे गंगा से उठकर आकाशगंगा को छूना चाहता है। अवसर ही ऐसा अविस्मरणीय है। प्रतीक्षा की घड़ियां समाप्त हुईं , सोमवार को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इस धाम को राष्ट्र को सौंपा । प्रस्तुत है डॉ राम मोहन पाठक का आलेख...
"चर्चित मुहावरा है- अविश्वसनीय किंतु च सत्य! अविनाशी काशी में यह मुहावरा चरितार्थ हो चूका है ।
ऐतिहासिक स्वरूप का विस्तार
वर्ष 2014 के चुनाव के बाद गंगातट से मां गंगा द्वारा खुद को बुलाए जाने की घोषणा करते हुए सांसद नरेन्द्र मोदी ने जो संकल्प व्यक्त किए थे, श्रीकाशी विश्वनाथ धाम परियोजना उसी का मूर्त रूप है। कई स्तरों पर गहन विचार मंथन के बाद यह परियोजना अस्तित्व में आई और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं 2018 में इसका शिलान्यास किया। आड़ी- तिरछी भूलभुलैया वाली काशी की गलियों के बीच स्थित प्राचीन विश्वनाथ मंदिर तथा पूरे क्षेत्र को एक नया ऐतिहासिक रूप और विस्तार देने के संकल्प के साथ प्रारंभ इस परियोजना के अंतर्गत प्राचीनकाल में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई होलकर द्वारा निर्मित प्राचीन मंदिर के भक्तों के लिए आधुनिक सुविधायुक्त परिसर की भेंट इसकी विशेषता है। पश्चिमी देशों में 'गोल्डन टेंपल' नाम से विख्यात इस मंदिर के दो शिखरों को स्वर्णमंडित करने के लिए पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने 1,000 सेर सोना दान दिया था। ये दोनों स्वर्ण शिखर आज भी मंदिर की शोभा और पहचान हैं। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर अपने अस्तित्व काल से ही मुगलों के निशाने पर रहा। परिणामस्वरूप वर्तमान विश्वनाथ मंदिर के परिसर में ही औरंगजेब की मस्जिद है। पास ही में रजिया बेगम की मस्जिद है। इसके बावजूद बाबा विश्वनाथ के प्रति आस्था और विश्वास की अटूट परंपरा सदियों से अक्षुण्ण है।गंगाधर के समक्ष मां गंगा
मान्यता है कि काशी में बाबा विश्वनाथ को नमन के लिए गंगा ने अपनी धारा ही बदल दी, किंतु विश्वनाथ मंदिर और गंगधार के बीच अनेक अवरोधकारी निर्माण थे, जिन्हें श्रीकाशी विश्वनाथ धाम परियोजना के अंतर्गत हटाकर गंगा की धारा और श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के बीच सीधा और निर्बाध समागम-संबंध स्थापित कर दिया गया है। तब मंदिर से गंगा का सीधा दर्शन वस्तुतः अत्यंत जटिल और दुरूह कार्य था परंतु धाम परियोजना में यह संभव हो सका। लोकार्पण के दौरान प्रधानमंत्री ने ललिता घाट में स्नान कर वहां से गंगाजल का पात्र लेकर विश्वनाथ मंदिर तक ढाई-तीन सौ मीटर की दूरी पैदल तय किया , जहां देश की विभिन्न पवित्र नदियों से साधु संतों द्वारा लाए गए जल से बाबा का अभिषेक किया गया । देशभर के साधु-संन्यासियों, महंतों, महामंडलेश्वरों सहित विभिन्न पंथों-संप्रदायों के धर्मगुरुओं की उपस्थिति में धाम का लोकार्पण हुआ ।दरबार में अभूतपूर्व सुविधाएं
