प्रदेश के श्रृंगवेरपुर, जैत, कछपुरा और भावंत बन रहे ग्रामीण पर्यटन के आदर्श मॉडल : पर्यटन मंत्री
लखनऊ:/उत्तर प्रदेश में अब पर्यटन केवल ताजमहल, काशी प्रयागराज या अयोध्या तक सीमित नहीं रहा। प्रदेश सरकार ने राज्य के ग्रामीण अंचलों को भी पर्यटन के नक्शे पर लाने की दिशा में बड़ी पहल की है। पर्यटन विभाग ने 234 गांवों को पर्यटक ग्राम के रूप में विकसित करने की महत्वाकांक्षी योजना शुरू की गई है। इनमें प्रयागराज का श्रृंगवेरपुर, मथुरा का जैत, आगरा का कछपुरा और मैनपुरी का भावंत गांव पर्यटकों के स्वागत के लिए पूरी तरह तैयार है, जबकि 30 अन्य गांव परियोजना के अंतिम चरण में लिये जायेगे।
यह जानकारी आज यहां प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री श्री जयवीर सिंह ने दी। उन्हांेने बताया कि इन गांवों को ‘एग्री-रूरल और गंगेय ग्राम ग्रामीण पर्यटन परियोजना’ के अंतर्गत संवारा गया है। यहां पर्यटक न सिर्फ ऐतिहासिक और सांस्कृतिक स्थलों का भ्रमण करते हैं, बल्कि ग्रामीण जीवनशैली का भी अनुभव करते हैं। सरकारी प्रयासों का मकसद पर्यटन को ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जोड़ना और स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना है। उत्तर प्रदेश के गांवों की गोद में अब पर्यटन नया आकार ले रहा है।
इन गांवों में पर्यटकों को ठहरने से लेकर ग्रामीण जीवन को नजदीक से अनुभव करने की पूरी तैयारी है। यहां अच्छी सुविधाओं से सुसज्जित होम स्टे, फार्म स्टे उपलब्ध हैं। पर्यटक तुलनात्मक रूप से कम किराए में इस सुविधा का लाभ ले सकते हैं। गांवों की विशिष्टता और भौगोलिक स्थिति के हिसाब से वहां स्थानीय भोजन, मिट्टी के बर्तन बनाने, नौकायन, स्थानीय पोशाक और हस्तशिल्प का अनुभव ले रहे हैं।
पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने बताया कि राज्य में पर्यटन विभाग के प्रयासों से गांव अब केवल खेती या परंपरा के प्रतीक नहीं रहे। ग्रामीण पर्यटन एक नया विकास मॉडल बनकर उभरा है, जो आजीविका, आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान का संवाहक बनता जा रहा है। विभाग के इस पहल से एक तरफ जहां ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिल रहा है, वहीं स्थानीय लोगों को रोजगार के नए अवसर मिल रहे हैं। सरकार का उद्देश्य है कि पर्यटन के माध्यम से गांवों को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाया जाए।
प्रयागराज जिला स्थित श्रृंगवेरपुर वह ऐतिहासिक स्थल है, जहां भगवान श्रीराम ने निषादराज को गले लगाकर सामाजिक समरसता का संदेश दिया था। रामायण काल से जुड़ा यह स्थल आज भी श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करता है। गांव के समीप सिंगरौर (उपरहार) में स्थित श्री राम घाट, श्रृंगी ऋषि आश्रम, निषादराज के किले के अवशेष, संस्कृत महाविद्यालय और राम शयन स्थल जैसे दर्शनीय स्थल इस क्षेत्र की सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाते हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित निषादराज किले के अवशेष आज भी उस काल की गौरव गाथा को संजोए हुए हैं। यह क्षेत्र न केवल धार्मिक पर्यटन का केंद्र बनता जा रहा है, बल्कि भारतीय संस्कृति और लोककथाओं की जीवंत परंपरा को भी सहेज रहा है।
मथुरा जनपद के जैत गांव में लोक कथाएं आज भी मिट्टी की सोंधी खुशबू में घुली हुई हैं। यहां के कालिया नाग मंदिर से जुड़ी पौराणिक गाथाएं जब स्थानीय गाइडों की जुबानी सुनाई जाती हैं। यहां आने वाले पर्यटक सिर्फ इतिहास से नहीं, बल्कि ग्रामीण जीवनशैली से भी जुड़ने का मौका पाते हैं। इसी तरह, मथुरा का परसौली गाँव को भी पर्यटन ग्राम के रूप में विकसित किया जा रहा है, जो प्रसिद्द कवि सूरदास जी की जन्मस्थली होने के नाते, भी विख्यात है।
मैनपुरी का भावत गांव मिट्टी, मंदिर और लोक जीवन की सजीव झलक पेश करता है। भांवत में प्रकृति, परंपरा और पूजा एक साथ मिलती हैं। यहां जाखदर महादेव मंदिर का शांत वातावरण और गांव के कुम्हारों के साथ खुद चाक पर मिट्टी गढ़ने का अनुभव, तरकशी कला को करीब से देखने का अनुभव एवं पर्यटकों को शहर की आपाधापी से दूर ले जाकर जीवन के असली रंगों से मिलाता है।
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