पत्रिका समीक्षा / राजीव मंडल
कला-संस्कृति से जुड़े विभिन्न सरकारी, सरकार से वित्त पोषित संस्थानों और अकादमियों की अपनी पत्रिकाएं हैं, जिनका देर-सवेर प्रकाशन होता रहता है। उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी द्वारा त्रैमासिक पत्रिका 'छायानट का प्रकाशन किया जाता है, जिससे किसी समय कई प्रतिष्ठित साहित्यकार और संस्कृतिकर्मी जुड़े रहे हैं। इधर 'छायानट' के कई विशेषांक निकले हैं, जिनमें विदुषी गिरिजा देवी, पंडित रविशंकर, पंडित वलवंत राय भट्ट 'भावरंग' पर निकाले गए विशेषांक शामिल हैं। इसी कड़ी में कथक सम्राट पंडित विरजू महाराज विशेषांक का प्रकाशन कई दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
कथक गुरु और नर्तक पंडित बिरजू महाराज अकादमी से जुड़े रहे हैं। इसके अध्यक्ष रह चुके है। कोरोना के बाद अपनी आखिरी लखनऊ यात्रा में यहां सम्मान के अवसर पर उन्होंने लखनऊ में रहकर कथक सिखाने की इच्छा जाहिर की थी। इन दिनों 'छायानट' का संपादन कर रहे कला समीक्षक आलोक पराड़कर ने बड़े परिश्रम से अंक तैयार कर इसे संग्रहणीय बना दिया है। इस परिश्रम का पता लेखकों की सूची से भी चलता है। कम ही ऐसी पत्रिकाएं और अंक होंगे जो ऐसे प्रसिद्ध कलाकारों के लेख जुटा पाते होंगे। इन लेखकों में लक्ष्मण कृष्णराव पंडित छन्नूलाल मिश्र, कनक रेले, सरोजा वैद्यनाथन, हरिप्रसाद चौरसिया, श्याम शर्मा, राजेश्वर आचार्य, शोभा दीपक सिंह, मुजफ्फर अली, अमजद अली खान, अजय पोहनकर, सुरेश तलवरकर, विश्वमोहन भट्ट, माधवी मुल, शारदा सिन्हा, अजय चक्रवर्ती, कुमार बोस, अनिंदो चटर्जी, साजन मिश्र, इल्मास हुसैन, सोमा घोष, रोनू मजूमदार, मालिनी अवस्थी, मीता पंडित, स्वरांश मिश्र, शुभ महाराज जैसे विभिन्न विधाओं के कलाकार शामिल हैं। इनके अतिरिक्त, उमा त्रिगुणायत, तरुण राज, देव प्रकाश चौधरी, प्रवीण शेखर, शशिप्रभा तिवारी, राधेश्याम कमल, अनिल नारायण शर्मा, मीना मिश्र, आनंद अस्थाना, अरविंद मिश्र हर्ष, अनिल सिद्धार्थ जैसे संगीत समीक्षकों, पत्रकारों तथा अन्य विविध क्षेत्रों के प्रमुख लोगों के लेख, संस्मरण और बातचीत भी पत्रिका में शामिल की गई है। संपादकीय में बताया गया संपादक हैं कि कथक से जुड़े कलाकारों के लेख विशेषांक के दूसरे भाग में प्रकाशित होने हैं। पंडित विरजू महाराज से जुड़े इन लेखकों के संस्मरणों से गुजरना भी रोमांचित
करता है। मसलन, प्रख्यात सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खान बताते हैं कि किस प्रकार 1963 में जब वे अमेरिका गए थे पंडित बिरजू महाराज जी के साथ तो तय हुआ था कि महाराज तबला बजाएंगे लेकिन एक ऐसा बड़ा मुश्किल वाला 'आयोजन स्थल आया जिसे एरिना स्टेज कहा जाता है, जिसमें चारों तरफ दर्शक बैठे होते हैं, और बीच में मंच होता है मुश्किल यह थी कि चारों तरफ लोग थे तो कलाकार मुंह किस ओर करें समाधान महाराज जी ने ही दिया बोले, हम लोग एक दूसरे की पीठ से पीठ चिपका लेते हैं, एक का इधर मुंह. एक का उधर, जुड़वा लोग जैसे होते हैं चिपके हुए। और हम इसी प्रकार पीठ चिपकाए चिपकाए घूमने भी लगे। चारों तरफ दर्शक थे और हम लोग सबका ख्याल रखे हुए थे।
प्रसिद्ध चित्रकार श्याम शर्मा लिखते हैं कि हमारी पटना में मुलाकात हुई थी। वे बोले कि आप तो चित्रकार हैं, आपका तो निश्चय ही संगीत से जुड़ाव होगा। मुझे थोड़ा आश्चर्य हुआ कि पंडित जी यह बात इतने दावे से कैसे कह सकते हैं? पंडित जी ने अपनी बात को विस्तार देते हुए एक प्रसंग सुनाया प्रसंग यह था कि एक राजकुमार चित्रकला सीखने गया, तो सिखाने वाले ने पूछा कि नृत्य जानते हो तो राजकुमार ने कहा कि नहीं, तो सिखाने वाले ने कहा कि पहले नृत्य सीखो राजकुमार जब नृत्य के गुरु के पास गया तो उन्होंने पूछा कि क्या गायन-वादन जानते हो तो राजकुमार ने कहा कि नहीं तो नृत्य के गुरु ने कहा कि पहले उसे सीखकर आओ। जब राजकुमार संगीत सिखाने वाले के पास गया तो उसने पूछा कि आपने कुछ साहित्य पढ़ा है, तो राजकुमार ने कहा कि नहीं। तो संगीत सिखाने वाले ने कहा कि पहले साहित्य पहकर आओ तो पहले साहित्य पढ़ो, फिर गायन-वादन जानो, फिर नृत्य जानो, फिर चित्रकला में आओ। पंडित जी ने कहा कि चित्रकला तो सभी कलाओं का मिश्रण है। आप चित्रकला करते हैं, तो आप साहित्य, संगीत का आनंद लेना भी जानते हैं। अंक में छायाचित्र भी खूब हैं।
छायानट-कथक सम्राट पंडित विरजू महाराज विशेषांक : संपादक:आलोक पराड़कर / प्रकाशक : उप्र संगीत नाटक अकादमी, लखनऊ / कीमत : 50/रुपये
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