हिंदी विश्वविद्यालय में डॉ. आंबेडकर की जयंती पर हुआ परिसंवाद
वर्धा / महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में भारतरत्न बाबासाहेब डॉ. भीमराव रामजी आंबेडकर की जयंती के अवसर पर आयोजित परिसंवाद की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. कुमुद शर्मा ने कहा कि डॉ. आंबेडकर मानवता के संपोषक थे। उन्होंने बंधुता, समता और स्वतंत्रता इन तीन शब्दों की नींव पर वैचारिक अभियान चलाया। शुक्रवार, 11 अप्रैल को गालिब सभागार में आयोजित परिसंवाद में संस्कृति विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. दिगम्बर तंगलवाड, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर सिदो कान्हू मुर्मु दलित एवं जनजातीय अध्ययन केंद्र के प्रभारी निदेशक एवं परिसंवाद के संयोजक डॉ. बालाजी चिरडे, प्रदर्शनकारी कला विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. सतीश पावडे, डॉ. भदंत आनंद कौसल्यायन बौद्ध अध्ययन केंद्र के सहायक प्रोफेसर डॉ. सुरजीत कुमार सिंह एवं मराठी साहित्य विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ संदीप सपकाळे ने विचार रखें।कुलपति प्रो. कुमुद शर्मा ने डॉ. आंबेडकर एवं महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती पर उन्हें अभिवादन करते हुए आगे कहा कि डॉ. आंबेडकर एवं ज्योतिबा फुले मनुष्यता के बुनकर थें। डॉ. आंबेडकर की पत्रकारिता का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि मूकनायक, बहिष्कृत भारत, जनता और प्रबुद्ध भारत जैसी पत्रिकाओं को निकालकर सामाजिक अभियान चलाया और महिलाओं, दलितों व वंचितों के संघर्ष को मुखर किया। इन पत्रिकाओं के शीर्षकों में गहरा अर्थ समाहित है। वे आंखों और हृदय में भेदभाव न हो एैसे मनुष्य को गढ़ना चाहते थे। उन्होंने आव्हान किया कि संविधान शिल्पि ने जिन मूल्यों को हमें सौंपा है उन मूल्यों को आत्मसात करें और स्वस्थ्य एवं मंगलमय राष्ट्र का निर्माण करें।
डॉ. सतीश पावडे ने महात्मा फुले एवं डॉ आंबेडकर की कला दृष्टि पर विचार रखते हुए कहा कि दोनों की कला दृष्टि में समानता दिखती है। वें समाज के पथप्रदर्शक व सत्यशोधक थे। महात्मा फुले ‘सत्यमेव जयते’ के प्रणेता थे। डॉ. आंबेडकर वायलिन बजाते थे। स्कूली जीवन में उन्होंने नाटक में अभिनय भी किया था। वे एक नाट्य समीक्षक थे। डॉ. सुरजीत कुमार सिंह ने भारतीय संविधान में अंतर्निहित लोक कल्याणकारी राज्य की भूमिका और आंबेडकर विषय पर संबोधित करते हुए कहा कि हमें भारतीय संविधान के मूल्यों पर चलकर मताधिकार, आंतरिक सुरक्षा, चिकित्सा, पंचायत राज जैसी व्यवस्था में मूलगामी परिवर्तन करना चाहिए। डॉ. संदीप सपकाळे ने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का साहित्य चिंतन विषय पर विचार रखते हुए कहा कि डॉ. आंबेडकर सहभोजन और सहविवाह के पक्षधर थे। साहित्य को अस्पृश्यता निर्मूलन का मार्ग मानते थे। उन्होंने ‘शहाणी मुलगी’ नाटक लिखा और अभिनय भी किया। संस्कृत के प्रति उनका लगाव था। डॉ. आंबेडकर ने साहित्य, समता, समाज संघ बनाया था। डॉ. बालाजी चिरडे ने डॉ. आंबेडकरकृत ‘पाकिस्तान’ ग्रंथ का परिचय विषय पर कहा कि यह ग्रंथ चार खण्डों में अदालती फैसले की तरह लिखा गया, जिसमें भारत विभाजन का विस्तृत लेखा-जोखा प्रस्तुत किया। प्रो. दिगम्बर तंगलवाड ने बाबासाहेब आंबेडकर के सामाजिक विचार पर संबोधित करते हुए कहा कि डॉ. आंबेडकर ने राजनैतिक स्वतंत्रता के साथ-साथ सामाजिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। विश्वविद्यालय का सिनेट की संरचना बनाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। वें उच्च शिक्षा में शोध पर अधिक बल देने के पक्षधर थे।कार्यक्रम का प्रारंभ डॉ. आंबेडकर एवं ज्योतिबा फुले के फोटो पर पुष्पांजलि अर्पित कर किया गया। स्वागत एवं प्रास्ताविक संयोजक डॉ. बालाजी चिरडे ने किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर सिदो कान्हू मुर्मु दलित एवं जनजातीय अध्ययन केंद्र की सहायक प्रोफेसर डॉ. किरण कुंभरे ने किया तथा सहायक प्रोफेसर डॉ. राकेश सिंह फकलियाल ने आभार माना। कार्यक्रम का प्रारंभ कुलगीत से तथा समापन राष्ट्रगान से किया गया। इस अवसर पर प्रो. हनुमान प्रसाद शुक्ल, डॉ. रामानुज अस्थाना, डॉ. एच.ए. हुनगुंद, डॉ. विपिन पाण्डेय, डॉ. जयन्त उपाध्याय, डॉ. अनवर अहमद सिद्दीकी, डॉ. राजेश लेहकपुरे, डॉ. राजीव रंजन राय, डॉ. आनंद भारती, डॉ. शैलेश मरजी कदम, डॉ. राम प्रकाश यादव, डॉ. सूर्य प्रकाश पाण्डेय, डॉ. आम्रपाल शेंदरे, डॉ. राम कृपाल, बी.एस. मिरगे, डॉ. मीरा निचळे, डॉ. प्रदीप, डॉ. जगदीश नारायण तिवारी, डॉ. वागीश राज शुक्ल, डॉ. रणंजय कुमार सिंह, डॉ. अभिषेक सिंह सहित अध्यापक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।
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