साहित्यकार माला वर्मा की एक और पुस्तक हाथ में लिए बैठी हूँ। यद्यपि मैंने अंटार्कटिका की यात्रा नहीं की है, मैं भी पुस्तक के माध्यम से यात्रा कर रही हूँ। लेखिका इस देश के बारे में लिखती हैं---" अंटार्कटिका यात्रा अद्भुत अनुभव प्रदान करती है। यहाँ विशाल बर्फीले महादेश का अनोखा सौंदर्य देखने को मिलता है। पेंगुइन और ह्वेल जैसे वन्यजीव के साथ अविस्मरणीय मुलाकातें होती हैं।
वैज्ञानिक शोध करने का अवसर भी मिलता है। "
सबसे पहले मेरा ध्यान यात्रा में लिखी गई रचनाओं पर गया।एक रचना है-" पेंगुइन " इस पर बरबस ध्यान जाता है, क्यों कि जीव लोक का दर्शन हो पाता है। आखिर जहां केवल बर्फ ही बर्फ हो, वहाँ एक जीव की हलचल भी बहुत है।
पेंगुइन से मैं बोली/ आ जाओ करीब/ मेरे संग मेरे घर चलोगे/ पेंगुइन बोला/ क्या ही अच्छा हो/ तुम यहीं रह जाओ/ अंटार्किटिका बहुत सुंदर है/ तुम अपना डेरा यहीं जमा लो।
पेंगुइन पर मेरी भी एक रचना है---
उड़ता नहीं तैर सकता हूँ
रोकूं मैं देरी तक सांस।
मांसाहारी भोजन करता ।
बर्फों पर मैं हूँ रहता।
समुद्री तट हैं आकर्षण।
गहरे पानी में गोता।
हम सब जीव स्वंय भोगी हैं
खाते- खेलें जीवन पा।
परहित क्या है,क्या जाने हम?
भूख, शयन बस है स्वीकार।
बहुत सुंदर शैली में लिखा गया है यह यात्रा- संस्मरण। 280 पृष्ठ तक संस्मरण को बांधना, और उसी बहाने पाठकों को भी बांधे रखना, कलम की करामात है।भाषा का सरल होना इसके पाठकों को रोचकता प्रदान करता है। तारीख देकर अपनी बातों को आगे बढ़ाना, डायरी का भी आनंद दे रहा है। तैयारी का एक बेहतरीन नमूना देखिए---
" सब तरह की कागजी औपचारिक ताएं पूरी हुईं , जो भी सवाल- जवाब जिसके मन में उठ रहा था, उसका निवारण हुआ। पूरी तसल्ली के बाद अब बारी थी- कुछ मीठा हो जाए, और यहाँ तो मीठे के साथ नमकीन वस्तुओं की एक लंबी फेहरिश्त थी। यानि खाने- पीने का पूरा सरअंजाम सजा था।वेज- नॉनवेज के कई आइटम और साथ में दही बड़ा जो मेरा फेवरेट आइटम है। गर्मा- गरम सूप भी एक बड़े मटके में रखा था। मीठे में आइसक्रीम के साथ दो- तीन मिठाइयाँ। भरसक प्रेम से भोजन का लुत्फ उठाई। "
कोलकाता - दिल्ली- अदीस अबाबा- ब्यूनस आयर्स के अध्याय में दिनांक 2/3/2023 से लिखना आरंभ करती हैं। " अदीस हबाबा " का अर्थ होता है --' नया फूल ' बताते हुए लेखिका ने इसकी ऐतिहासिक जानकारियाँ भी दी हैं---" अदीस हबाबा सन् " 1800 के अंत में इथियोपिया की राजधानी बन गया था। इससे पहले राजधानी एंटोटो थी, जो बहुत ठंडा शहर था। सन् 1887 में साम्राज्ञी तैतु ने अपने पति सम्राट मेनेलिक को अपनी राजधानी को अदीस अबाबा में स्थानांतरित करने के लिए राजी किया।
पृष्ठ संख्या 74 पर माला जी ने प्रकृति का चित्रण करते हुए लिखा है कि---" इस 'टिएरा डेल फुएगो ' में बहुत तेज हवाएं चलती हैं। ये 60 किलोमीटर प्रति घंटा से लेकर 100 किलोमीटर तक पहुंच जाती हैं। यहाँ बहुत कठोर और मजबूत किस्म के पेड़ की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। बावजूद इसके ये पेड़ इन तेज ठंडी हवाओं को झेल नहीं पाते और ऊपर से मुड़ जाते हैं। फिर इन्हें झंडे के पेड़ के नाम से भी पुकारा जाता है। "
विभिन्न द्वीपों के भ्रमण के बीच खोजकर्ता मैगलन का जिक्र भी करती हैं जिसने बड़ी संख्या में आग और धुएं को देखा और इस द्वीप का भी यही रख दिया।वर्णन करते हुए लिखती हैं----" इस द्वीप पर आग और धुएं की उठती लकीर के पीछे कारण था-- यहाँ जो आदिवासी रहते थे या तो वे बिलकुल नग्न रहते या बहुत कम कपड़े पहनते। उस वक्त स्थानीय लोगों ने आग जलाने में महारथ हासिल कर ली थी।उन्होंने अपनी झोपड़ियों को तीव्र हवाओं से सुरक्षित रखना सीख लिया था। ये सेल्कनम, ओनास, या यघान लोग थे, जिन्होंने दुनिया के इस अंतिम सिरे पर अपना जमीनी कब्जा कर लिया था। जब तक यहाँ अन्य जगहों से कोई खोजकर्ता नहीं आए, इनकी बढ़त या अधिकार नहीं हुए, तब तक उन्हीं प्राचीन लोगों की बस्ती यहाँ फलती- फूलती रही। बाद में उनमें से बचे कई लोग , छोटी- मोटी बीमारियों से खत्म होते गए। उनके 32 हजार से अधिक शब्दों वाली ' यामानास ' भाषा आज भी एक पहेली बनी हुई है। "
पूरी पुस्तक पढ़ कर ऐसा लगता है कि -- लेखिका जब भी इन यात्राओं पर जातीं हैं अपने लेखक मन को सजग रखती हैं। हर समय सूचनाएं, दृश्यावलियों, आसपास की गतिविधियों की , वहाँ के इतिहास, रहन-सहन, भाषा, साहित्य, जन जीवन, मौसम, पर्वत, नदियों, मानव विकास जानकारियों की समस्त जानकारियाँ साथ लिए रहती हैं। इनका यात्री जीवन दूसरों की यात्राओं का पथ- प्रदर्शक बना गया है।अद्भुत लेखन की इस विशिष्ट कलमकार को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं। सुधि पाठकों से निवेदन है -- इस प्रकार की पुस्तकें अवश्य पढ़िए। लोग पढ़ना छोड़ दिए हैं, इस सदी का सबसे बड़ी दुर्घटना यही है।
किताबों की तकिया किताबों से साथी।
चलाचल मुसाफिर मिले नवल पाती।
अंटार्कटिका ( एक अनोखा महादेश)-- यात्रा संस्मरण ,प्रथम संस्करण--2023,अगस्त मूल्य---500/ प्रकाशक-अंजनी प्रकाशन - पश्चिम बंगाल
0 टिप्पणियाँ