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सप्रे जी का जन्म 19 जून 1871 को मध्यप्रदेश के पथरिया,दमोह में हुआ था। सप्रे जी को हिंदी की पहली कहानी 'एक टोकरी भर मिट्टी' के लिए भी जाना जाता है। उन्होंने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की अमर कृति 'गीता रहस्य' का हिंदी में अनुवाद किया था। तिलक जी के पुणे से निकलने वाले अखबार केसरी की महत्वपूर्ण सामग्री को वे नागपुर से प्रकाशित अपने अखबार 'हिंदी केसरी' में प्रकाशित किया करते थे। भोपाल के प्रख्यात सम्पादक अपने उत्कृष्ट कार्यों के लिए पद्मश्री से सम्मानित विजय दत्त श्रीधर जी के दिमाग में एक बार पत्रकारिता संग्रहालय का विचार कौंधा तो उन्होंने इस दिशा में गम्भीरतपूर्वक काम शुरू किया और तय किया कि संग्रहालय का नामकरण सप्रे जी के नाम से होना चाहिए। और पत्रकारिता की इस महत्वपूर्ण विभूति के नाम से ही सन 19 जून, 1984 में उन्होंने सप्रे संग्रहालय की शुरुआत की। पहले पहल एक छोटी-सी जगह में यह संग्रहालय शुरू हुआ लेकिन संकल्पों के धनी श्रीधर जी के कारण अंततः संग्रहालय का अपना भवन भी बन गया और 19 जून 1996 को संग्रहालय अपने नए भवन में स्थायी रूप से स्थानांतरित हो गया। अपनी सक्रिय पत्रकारिता को तिलांजलि देकर श्रीधर जी संग्रहालय को समृद्ध करने में समर्पित हो गए। इसका ही सुपरिणाम है कि आज यह संग्रहालय पत्रकारिता का आधुनिक तीर्थ स्थल बन गया है। यहां लगभग 20,000 समाचार पत्र , पत्रिकाएँ संगृहीत हैं । इन्हें देखना किसी रोमांच से कम नहीं होता। हिंदी के अलावा मराठी, उर्दू, गुजराती और अँग्रेज़ी आदि के भी कुछ अखबार यहाँ देखे जा सकते हैं। यह संग्रहालय अब पत्रकारिता विषयक शोधकर्ताओं के लिए अनिवार्य जगह है। श्रीधर जी बताते हैं कि अब तक छः सौ से अधिक विद्यार्थियों ने यहाँ की सामग्री का उपयोग करके अपने शोधकार्यों को सफलतापूर्वक पूर्ण कर डी.लिट और पी-एच.डी की उपाधियां प्राप्त की। यहाँ पच्चीस लाख पृष्ठों से अधिक की सामग्री संगृहीत है। संग्रहालय की दुर्लभ पांडुलिपियों का संरक्षण करने के लिए अब डिजिटाइजेशन,माइक्रो फिल्मिंग और लेमिनेशन आदि का भी सहारा लिया गया है। पिछले दिनों भोपाल प्रवास के दौरान इन पंक्तियों के लेखक ने संग्रहालय को एक बार फिर बेहद निकट से और गंभीरता के साथ देखा, कुछ तस्वीरें भी खींचीं और महसूस किया कि पूरे देश मे इस तरह का समाचार पत्र संग्रहालय कहीं नहीं है। सबसे बड़ी बात यह सरकारी नहीं, गैर सरकारी प्रयास का सुपरिणाम है। यही कारण है कि इसके संस्थापक श्रीधर जी को सन 2018 में पद्मश्री सम्मान से भी विभूषित किया गया।
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पत्रकारिता कोश भी
