नंगल –भाखड़ा ट्रेन हिमाचल प्रदेश और पंजाब के बॉर्डर पर चलती है। अगर आप भाखड़ा नगंल बांध देखने जाते हैं, तो आप फ्री में इस ट्रेन यात्रा का आनंद उठा सकते हैं। दरअसल ये ट्रेन नगंल से भाखड़ा बांध तक चलती है। इस ट्रेन से 25 गांवों के लोग पिछले करीब 73 साल से फ्री में सफर कर रहे हैं। आप आश्चर्यचकित होंगे कि जहां एक तरफ देश की सभी ट्रेनों के टिकट के दाम बढ़ाए जा रहे हैं तो वहीं दूसरी तरफ लोग इस ट्रेन में फ्री में सफर क्यों करते आ रहे हैं। इसका कारण भी है। दरअसल, हम जिस ट्रेन की बात कर रहें हैं वह सिर्फ पंजाब और हिमाचल प्रदेश बॉर्डर पर ही चलती है। इस भारतीय रेल के जरिए आप भाखड़ा डैम की खुबसूरत का आन्नद उठा सकते हैं। साथ ही उसके बारें में कई सारी रोचक बातें भी जानने को मिलेंगी। पता हो कि, यह डीजल इंजन वाली ट्रेन है और इसमे प्रतिदिन 50 लीटर से अधिक डीजल की खपत होती है। वहीं इस ट्रेन में जहां पहले 10 बोगियां थीं, अब वह सिर्फ 3 रह गई है। इस ट्रेन में महिलाओं के लिए एक डिब्बा और पर्यटकों के लिए भी एक डिब्बा आरक्षित है। यह ट्रेन नांगल से सुबह 07.05 बजे चलती है और फिर 08.20 पर वापस भाखड़ा से नांगल की ओर चलती है। उसके बाद यह ट्रेन फिर से नांगल से दोपहर 03.05 पर भाखड़ा के लिए चलती है और 04.20 पर वापस लौटती है। नांगल से भाखड़ा तक का सफर तय करने में 40 मिनट का समय लगता है।
एक दिन में इस ट्रेन में 50 लीटर डीजल की खपत होती है। जब एक बार इसका इंजन स्टार्ट हो जाता है तो भाखड़ा से वापिस आने के बाद ही बंद होता है। इस ट्रेन में रोजाना 300 के करीब लोग सफर करते थे। ट्रेन के यात्री डिब्बे लकड़ी के हैं और इनमें बैठने के लिए भी लकड़ी के बैंच बने हैं। देश की बाकी ट्रेनों की तरह इस ट्रेन में कोई टिकट चेकर नहीं मिलेगा लेकिन भाखड़ा बांध की सुरक्षा को मद्देनजर इसमें सुरक्षा एजेंसी के सदस्य जरूर सवार रहते हैं।
यह ट्रेन भाखड़ा के आसपास के गांव बरमला, ओलिंडा, नेहला, भाखड़ा, हंडोला, स्वामीपुर, खेड़ा, बाग, कालाकुंड, नंगल, सलांगड़ी, लिदकोट, जगातखाना, परोईया, चुगाठी, तलवाड़ा, गोलथाई के लोगों का आने-जाने का एकमात्र साधन है। क्योंकि अगर यह लोग बस के माध्यम से गांवों में आते हैं तो या तो इन्हें बाया ऊना, मेहतपुर आना 35 किलोमीटर सफर करना पड़ता है या नंगल में आने के लिए वाया मैहतपुर में आते हैं तो उन्हें नंगल की दूरी 20 किलोमीटर पड़ती है जबकि ट्रेन से ये रास्ता 14 किलोमीटर है और कोई खर्च भी नहीं है। असल में यह ट्रेन भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड ( BBMB) द्वारा अपने कर्मचारियों/लेबर के आने जाने के लिए पिछले कई वर्षों से चलाई जा रही है। इस गाड़ी की समय सारणी भी कर्मचारियों/लेबर की शिफ्ट के अनुसार ही बनाई गई है। अब यातायात के अन्य उन्नत साधन भी उपलब्ध हैं। इस लिये गाड़ी में ज्यादा रश नहीं होता। बी बी एम बी के स्टाफ मैंबर्स