संध्या प्रह्लाद
जैसा कि नाम से ही विदित होता कि " प्रणाम पर्यटन पत्रिका " मुख्यतः पर्यटन पर ही आधारित है परंतु प्रथम पृष्ठ खोलते ही कथानक के रूप में श्री प्रदीप श्रीवास्तव जी द्वारा प्रस्तुत बेहद जरूरी और प्रेरक जानकारी के रूप में "पिन कोड और सुशीला चौरसिया " का प्रसंग पाठकों को आकर्षित करता है।
मुख्य
पृष्ठ का आकर्षण "अंडमान का अनछुआ सौंदर्य " सुश्री सुषमा मुनीन्द्र द्वारा
रचित किसी डायरी के पृष्ठों की तरह पाठकों के समक्ष आता है।लेखिका ने अंडमान यात्रा
का वृतांत इतने विस्तृत और स्पष्ट रूप से अंकित किया है कि अंडमान का इतिहास,दर्शनीय स्थल,बाजार,व्यवसाय,
जेट्टी,मार्ग सौंदर्य,आदिवासियों
और आम परिवारों का रहन सहन ,व्यवहार आदि किसी विषय को नहीं छोड़ा है।निश्चय ही अंडमान की
यात्रा के इच्छुक यात्रियों के लिए यह लेख अत्यंत लाभप्रद सिद्ध होगा।
श्री
गोवर्धन जी द्वारा एक भक्त कलाकार द्वारा पत्थरों पर एक ही रात में उकेरे गए 99,99,999 चित्रों/मूर्तियों के निर्माण की जानकारी पाठक
को विस्मय और श्रद्धा से भर देती है।पाठक में "उनाकोटि " जाने की प्रबल ललक
उत्पन्न करने में लेखक का प्रयास सफल हुआ है।
श्री
हरि शंकर राढी जी ने भाखड़ा नंगल,श्री आनंदपुर साहिब और नैना
देवी का मोहक चित्र तो खींचा ही है पर लेख की समाप्ति पर अपनी वातानुकूलित कोच की यात्रा
छोड़ कर सामान्य श्रेणी में यात्रा कर जीवन की सहजता का अनुभव भी साझा किया है।
अपनी
यूरोप यात्रा के अनुभवों और जानकारियों को साझा करते हुए सुश्री वी कृष्णा नारायण जी
ने जर्सी गायों के दूध पीने से शरीर पर पड़ने वाले हानिकारक प्रभावों के संदर्भ में
होने वाले संदेहों को दूर करके बहुत सराहनीय
कार्य किया है।
श्री
मजीद खां पठान जी ने "कोठी चंदेरी " ,श्री ओम प्रकाश क्षत्रिय
प्रकाश जी ने "मंसौर के कैलाश मंदिर" , श्री धर्म चंद
आहूजा जी ने " धर्म क्षेत्र , कुरुक्षेत्र " ,सुश्री संध्या प्रह्लाद ने दार्जिलिंग यात्रा (खास कर टॉय ट्रेन के प्लस माइनस
प्वाइंट के संदर्भ में ), श्री उत्तम सिंह जी ने "हुलाक
खेड़ा" , सुश्री सुनीता भट्ट जी ने " कंडवाश्रम
" जैसे स्थानों का अद्भुत सौंदर्य,अनछुए पहलुओं और सुसुप्त
जानकारियों को दर्शाने का प्रयास सफल प्रयास किया है ।
श्री
गिरीश शंकर जी ने रेगिस्तान में स्वर्ग बनाने वाले "दुबई" के काफी सारे दर्शनीय
स्थलों को तो सहेजा है परंतु जिस पीड़ा से उनकी लेखनी ने अपने भारत और दुबई की व्यवस्था
- अव्यवस्थता और नागिरकों की सुविधा- असुविधा का चित्र उकेरा है वो किसी भी भारतीय को आहत करता
है परंतु "जब तक सांस है तब तक आस है " । हमें विश्वास रखना चाहिए कि हमारे
भारत की तस्वीर दिन ब दिन बेहतर होगी।
सुश्री उषा किरण शुक्ल जी ने दशरथ जी की समाधि की जानकारी देकर पर्यटन का नया कोना दर्शाया है ।पत्रिका में पर्यटन सम्बन्धी लेखों के साथ जो कहानी,लघु कथाएं और कविताओं को को स्थान दिया है वो पत्रिका की खूबसूरती में बढ़ोत्तरी करती हैं। पत्रिका केअंत में फोटो प्रतियोगिता को भी रोचक स्तंभ के रूप में देखा जा सकता है । प्रणाम पर्यटन पत्रिका निश्चय ही घुमक्कड़ों के लिए बेहद लाभप्रद और उपयोगी पत्रिका है फिर भी अगर मेरे नजरिए से देखा जाए तो कुछ बिंदु पर थोड़े से प्रयास से इसकी सुंदरता और भी निखारा जा सकता है ।
एक
पृष्ठ या पृष्ठ का कुछ भाग स्वस्थ चुटकुलों या हास्य परिहास ,पहेलियोंऔर कार्टून को दिया जा सकता है। पत्रिका के लेखों से सबंधित चित्रों
को रंगीन किया जा सकता है अगर व्यवस्था नहीं है तो प्रत्येक यात्रा लेख का कम से कम
एक चित्र या मध्य पृष्ठ को रंगीन दर्शाए जा सकता है।निश्चित ही पत्रिका का आकर्षण बढ़ेगा।पृष्ठ
भी बढ़ाए जा सकते हैं।
जब भी लेख संबंधी श्वेत - श्याम चित्र लगाए जाएं तो लेखकों/लेखिकाओं के चित्रों को उनसे थोड़ा हटकर प्रिंट करें जाएं तो दोनों चित्रों की मोहकता बनी रह सकेगी। उदाहारण हेतु भांगड़ा.. , दुबई.. , दार्जिलिंग.... ,जैसे लेखों में रचनाकार और लेख संबंधी चित्रों में कुछ कम स्पष्टता दिखाती है। दोनों चित्रों के श्वेत श्याम रंग मिलते हुए प्रतीत होते हैं। मुख्य पृष्ठ को और भी आकर्षक बनाया जा सकता था । कुल मिलाकर जो पाठक पर्यटन जानकारी की जिज्ञासा रखने के साथ साथ साहित्यिक स्वाद की तलाश में रहते हैं ,उनके लिए यह पत्रिका निश्चय ही उपयोगी है।
पत्रिका : प्रणाम पर्यटन (हिंदी त्रैमासिक),प्रकाशक : प्रणाम पब्लिशिंग हॉउस , इन्द्रपुरी हॉउस ,आई.आई.एम-हरदोई रोड , लखनऊ-13 , मूल्य :75/-
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