हिन्दी साहित्यिक परिदृश्य में स्थापित एवं चर्चित लेखिका प्रमिला वर्मा का किताबवाले प्रकाशनदरियागंजनई दिल्ली से 2022 में आया ‘रॉबर्ट गिल की पारो’ उपन्यास अपना विशिष्ट स्थान रखता है। जो पाठकों को उन्नीसवीं शताब्दी में ले जाते हुए भारत में शासन करने आए लोगों के बारे में जानकारी देता हैं। पाठक देखते हैं कि सियासतों के फैसले ने आम नागरिक के जीवन की रूपरेखा बदल दी। रॉबर्ट गिल जैसा आर्मी में कार्यरत व्यक्ति अपने परिवार के विभाजन को सहताहुकूमत के आदेशों का पालन करता अपना देश छोड़

 भारत में रहने को मजबूर होता है जबकि उसकी पारिवारिक जिम्मेदारी उसे स्वदेश के लिए पुकारती है। लेकिन भारत देखने की अदम्य इच्छापेंटिंग (चित्रकारी) में रुचि और अपनी प्रतिभा को साबित करने के जोश में बंधा वह यहीं जीवन की अंतिम साँसे लेता है। देश की राजनीति और सरकार के फैसले आम जनता के भविष्य को मजबूर करते हुए परिवर्तित कर देते है। प्रमिला वर्मा का यह उपन्यास उनके गहन अध्ययनरॉबर्ट गिल के जीवन यात्रा में

उनकी रुचिइतिहास में छुपी कहानी के लिए पुलकित करती कौतूहलताखोजी प्रवृत्तिलगन और मेहनत का प्रमाण है जो हम देश में घटित इतिहास के पन्नों को पलट कर देखने के लिए मजबूर ही नहीं होते बल्कि उपन्यास को अंत तक पढ़ते हुए समुद्रीय यात्रा के अनुभव के साथ भारत और लंदन जैसे अलग-अलग समाजों की जानकारी लेते हुए उसमें लीन हुए बिना नहीं रह पाते।

‘रॉबर्ट गिल की पारो’ एक आकर्षक शीर्षक है जो ‘पारो’ नाम के कारण रोचक एवं ध्यानाकर्षित करता इस शोध कार्य को पढ़ने के लिए बाध्य करतामन में सुगबुगाहट बढ़ा ही देता है। जिसे गेजेट ऑफ इंडिया व लंदन की लायब्रेरी से उपलब्ध महत्वपूर्ण दस्तावेजों के बाद अंजाम दिया गया। पारो के नाम से शरतचंद की ‘देवदास’ कृति याद आती है और देवदासपारोचंद्रमुखी स्मृति में सहज ही आ जाते हैं। बावजूद इसके रॉबर्ट की पारो को जानने की अदम्य इच्छा अपना विशिष्ठ स्थान बनाती है। उपन्यास के पन्ने पलट पाठक की उत्सुकता पारो की अहमियत आँकने को धीरज के साथ तैयार होती है। ‘रॉबर्ट गिल की पारो’ यह एक बेजोड़ उदाहरण है इस तरह कि कैसे एक अखबार की कतरन की पंक्ति“मेजर रॉबर्ट गिल ब्रिटिश सैन्य अधिकारी को अजंता ग्राम की आदिवासी लड़की ‘पारो’ अपनी बगिया का काला गुलाब दिया करती थी”से उठी जिज्ञासा लेखिका के लिए महत्वपूर्ण हो जाती है और इस कृति के निर्माण की रूपरेखा बन जाती है। उपन्यास उन्नीसवीं सदी के माहौलसामाजिक व्यवस्थाअंग्रेजों का आगमनउनका यहाँ रहना और भारतीयों से उनके आचार-व्यवहार की जानकारी से जोड़ता चलता है।


डॉ प्रमिला वर्मा 
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      ईस्ट इंडिया कंपनी के कोर्ट ऑफ डायरेक्टर की ओर से प्रतिभा व योग्यता के अनुसार चुनाव कर लंदन रॉयल एशियाटिक सोसायटी से सम्बद्ध ‘रॉबर्ट गिल’ को 1849 में अजंता और एलोरा की कलाकृतियों की चित्रकारी और छायाचित्र लेने के लिए नियुक्ति किया जाता है। इस तरह भारतीय अद्भुत गुफाओं के सौन्दर्य को बतौर चित्रकारी संसार के सम्मुख लाने का श्रेय रॉबर्ट गिल लेते हैं। जिसमें वे पारंगत थे और इस तरह उनके बनाए चित्रों के (कुछ

