110 करोड़ की लगत से होगा गोला गोकर्णनाथ कारिडोर का निर्माण: विधयक अमन गिरि
रावण शिवलिंग को लंका ले जाना चाहता था,लेकिन नहीं ले जा सका
लखनऊ /प्रदीप श्रीवास्तव / भगवन शंकर के 52 वे शातिपीठ का स्थान रखने वाले लखीमपुर खीरी के गोला गोकर्णनाथ ( जिसे छोटा कशी भी कहा जाता है) का पौराणिक शिव मंदिर शिवभक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। जहाँ पर हर साल सावन के महीने में लाखों शिव भक्त भोले नाथ के दर्शन को आते हैं. जिसकी स्थापना का प्रसंग रामायण काल से जुड़ा हुआ है.इसी मंदिर परिसर कशी अयोध्या की तरह एक कारिडोर में स्थापित किया जा रहा है .जिस पर लगभग 110 करोड़ का खर्च आएगा.इस कारिडोर के लिए उत्तर प्रदेश सरकार,उत्तर प्रदेश पर्यटन वुभाग एवं धर्नादय संस्था ने अंतिम रूप भी दे दिया है यह बात आज यहाँ एक अनौपचारिक मुलाकात में गोला गोकर्णनाथ के युवा विधायक अमन गिरी ने बताई .उन्होंने बताया कि सरकार की ओर से निर्माण कार्य की मंजूरी मिलाने के साथ ही 80 करोड़ रुपये की राशि भी स्वीकृति कर दी गई है.शेष राशि भी शीघ्र प्रदान कर दी जाएगी.
श्री अमन गिरी ने बताया कि कुछ औपचारिकतायें रह गईं है,जिनके पूरा होते ही कारिडोर निर्माण का काम शुरू हो जायेगा. उन्होंने ने बताया की इस कारिडोर संकल्पना उनके पिता पूर्व विधायक स्व. आनंद गिरी जी ने की थी . इसके लिए 6731 वर्ग मीटर जमीन अधिग्रहण का काम तेजी के साथ किया जा रहा है.कॉरिडोर की डिजाइन तैयार करवाने का काम भी लगभग पूरा कर लिया गया है.कॉरिडोर में भगवान शंकर की गोकर्णनाथ को लेकर प्रचलित कहावतों का भी उल्लेख किया जाएगा. साथ ही करीब आठ किलोमीटर के दायरे में सभी प्रकार के अतिक्रमण को हटाकर मंदिर को जाने वाले मार्ग को चौड़ा करके उसका सुंदरीकरण किया जाएगा.
रामायण काल से जुड़ी है शिवलिंग की कथा:
प्राचीन और अद्भुत शिवलिंग की स्थापना का प्रसंग रामायण काल से जुड़ा है. मान्यता है कि भगवान शंकर ने यहां मृग रूप में विचरण किया था. वराह पुराण में लिखा है कि भगवान शिव वैराग्य उत्पन्न होने पर यहां के वन क्षेत्र में भ्रमण करते हुए, रमणीय स्थल पाकर यहीं रम गए. ब्रह्मा, विष्णु और इंद्र को चिंता हुई और वे उन्हें ढूंढते हुए यहां पहुंचे तो यहां वन में एक अद्भुत मृग को सोते देख समझ गए कि यही शिव हैं.वे जैसे ही उनके निकट गए तो आहट पाकर मृग भागने लगा.
पौराणिक प्रसंग के अनुसार देवताओं ने उनका पीछा कर उनके सींग पकड़ लिए तो सींग तीन टुकड़ों में बंट गया. सींग का मूल भगवान विष्णु ने यहां स्थापित किया, जो गोकर्णनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ. सींग का दूसरा टुकड़ा ब्रह्मा जी ने बिहार के श्रंगवेश्वर में स्थापित किया. तीसरा टुकड़ा देवराज इंद्र ने अमरावती में स्थापित किया.यहां के महात्म्य का वर्णन शिव पुराण, वामन, पुराण, कूर्म पुराण, पद्म पुराण और स्कंद पुराण में भी मिलता है. गोला गोकर्णनाथ को छोटी काशी भी कहा जाता है
पौराणिक शिव मंदिर से जुड़ी एक लोक मान्यता के अनुसार त्रेतायुग में भगवान शिव रावण की तपस्या से प्रसन्न हुए। रावण भगवान शिव को अपने साथ लेकर लंका ले जाने लगा। भगवान शिव ने शर्त रखी कि उन्हें रास्ते में कहीं भी रखा, तो वह उसी स्थान पर स्थापित हो जाएंगे. शर्त के अनुसार रावण भगवान शिव को लेकर लंका के लिए चला.जब रावण गोला गोकर्णनाथ के पास पहुंचा तो उसे लघुशंका का अनुभव हुआ.
रावण एक चरवाहे को इस हिदायत के साथ शिवलिंग देकर लघुशंका के लिए चला गया कि वह शिवलिंग भूमि पर नहीं रखेगा. काफी देर तक वापस न आने पर चरवाहे ने भगवान शिवलिंग को भूमि पर रख दिया.वापस आने पर रावण ने शिवलिंग उठाने की कोशिश की, लेकिन नहीं उठा सका. इस पर गुस्से में अपने अंगूठे से शिवलिंग को भूमि में दबा दिया.मान्यता है कि गोला के पौराणिक शिव मंदिर के शिवलिंग में रावण के अंगूठे का निशान आज भी मौजूद है.
पद्म पुराण में ब्राह्मण सदानंद द्वारा पंच तीर्थों की स्थापना और महात्म्य का वर्णन मिलता है. इनमें पहला गोकर्ण तीर्थ प्राचीन शिव मंदिर के समीप, दूसरा कोणार्क तीर्थ भवानीगंज ग्राम में, तीसरा पोनाग्र तीर्थ पुनर्भूग्रंट गांव में, चौथा भद्र तीर्थ नगर के सिनेमा मार्ग के समीप, पांचवां अहमदनगर ग्राम में माण्ड ऋषि की तपस्थली में माण्ड तीर्थ के नाम से विख्यात है.
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