के अतिरिक्त आस पास के अनेक गावों के लोग भी इस गाड़ी में मुफ्त यात्रा करते हैं। इस गाड़ी में कोई टिकट चैकिंग नहीं होती। यह गाड़ी रास्ते में एक सुरंग में से होकर गुजरती है। जो कि बच्चों के लिये आकर्षण का कारण है। सुरंग ने सड़क मार्ग की अपेक्षा दोनों स्टेशनों के बीच दूरी को भी कम किया है। भारतीय रेलवे का नंगल रेलवे स्टेशन अलग है और नंगल में ही भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड का रेलवे स्टेशन , (जहां से यह ट्रेन चलती है,) अलग है। भारतीय रेलवे के स्टेशन की तरह बी बी एम बी के स्टेशन पर कोई टिकट काउंटर ही नहीं है। वैसे यह भी लगता है कि यह गाड़ी सार्वजनिक/ आम लोगों के लिए नहीं है पर स्टेशन पर ऐसा कोई चेतावनी बोर्ड भी नहीं देखा गया।
भाखड़ा बांध से पहले ओलींडा नामक स्थान पर भी यह गाड़ी रूकती है। बहुत साल पहले हमने भी इस गाड़ी में बच्चों के साथ नंगल डैम से ओलींडा तक यात्रा की थी। स्टेशन के पास ही खाने पीने की छोटी सी दुकान थी और पास ही सतलुज दरिया है। यहां पर ही बच्चों ने एक तरह से पिकनिक मनाई और उसी गाड़ी से वापसी भी की थी। आप पता हो कि भाखड़ा डैम का नाम भारत के अद्भुत बांधों में शुमार होता है। लगभग 225 मीटर ऊँचे इस बांध की गिनती भारत ही नहीं बल्कि एशिया के सबसे ऊँचे बांधों में होती है। इसको देखने के लिए काफी पर्यटक हर साल यहाँ आते हैं। भाखड़ा से नांगल और नांगल से भाखड़ा तक के सफर की सुविधा देने वाली ट्रेन का संचालन बीबीएमबी (भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड) करती है। आज़ाद भारत की सबसे बड़ी कामयाबी में से एक भाखड़ा-नांगल बांध के निर्माण के समय से ही यह बोर्ड इन दो हिस्सों को जोड़ने वाली ट्रेन के परिचालन का जिम्मा सँभाल रहा है।
दरअसल, भाखड़ा-नांगल बांध के निर्माण के लिए जमीन अधिग्रहण के वक्त बांध बनाने वाले मैनेजमेंट ने गांववालों से यह वादा किया था कि उनकी सुविधा के लिए भाखड़ा और नांगल के बीच ट्रेन चलाई जाएगी। और इस ट्रेन से यात्रा करने के लिए किसी तरह के टिकट की आवश्यकता नहीं होगी। इस ट्रेन में लगी सीटें लकड़ी की बनी हुई हैं जैसे पहले हुआ करती थीं और इंजन भी अंग्रेज़ों के ज़माने का है। यात्रा करते वक़्त आपको एक सुरंग और सतलज नदी पर बने पुल देखने को मिलेंगे जो इस यात्रा को रोमांच से भर देते हैं। असल में यह ट्रेन चलता-फिरता सम्मारक है। या फिर कहें कि हमारे गौरवपूर्ण इतिहास का प्रतीक। क्योंकि आज़ादी मिलने के बाद भाखड़ा-नांगल जैसा विशालकाय बांध बनाने और उसके बाद पहाड़ी रास्तों को काटकर दुर्गम इलाकों के बीच ट्रेन के लिए रास्ता बनाने जैसी अविश्वसनीय व अविस्मरणीय उपलब्धि से नौजवानों को रूबरू कराने और उनके ज़ेहन में बीते कल की बातों को जिंदा रखने के लिए पिछले 70 सालों से भाखड़ा-नांगल के बीच मुफ्त ट्रेन सेवा जारी है।
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