चित्रों को छोड़) जल जाने के बावजूद भारत के इस धरोहर को दुनिया विशेष दृष्टि से देखती है। अजंता एलोरा की गुफाओं की खोज का श्रेय सर जॉन स्मिथ को जाता है जिन्होंने 1819 में इस महत्वपूर्ण एवं अद्भुत उपलब्धि की खोज को अंजाम दिया। अजंता में वारगुणा नदी के पास होने की वजह से इसे वारगुन रिवर वैली कहा जाता है। जहाँ ग्रेनाइट बेसाल्ट की चट्टानों में 29 गुफ़ाएं स्थित है। इन्हीं गुफाओं के दस नंबर गुफा में जॉन स्मिथ ने अपने हस्ताक्षर के साथ“गुफा के सामने वाले स्तंभ पर अपने शिकारी चाकू से खरोंच कर लिखा – ’28 अप्रैल1819 – जॉन स्मिथ।” ये जानकारियाँ भारत के धरोहर को एक विदेशी द्वारा बचाने और विश्व के सम्मुख लाने के गौरव पूर्ण एहसास से सराबोर करती है। कई भावपूर्ण मुद्राओं से युक्त कलाकृतियों के साथ बुद्ध भगवान और उनकी जीवन यात्रा को समर्पित ये गुफ़ाएं सिलसिलेवार ना होते हुए हॉर्स शू शेप यानी घोड़े की नाल के आकार में पत्थरों के बीच बनी हैकी जानकारी हमें उपन्यास से मिलती है। इस पर मि. स्काटिव के लिखे लेख जो “1829 में ‘ट्रांसकेशन्स ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड आयरलैंड (Transavtions of the Royal Asiatic Society of Great Britain and Ireland)” (पृष्ठ 301) में प्रकाशित हुआ थाकी ब्रिटिशर द्वारा हंसी उड़ाई गई लेकिन यह कार्य न रुका। जॉन स्मिथ ने भारत के कई रॉककट मंदिरों का ख्याल रखते हुए सफाई करवाई ताकि उनके रंगोंभित्तिचित्रोंआलेख को नुकसान ना पहुँचे और कई महत्वपूर्ण और विशेष चीजें दुनिया के सामने आए। उपन्यास में दी इस महत्वपूर्ण जानकारी से अवगत होते हैं कि “रॉबर्ट गिल दुनिया के पहले बेहतरीन फ़ोटो ग्राफर थेजिन्हें विश्व प्रसिद्ध झील ‘लोनार’ एवं अमरावती के निकट मेलघाट में एक जैन तीर्थस्थल एवं मुक्तागिरी हेमाडपंथी किलेमुस्लिम वास्तुकला आदि भारत की सांस्कृतिक विरासत को भी दुनिया के सामने लाने का श्रेय जाता है।” (पृष्ठ 9) ब्रिटिश सैन्य अधिकारी रॉबर्ट गिल के जीवन से जुड़ी सच्चाईयोंप्रेम कहानियोंअपना देश छोड़कर भारत में आकर बसने की उनकी मजबूरियों पर लेखिका की पारखी दृष्टि पड़ती है जिसने रॉबर्ट गिल के जीवन के रोमांचक पलोंहादसों और घटनाओं को इस उपन्यास द्वारा प्रस्तुत किया और उन्नीसवीं सदी के परतंत्र भारत के परिदृश्य और जनमानस से रूबरू होने का अवसर दिया।

               डायरेक्टर ऑफ कोर्ट के आदेशानुसार रॉबर्टअजंता गुफाओं का एक चित्रमय रिकॉर्ड बनाने के लिए भारत आते हैं। हैदराबाद के निजाम द्वारा अतिरिक्त धनराशि के साथ वह यह जिम्मेदारी स्वीकारते हैं। कलकत्तामद्रासबैंगलोरजालना बर्मा के बाद औरंगाबाद के अजंता ग्राम का उसका अनोखा अनुभव उपन्यास में सविस्तार प्राप्त होता है। मद्रास के समुद्रतट पर उसके रंगों के शेड में सूर्योदय से सूर्यास्त को लेखिका के शब्दों में देखा जा सकता है। एनीरॉबर्ट की अंतिम प्रेमिका है जो पत्नी बन उन्हें उनके अवसाद से बाहर ही नहीं निकालती बल्कि रॉबर्ट की मृत्यु तक उनके साथ रहती है। जिंदगी में आती रही स्त्रियों के बीच उलझे रॉबर्ट समय-समय पर लीसाफ्लॉवरड्यूपारो को याद करते है। प्रेमबिछोह,दोस्तीनाराजगी सभी जीवन के सुनियोजित हादसों की तरह घटित होते चलते है। जैसे रॉबर्ट का इसमें कोई हाथ नहीं होफिर भी कई स्थानों पर प्रेम में पड़कर रॉबर्ट के गलत फैसलों से पाठक जरूर दो-चार होते है।

