All About Longwa: Nagaland's Unique Village Which Lies In Two Countries
Photo: mon.nic.in

सोचिए ज़रा: आप एक ऐसे घर में बैठे हैं जहां ड्राइंग रूम भारत में है और किचन म्यांमार में! सुनकर थोड़ा अजीब लगा न? लेकिन ऐसा गांव सच में मौजूद है — नागालैंड का लॉन्गवा गांव, जो एक तरफ से भारत में है और दूसरी तरफ म्यांमार में।

यह गांव भारत-म्यांमार सीमा पर बसा हुआ है और यहाँ के लोग दोनों देशों की नागरिकता (dual citizenship) रखते हैं। मतलब ये कि वे दोनों देशों में काम कर सकते हैं, और उनके बच्चे दोनों देशों के स्कूलों में पढ़ सकते हैं। अब बताइए, इससे अनोखी जगह और क्या होगी?

कहां है लॉन्गवा गांव?

लॉन्गवा गांव नागालैंड के मोन जिले में आता है, और यह म्यांमार की सीमा से बिल्कुल सटा हुआ है। यह गांव कोन्याक जनजाति का घर है — वही कोन्याक जनजाति जो कभी अपने हेडहंटर (शत्रुओं का सिर काटना) कल्चर के लिए जानी जाती थी। हालांकि अब यह परंपरा बंद हो चुकी है, लेकिन इनकी संस्कृति आज भी जिंदा है — संगीत, कहानी-कहानियों और हस्तशिल्प के ज़रिए।

क्या है खास?

 एक ही घर, दो देश

यहां का सबसे दिलचस्प घर है अंग (Angh) यानी गांव के मुखिया का घर। इस घर का एक हिस्सा भारत में है और दूसरा म्यांमार में। जब आप उनके घर के अंदर जाएंगे, तो आपको एक तरफ भारतीय झंडा और दूसरी तरफ म्यांमार का झंडा दिखेगा। उनके घर में डाइनिंग हॉल भारत में है और किचन म्यांमार में।

 अंग कौन होते हैं?

अंग को यहाँ राजा की तरह माना जाता है। लॉन्गवा के अंग के अधीन भारत में 3 गांव और म्यांमार में 35 गांव आते हैं। यानी इनका प्रभाव दोनों देशों में फैला हुआ है।

लॉन्गवा का कल्चर और त्योहार

यह गांव भले ही छोटा हो, लेकिन इसकी संस्कृति बहुत ही रंगीन है। हर साल यहाँ आओलियांग महोत्सव (Aoleang Festival) मनाया जाता है, जो फसल कटाई का त्योहार है।

इस दौरान पूरे गांव में पारंपरिक नृत्य, गीत-संगीत और दावतों का आयोजन होता है। लोग पारंपरिक कपड़े पहनते हैं और रंग-बिरंगे त्योहारों की तरह पूरा गांव सज जाता है।

लॉन्गवा में क्या-क्या करें?

1. View Point से नज़ारा लें

गांव के सबसे ऊंचे हिस्से पर एक व्यू पॉइंट है, जहाँ से म्यांमार की पहाड़ियाँ और चारों तरफ फैला हरियाली का नज़ारा ऐसा लगता है जैसे किसी पेंटिंग में आ गए हों।

2. लोकल गन फैक्ट्री देखें

हेडहंटिंग खत्म होने के बाद कई स्थानीय लोग हथियार (गन) बनाने लगे। आज भी कुछ फैक्ट्रियों में ये हथियार बनते हैं, जिन्हें देखकर आप हैरान रह जाएंगे कि ये कितनी कुशलता से बनाए जाते हैं।

3. हस्तशिल्प की खरीदारी करें

कोन्याक जनजाति हस्तशिल्प में माहिर होती है। यहाँ आपको हाथ से बनी बीड्स की ज्वेलरी, लकड़ी की मूर्तियाँ और पारंपरिक वस्त्र जैसे कई अनोखे आइटम मिलेंगे — जो आपके घर की शोभा बढ़ा देंगे।

लॉन्गवा कैसे पहुंचें?

✈️ हवाई मार्ग से:

सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है डिब्रूगढ़ (Dibrugarh), असम। वहां से सड़क मार्ग से मोन तक जाना होता है (लगभग 4 घंटे का सफर)।

आप चाहें तो जोरहाट एयरपोर्ट से भी जा सकते हैं, लेकिन वहां से मोन पहुंचने में करीब 5 घंटे लगते हैं।

🚆 रेल मार्ग से:

निकटतम रेलवे स्टेशन हैं सिमालुगुरी और डिब्रूगढ़ (असम)। वहां से टैक्सी या बस के जरिए मोन पहुंच सकते हैं।

🚌 सड़क मार्ग से:

सिबसागर (Sibsagar) से मोन पहुंचने में 5-6 घंटे लगते हैं। मोन से लॉन्गवा के लिए हर सुबह शेयर टैक्सी चलती हैं। लॉन्गवा की दूरी मोन से 42 किलोमीटर है और सफर करीब 1.5 घंटे का होता है।

अंत में...

अगर आप उन लोगों में से हैं जो घूमने के साथ-साथ कुछ नया देखना, समझना और महसूस करना चाहते हैं, तो लॉन्गवा गांव आपके लिए परफेक्ट डेस्टिनेशन है।

यहां न कोई बड़ी इमारतें हैं, न कोई फैंसी कैफे — लेकिन जो शांति, अपनापन और "दो देशों में एक साथ रहने" का अनोखा अनुभव मिलेगा, वो ज़िंदगी भर याद रहेगा।

तो अगली बार जब ट्रैवल बैग पैक करें, तो लॉन्गवा को अपनी ट्रैवल लिस्ट में ज़रूर जोड़ लें। क्योंकि ये जगह "सीमा के पार" नहीं, दिल के बहुत करीब है।

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