श्रीधर जी शुरू से कलम के धनी रहे हैं। संग्रहालय को कैसे विभिन्न पत्रकारीय गतिविधियों का सक्रिय केंद्र बनाया जाए, इसकी भी वे चिंता करते हैं। इसलिए उन्होंने दो खण्डों में भारतीय पत्रकारिता कोश तैयार किया। पहले खण्ड में 1780 से लेकर 1900 तक के अखबारों का विवरण है तो दूसरे खण्ड में 1901 से 1947 तक के अखबारों की प्रामाणिक जानकारी संगृहीत है। सप्रे संग्रहालय को समृद्ध बनाने के लिए कोलकाता के राष्ट्रीय पुस्तकालय, बंगीय साहित्य परिषद कोलकाता और राष्ट्रीय अभिलेखागार नई दिल्ली तक भी श्रीधर जी ने दौड़ लगाई था । वहाँ प्राप्त अनेक दुर्लभ सामग्री को लेकर संग्रहालय में सुरिक्षत ढंग से रखा। देश का पहला समाचार पत्र हिकी गजट (जेम्स अगस्टस हिकी), पहला हिंदी समाचार पत्र उदन्त मार्तंड (पण्डित युगलकिशोर शुक्ल), पहला दैनिक समाचार सुधावर्षण (श्यामसुंदर दास), कर्मवीर (माखनलाल चतुर्वेदी), दैनिक प्रताप (गणेशशंकर विद्यार्थी), ब्राह्मण, भारत, हिंदोस्थान, हिंदी प्रदीप (बाल कृष्ण भट्ट), तिलक जी का मराठी अखबार केसरी, सप्रे जी का हिंदी केसरी, छत्तीसगढ़ मित्र, पण्डित माधवराव सप्रे साहित्य की मूल प्रतियाँ, गोस्वामी तुलसीदास विरचित साहित्य की मूल प्रतियाँ, बिहारी सतसई, हंस पत्रिका के दुर्लभ पुराने अंक, गांधी जी का अखबार (नवजीवन, हरिजन), चाँद पत्रिका का फांसी अंक ( सम्पादक आचार्य चतुरसेन शास्त्री), सरस्वती के एकदम शुरुआती अंक, आनन्द कादम्बिनी आदि सैकड़ों दुर्लभ सामग्री यहाँ देखने को मिल जाएगी। इन्हें बहुत सम्भाल कर रखा गया है। अनेक दुर्लभ अखबार काँच के बक्से में संभाल कर रखे गए हैं। कुछ महत्वपूर्ण पुराने साहित्यकारो द्वारा भेंट की गई पुस्तकें भी यहाँ मिल जाएंगी। अनेक महत्वपूवर्ण साहित्यिक पुस्तकें भी संग्रहालय में देखने को मिलती हैं। सप्रे संग्रहालय की भव्यता को देख कर भोपाल, जबलपुर और रायपुर के विश्वविद्यालयों ने इसे शोध केंद्र के रूप में मान्यता प्रदान की है।
निरन्तर गतिविधियाँ
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विपुल सम्पदा का रक्षक..
सप्रे संग्रहालय को प्रख्यात आलोचक डॉ नामवर सिंह ने पवित्र विद्या मंदिर कहा था। मशहूर कथाकार कमलेश्वर ने जब संग्रहालय को देखा तो अभिभूत हो कर लिखा कि "यह संग्रहालय शब्दों विचारों की विपुल संपदा का रक्षक है। यहां आकर मैं अपने अतीत से नहीं बल्कि भविष्य मिलने की नई ऊर्जा और शक्ति ले कर जा रहा हूँ। यह एक अद्भुत उपक्रम है। अपने इतिहास, परम्परा और विरासत को पहचान कर आगे देख सकने के एक शक्तिपुंज।" अनेक साहित्यिक विभूतियां यहॉ आई और सभी ने दिल खोल कर संग्रहालय की तारीफ की। आप भी जब संग्रहालय का भ्रमण करेंगे तो इसकी तारीफ में दो शब्द लिखे बगैर लौटेंगे नहीं। तो याद रखें, जब कभी भोपाल जाएँ तो ज्ञान के इस अधुनातन तीर्थ को देखे बगैर न लौटें।
अंतिम चित्र संग्रहालय के संस्थापक विजयदत्त श्रीधर
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