उत्तर प्रदेश में नहीं हैं महाराष्ट्र एवं एमपी टूरिज्म के कार्यालय

प्रदीप श्रीवास्तव /लखनऊ

देश की सर्वाधिक लोकप्रिय हिंदी व अंग्रेजी की एक पत्रिका ने अपने सर्वे में पाया कि कामकाज के मामले में उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग सत्रहवें स्थान पर है ,जब की प्रधान मंत्री का गृह क्षेत्र गुजरात देश में तीसरा स्थान रखता है .जबकि पहले स्थान पर केरल पर्यटन एवं दुसरे स्थान पर असाम  पर्यटन अपना दबदबा बनाये हुए है .वहीँ चौथे स्थान से सोलहवें स्थान पर क्रमश: महाराष्ट्र,उत्तराखंड ,ओड़िशा ,राजस्थान,बिहार,पंजाब, हरियाणा,हिमाचल प्रदेश ,कर्नाटक ,मध्य प्रदेश ,तमिलनाडू ,तेलंगाना एवं वेस्ट बंगाल का नंबर है. वहीं दूसरी तरफ आंध्र प्रदेश,छत्तीसगड तथा झारखण्ड 19 वें एवं 20 वें नम्बर पर स्थान बनाए हुए हैं.

      अगर हम सोशल नेटवर्क (फेसबुक,इंस्टाग्राम एवं ट्विटर) पर प्रचार की बात करें तो उत्तर पर्यटन पर्यटन विभाग पहले नंबर पर ही होगा . जबकि विगत चार-पांच वर्षों में उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग ने पर्यटन के क्षेत्र में कई मील के पत्थर स्थापित करने का ढिंढोरा पीटा है.हाल ही में विभाग ने 'उत्तर प्रदेश पर्यटन नीति -2022 भी लागू कर दी है.जिसमें बहुत सारी लाभकारी योजनाओं को लागू किया गया है.लेकिन इन योजनाओं से आम पर्यटकों को क्या लाभ मिलेगा,यह बात किसी के समझ में नहीं ना आ रही है.इसका लाभ केवल वातानुकूलित कमरों में बैठ कर योजनाओं को बनाने वालों एवं उनसे जुड़े लोगों को ही तो मिलेगा. एक छोटा सा उदाहरण लीजिये, प्रदेश पर्यटन विभाग का स्लोगन है 'उत्तर प्रदेश नहीं देखा तो भारत नहीं देखा', सही बात है .इससे कोई इंकार भी नहीं कर सकता ,करेगा भी कैसे ? देखने वाले जगहों की भरमार है इस प्रदेश में.झील,तालाब ,किले,जलप्रपात,महल,खंडहर,मंदिर,मस्जिद एवं गिरजाघर क्या नहीं है.लेकिन इनकी जानकारी पर्यटकों तक नहीं पहुंच पा रही है.अयोध्या,काशी,मथुरा,प्रयागराज के साथ-साथ के ताज के अलावा बहार से आने वाला पर्यटक किसके बारे में जान पाता है.

  आइये लखनऊ की ही बात करें तो कितनों को नहीं पता होगा कि इसी शहर के बाहरी हिस्से में (महाभारत कालीन) बाणासुर व श्रीकृष्ण के बीच युद्ध हुआ था. वह जगह है सीतापुर रोड पर स्थित बक्शी का तालाब से मात्र पांच किलोमीटर की दूरी पर ,जहाँ मुक्तेश्वर नाथ शिव मंदिर है,मंदिर परिसर में  हजारों साल पुराना बरगद का वृक्ष आज भी अपने अतीत की गाथा कह रहा है,लेकिन उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. अगर अयोध्या की बात करें तो वहां बहुबेगम का मकबरा ,एवं गुलाबबाड़ी की हालत नहीं देखी जाती है.वहां का चौक एकदारा तो इतिहास के पन्नों में सिमटने को बेबस है.प्रदेश के कितने जगहों के नाम गिनाऊ ?

इतना बड़ा प्रदेश ,इतने पर्यटन स्थल ,फिर भी इस प्रदेश में  महाराष्ट्र एवं मध्य प्रदेश पर्यटन के एक भी कार्यालय नहीं हैं. बताते है कि प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पर्यटन भवन में इनके कार्यालय हुआ करते थे ,लेकिन बाद में इसे भी समेत लिया गया.यही हाल उत्तराखंड पर्यटन विभाग का है. जो अपनी बंद होने के कगार पर है. जिसे आज कल उत्तराखंड के गेस्ट हाउस से चलाया जा रहा है.जब की इन तीनों प्रदेशों में उत्तर प्रदेश के पर्यटकों के जाने की संख्या अत्यधिक होती है,लेकिन उन्हें जानकारी के लिए गूगल बाबा की शरण मैं जाना होता है.