                पहला प्रेमलीसा रॉबर्ट के धोखे को सहन नहीं कर पाती“मैं तुम्हें माफ करती हूँ और यह अपेक्षा भी कि आज के बाद हम कभी नहीं मिलेंगे। औरत जितनी नम्र होती है उतनी कठोर भी।” (पृष्ठ 173) कहती हुईं हमेशा के लिए रॉबर्ट से दूर चली जाती हैजिसके मृत्यु की खबर बाद में पता चलती है। पहली पत्नी फ्लॉवरड्यू से रिश्ता वैचारिक मतभेद में पनपता हैवे रॉबर्ट के सम्मुख अपने विचार रखती है“एक पिछड़ा देशकाले लोगों का देशजहाँ ईश्वर के रूप में नदीतालाबसांपगायों की पूजा की जाती है। कितनी निरर्थक जिंदगी हो जाएगी हमारी।” पत्नी फ्लॉवरड्यू का रिश्ता रॉबर्ट के जीवन में आती प्रेमिकाओं के कारण विश्वास को भोतर करता खत्म हो जाता है। एक ओर पत्नी फ्लॉवरड्यू का आधुनिक सामंती खानदानतो दूसरी ओर इंडिया जैसे पिछड़े देश को करीब से देखने का आकर्षणतालमेल बिठाने की कोशिश में रॉबर्ट अपने परिवार से दूर चला जाता है। फ्लॉवरड्यू के कई बार माफ करने पर भी एक न एक नया हादसा उसे रॉबर्ट की जिंदगी से दूर चले जाने को उकसाता है। फ्लॉवरड्यू अपना आत्मसम्मान बचाती है जिसे ठेस पहुँचाने में रॉबर्ट के जिंदगी के हादसे कोई कसर नहीं छोड़ते। कई बार फ्लॉवरड्यू दया की पात्र नज़र आती है क्योंकि पत्नी से अलग होना दूसरी स्त्री पर दृष्टि डालने का सेटिफिकेट पाना नहीं होता। फिर भी प्रेम अपना अहम स्थान रखता है। लेखिका महान थिंकर और गणितज्ञ ब्लेज़ पास्कल के शब्दों में प्रेम को जीवन की एक विशिष्ठ उपलब्धि बताती है“जब आप किसी से प्यार करते हैं आपकी मुलाकात दुनिया के सबसे खूबसूरत व्यक्ति से होती है।” (पृष्ठ 204) रॉबर्ट की जिंदगी हर मोड़ पर नए प्रेम को ढूँढ लेने में सफल है जो भारत में उसके जीने का सहाराबनते हैं।

             बचपन में पिता की मृत्यु के बाद रॉबर्ट को फादर रॉडरिक परवरिश देते हैं। वह आर्मी ज्वाइन करता है। टैरेन्स की मित्रता उसे जीवन का अमूल्य अनुभव देती है। अगाथाडोरा,लीसामि. ब्रोनीजीनियाकिमजॉनजैसे पात्र एक अन्य कथा को मूल कथा से जोड़ते कथ्य को आगे बढ़ाते है जो टैरेन्स की माता अगाथा के जीवन से संबंधित होता है और निरंतर रहस्यमयी घटनाओं से पर्दाफाश करता कौतूहल पिरोता है। भारत के साथ-साथ विदेश में लंदन और उसके आस-पास की नई संस्कृतिखान-पानरहन-सहन के माहौल को उपन्यास में महसूस किया जा सकता है। एक ओर भारतीय भोजन के विभिन्न व्यंजनतौर- तरीके तो दूसरी ओर लंदन के निमनस्तरीय सामाजिक जीवन और भोजन की सविस्तार जानकारी लुभाती है। लेखिका के समुद्री यात्राओं का वर्णन समय के अनुसार सटीक और माहौल को बनाए रखता है।