श्रीकाशी विश्वनाथ धाम की आकर्षक संरचना और सुविधाएं अभूतपूर्व हैं। भारत के द्वादश (12) ज्योतिर्लिंगों में एक श्रीकाशी विश्वनाथ के मंदिर तक गंगा घाट से गर्भगृह के पास परिसर तक 50 फीट चौड़ा सीधा नया मार्ग, 18 पंच सितारा स्तर के कमरों का अतिथिगृह, 5,000 लोगों की क्षमता का विस्तृत गर्भगृह परिसर, भक्तों के लिए विश्रामगृह, दो दर्जन दुकानों वाले व्यावसायिक केंद्र, संग्रहालय, प्रेक्षागृह तथा अन्य सुविधाएं इस धाम की विशिष्टता प्रदर्शित करते हैं। मंदिर परिसर में प्रतिदिन तीन से पांच हजार दर्शनार्थियों, पर्यटकों के लिए तथा श्रावण मास के सोमवार और शिवरात्रि जैसे महत्वपूर्ण पर्वों पर तीन लाख लोगों के लिए समुचित प्रबंध किए गए हैं।
विकास का विराट प्रयास
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के प्रायः 400 साल का इतिहास साक्षी है कि मंदिर के भक्तों, श्रद्धालुओं के लिए इतना बड़ा और महत्वपूर्ण बदलाव कभी सोचा भी नहीं गया। अदम्य इच्छाशक्ति के बल पर श्रद्धाभाव से पूरित श्रीकाशी विश्वनाथ धाम प्रकल्प अपने पहले चरण की पूर्णता के बाद ऐतिहासिक उदाहरण बनेगा और अनेक के लिए एक चुनौती भी! धाम को करते हुए शंकराचार्य ने राष्ट्रीय एकता, धर्म और अध्यात्म के केंद्र के रूप में चार धाम की कल्पना की थी। ये धाम 'वास' या निवास के रूप में परिभाषित बद्रीनाथ, द्वारिका, पुरी और रामेश्वरम् में स्थापित किए। ये धाम तीर्थयात्रा के केंद्र थे। 1950 तक 'धाम यात्रा कठिनाई भरी होती थी पर यात्रा के संसाधनों के बाद यहां पहुंचना सुलभ हो गया। हालांकि ये सभी धाम मोक्ष के केंद्र के रूप में रहे हैं। काशी तो प्रारंभ से ही मोक्ष की भूमि रही है। 'काश्या मरणान् मुक्तिः' अर्थात काशी में मरण से मोक्ष प्राप्त होता है, किंतु मोक्षभूमि काशी, काशीतीर्थ और मृत्यु के समय तारकमंत्र से मुक्ति देने वाले शिव, बाबा विश्वनाथ के तीर्थधाम को नमन करती इस परियोजना में तीर्थ विकास के साथ-साथ मोक्षभूमि काशी को जीने लायक बनाने के सत्प्रयास भी शामिल हैं।
श्रीकाशी विश्वनाथ धाम के अंतर्गत 400 करोड़ रुपए की लागत की विकास विस्तार योजनाओं को लागू करने के प्रथम चरण में निर्मित परिसर के विनायक, विश्वनाथ, अन्नपूर्णा तथा गंगा नाम से बने प्रवेश द्वारों से सीधे मंदिर तक पहुंचने के सुगम मार्ग की ऐसी संरचना बनाई गई है कि सीधे व कम से कम समय में दर्शनार्थी मंदिर तक पहुंच सकें। मंदिर क्षेत्र के ऐतिहासिक ज्ञानवापी कूप (कुएं) को मंदिर परिसर में 315 साल बाद समाहित किया जाना भी महत्वपूर्ण घटना और इस परियोजना की बड़ी उपलब्धि है। काशी विश्वनाथ मंदिर के प्राचीन स्वरूप और इस क्षेत्र के 50 मंदिरों को संरक्षित करने के साथ ही मंदिर क्षेत्र में अन्नक्षेत्र की व्यवस्था, दर्शनार्थियों के लिए चिकित्सा, आवास, मार्केटिंग आदि की सुचारू व्यवस्था महत्वपूर्ण है और आकर्षित भी करती है। काशी को 'प्रकाशिका नगरी' और भोलेनाथ की नगरी, भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी नगरी की मान्यता है। यह काशी विश्वनाथ क्षेत्र की ऊर्जा है, जो सभी के जीवन में शक्तिपात का स्रोत बनती है। श्रीकाशी विश्वनाथ धाम का स्वरूप तो विलक्षण और सुखद है ही, बाबा के आशीर्वाद से इसका कण-कण अनुप्राणित भी है।(डॉ पाठक हिंदी दैनिक 'आज' एवं मासिक पत्रिका 'अवकाश' के पूर्व संयुक्त संपादक भी थे. इसके साथ ही दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, चेन्नई एवं नेहरू ग्राम भारती मानित विश्वविद्यालय,प्रयागराज के पूर्व कुलपति है )
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