'भारतीय राष्ट्रवाद का क ख ग को लेखक ने भारत भूमि को समर्पित करते हुए लिखा है कि देवी भारती से संपृक्त, सतत ज्ञानोन्मेषी भारत भूमि को समर्पित जिसके क्रोड की मिट्टी, पानी, हवा और प्रकृति ने प्रदान किया जीवन, पोषण और जीवनाधार और जिसके अंगराग से जागृत हुए संस्कार के संबल से प्रस्तुत है 'भारतीय राष्ट्रवाद का क ख ग ।'
पुस्तक के अध्यायों में, 'अनुक्रमणिका' में शुभासंशा, प्राक्कथन, पुरावृत्ति और विवृत्ति, 'पूर्वाचिक' में प्रस्तावना, भारतीयता का स्वरूप, भारतीयता के प्रमाण सांस्कृतिक वैशिष्ट्य, भारतीय सांस्कृतिकता और धर्म एवं उसके अनुषंग, 'मध्य मार्चिक' में राष्ट्रवाद संबंधी कतिपय प्रत्यय, राष्ट्रवाद और भारतीय मनीषी, राष्ट्रवाद और भारतीयेतर विचारक, राष्ट्रवाद के प्रलाभ, राष्ट्रवाद की उपेक्षा से कारित हानियां, राष्ट्रवाद का व्यवहारिक स्वरूप, 'उत्तराचिक' में भारतीय राष्ट्रवादः एक विशिष्ट प्रत्यय, भारतीय राष्ट्रवाद संबंधी संभ्रम, भारतीय राष्ट्रवाद अर्धोमुख क्यों, भारतीय राष्ट्रवाद की पुस्तक समीक्षा बाधक शक्तियां हैं। इसमें भारतीय राष्ट्रवाद से डाला है। 'राष्ट्रवाद और भारतीय मनीषी' में लेखक ने स्वामी विवेकानंद, दयानंद सरस्वती, महर्षि अरविंद, महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, विपिन चंद्र पाल, डॉ. एस. राधाकृष्णन, गणेश शंकर विद्यार्थी, राम मनोहर लोहिया, लोकनायक जयप्रकाश नारायण, पंडित नेहरू, माखनलाल चतुर्वेदी, आचार्य विष्णुकांत शास्त्री व गोविंदाचार्य आदि विद्वानों के विचार प्रस्तुत किए हैं।
विजय रंजन का लेखन सबसे अलग है। वे लिखते हैं, हमारे भारत का राष्ट्रवाद (भारतीय राष्ट्रवाद) 'राष्ट्रवाद' का वह सात्विक संस्करण है, जो आविश्व, प्राचीनता और परम सत्वशील, शिवशील, ऋतुशील, नयशील एवं सर्वथा मौलिक है। 'भारतीय राष्ट्रवाद' राष्ट्र के स्थायित्व, संरक्षण और उसके सम्यक संवर्धन का सांस्कृतिक प्रत्यय, उससे बढ़कर दायित्वबोध संस्कार, उससे बढ़कर राष्ट्रीय आचार है जो राष्ट्र से एकात्मकता हो जाने पर उद्भुत होता है। 'भारतीय राष्ट्रवाद' राष्ट्रीय आवश्यकता भी है और राष्ट्रीय मूल्यमान भी। इस पुस्तक के जरिए उनकी आशा है कि भारतीय एवं भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत राष्ट्रवाद (भारतीय राष्ट्रवाद या भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद) को मनसा वाचा कर्मणा, इच्छा-ज्ञान-क्रिया के संस्तर पर स्वीकार करने के बाद ही हमारा भारत एक और विश्वगुरु बनकर संपूर्ण विश्व को एक नया ऋतुंबरिक, ऋतुंभरिक, आदर्शवादी, 'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयः' और 'वसुधैव कुटुंबकम' सदृश सिद्धांतों से आप्लावित सत्वशील राष्ट्रवाद का सार्थक प्रत्यय प्रदानकर सकेगा और इस तरह भारत संपूर्ण विश्व को 'सर्व कल्याणकता' एवं 'सर्वम शांति' की ओर एक नई दिशा प्रदान करने में भी समर्थ सिद्ध होगा। विजय रंजन १९६५ से लगातार लघुकथा, कहानी, शोधपरक आलेख, कविता, समीक्षा, रिपोर्ताज, फीचर लेखन कर रहे हैं। कई पुस्तकें आ चुकी हैं।
विकल्प प्रकाशन , दिल्ली- 90 / मूल्य : 800 /-
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