             लेखिका विदेशी पात्रों की नजरों से भारतीय परंपराओं और संस्कृति को दिखाती है जो एक अलग आकर्षण है। एनी कहती है“यहाँ हाउस बर्ड (गौरैया चिड़िया) को आदमी लोग सड़क के किनारे नाचते हैं। ... यहाँ डमरू पर बंदर नाचते हैं बंदरिया रूठती है। ... जादू जैसा देश है। उसे देखना ही था यहाँ के जंगलनदियाँझरनेयहाँ के नग्न साधु सारे शरीर में राख लपेटे अपनी इंद्रियों पर काबू किए हुए ... भगवानकितने धर्मकितनी अलग-अलग आस्थाएंविश्वाससांपों के मंदिर ... कैसे इतना बड़ा देश निरंतर गुलामी में जकड़ा जा रहा है। वह भी इतनी दूर देश की गुलामी मेंजहाँ से यहाँ पहुँचने में महीनों लग जाते है।” (पृष्ठ 27) समझा जा सकता है कि जनमानस में स्वतंत्र होने की भावना जैसे सुप्तावस्था में थी।

    गाँव की आर्थिकसामाजिक व्यवस्थाव्यवसायघरेलू उद्योगजरूरत के अनुसार कार्यों का लेखिका ने सविस्तार वर्णन किया है। मौसम के अनुसार प्रांत और शहर के रहवासियों के पहनावेखान-पानजीवन के तरीकों की वे जानकारी देती आगे बढ़ती है। पेड़-पौधेजंगल वनस्पतिफलपत्तियोंजंगली जानवरों के बारे में विशेष रूप से कालानुसार वे अपनी बात रखती है फिर मद्रास हो या महाराष्ट्रया हो हैदराबाद पाठक उसे समय से जोड़कर देखते समझते चलते हैं और कभी गाँव के कच्चे-पक्के घरों की पीली रोशनी की कल्पना में खो

जाते हैं तो कभी विदेशी संस्कृति की। उपन्यास से गुजरते हम गुलामी में जकड़े भारतीय समाज में हो रही गतिविधियों का आकलन करते है। विदेशियों के आगमन का भारत। उनका यहाँ राज करना। उनकी हुकूमत।कुछ अंग्रेज अपनी दरियादिली से भी परिचय कराते रहे जिसमें रॉबर्ट गिल एक उदाहरण है जिसने पारो को उसके अधिकार से वंचित नहीं किया। उसे हर संभव मदद की। रॉबर्ट और जयकिशन का साथ। शासन करते क्रूरता किसी भी हद तक जाए इंसानियत अपने लिए जगह बना ही लेती है। उपन्यास में रॉबर्ट के विचारों की इन पंक्तियों से हमें विश्वास करना ही पड़ता है कि रॉबर्ट जैसे लोग भी होंगे जो इस भारत भूमि और यहाँ के लोगों से भी आत्मीयता रखते थे“अपनी पेंटिंग और फोटोग्राफी से वह ग्रेट ब्रिटेन को बता देगा कि इंडिया कैसा है?” (पृष्ठ 209) सोने की चिड़िया कहलाने वाले देश भारत के बादयहाँ की गुलाम जिंदगियों में भी विदेशियों की रुचि बताती है कि सरहदों के पारदेशों को विभाजित करती रेखाओं से इतर भी इन्सानित और जज़बात का अपना स्पेस है जिसे इंसान के भीतर की जमीन से कोई हटा नहीं सकता। वहीं मिसिस रिकरबाय जैसी शख्सियत भी है जो बच्चों पर पड़ते इस देश की छाप से उन्हें बचाना चाहती है। फ्लॉवरड्यू भी अधीन लोगों पर गुस्सा उतारतीउनके लिए ‘काले गुलाम’ का सम्बोधन करती है। लेखिका बताती है किस तरह “मद्रास ब्रिटिश रेजीमेंट के अनेक सैनिक यहाँ आए1829 के बर्मा युद्ध में जिन अंग्रेज आर्मी ने हिस्सा लिया था वे यहीं बस गए थे। गिरमिटिया मजदूर ब्रिटिश शासन की गुलामी के लिए यहाँ लाए जाते थे।” (पृष्ठ 248) यह तो जगजाहिर है कि भारत के खदानों के कच्चे माल से ब्रिटिश कंपनी का व्यापार बढ़ता रहा। लेखिका बर्मा में स्थित विभिन्न जाति समूहों की चर्चा करती है जहाँ अंधविश्वास नहींबुद्ध पर आस्था रखने वाले लोग हैं। उपन्यास में एक समय का जिक्र मिलता है जब ब्रिटिश सैनिकों और भारतीय शासक राजाओं के घोड़े रेस में हिस्सा लेते थे। यहाँ हम टुकड़ों में बटे हुए भारत की झलक का आभास पाते हैं। अजंता ही नहींईसा पूर्व 700 ई. से 900 ई. की शताब्दी में बनी 2.5 मील के दायरे में फैली चारानानदरी पहाड़ों की वादियों में स्थित एलोरा की गुफाओं की कलाकृतियों की चर्चा भी हम उपन्यास में पाते हैं जहाँ तीन मंजिला गुफाओं का विशिष्ठ संयोजन है। अजंता की गुफाओं के नंबर अनुसार उसमें निहित बौद्ध देव और उनकी जीवन यात्रा से जुड़ी महत्वपूर्ण कथाओं के बारे में सिलसिलेवार पढ़ना उपन्यास को रोचक बनाता है और पाठकों में इस स्थल के दर्शन की अदम्य इच्छा जगाता है। काल चक्र में प्रवेश करते हम समयानुसार तकलीफोंमजबूरियोंव्यवधानों को ध्यान में रखते हुए समाज में अंग्रेजों के हस्तक्षेप को समझ सकते हैं जिनसे यहाँ के लोगों ने भी स्नेह दिया और लिया। रॉबर्ट एक आदिवासी कोली लड़की पारो से सिर्फ प्रेम ही नहीं करते बल्कि गाँव वालों के सामने उसकी जिम्मेदारी उठाने का वादा करते हुए उसे अपनाते भी है“उसने पारो के अंतिम संस्कार की जगह चबूतरा बनवाया और उस पर लिखवाया – 23 मई 1856 फॉर माई बेलोवेड पारो – रॉबर्ट।” यह एक अद्भुत कथा है जो भीतर तक रचती बसती है।

          ‘रॉबर्ट गिल की पारो’ उपन्यास एक बेहतरीन लेखन है। लेखिका प्रमिला वर्मा ने रॉबर्ट गिल के जीवन के सभी मोड़ोंघटनाओंफैसलों पर प्रकाश डालते हुए रॉबर्ट के जीवन का सुंदर अंकन किया है। यह 414 पृष्ठों में समाहित उपन्यास रॉबर्ट के जीवन-सार के अलावा उनके द्वारा बनाई गई अजंता की गुफाओं के तैलचित्रोंछायाचित्रों की तस्वीरें भी पेश करता है। इसमें हम लेखिका द्वारा रॉबर्ट गिल के कब्र की ली गई तस्वीर भी देखते हैं। पाठकअजंता की गुफा में खड़े रॉबर्ट को भी इन तस्वीरों में देख सकते है। जिसे उपन्यास में पाठक कल्पना द्वारा अपने विचारों में पाते हैं। उपन्यास भाषा की सरलता के साथ आसानी से पाठकों तक पहुँचता ही नहीं बल्कि कथा के प्रति जिज्ञासा भी पैदा करता है। घटनाओं की सटीक जानकारी देने हेतु जगह-जगह पर ईसवी और शताब्दी का उल्लेख किया गया है जो तथ्यों को समझने व आत्मसात करने में मदद करता हैं। उपन्यास में निहित बारीकियों से लेखिका के अध्ययन और उनके लेखन की गूढ़ता का पता चलता है। यह सिर्फ हादसों और घटनाओं का ब्यौरा ही नहीं बल्कि रॉबर्ट की जिंदगी को करीब से देखने और भीतर से जीना भी है। यह एक ऐतिहासिक सत्य कथा है जिसे लेखिका ने उपन्यास का रूप दिया है। कहा जा सकता है कि पाठकों के समक्ष एक युग की हकीकत को सप्रमाण पेश किया है वरना इतिहास के पन्ने पलटकर देखने की फुरसत किसे है। यह इतिहास को खंगाल कर निकाली गई सच्ची कहानी है। रॉबर्ट की चित्रकारी के द्वारा अजंता गुफाओं को विश्व के समक्ष लाया गया वरना खोज तो किताबों के पन्नों तक सीमित थी। लेखिका ने रॉबर्ट के जिंदगी की पेचीदगियों को अपनी कल्पनाओं से उपन्यास का रूप देपाठकों तक उपलब्ध कराकर हिंदी साहित्य को गौरान्वित किया है।

 समीक्षक:  डॉ. रीता दास राम (कवयित्री/लेखिका) चेंबूरमुंबई – 74.

प्रकाशक : किताबवाले ,दरियागंज ,नई दिल्ली -02 मूल्य : 1800/-