भारत की आजादी में दांडी मार्च की खास अहमियत रही है। यही वजह है कि दांडी मार्च के आगाज के खास दिन को ही भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष के भव्य समारोह के शुभारंभ के लिए चुना गया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में दांडी मार्च सबसे प्रभावशाली प्रतीकात्मक आन्दोलन रहा है । दांडी यात्रा के बाद की घटनाओं को हम देखें तो ब्रितानी हुकूमत की औपनिवेशिक सत्ता दबाव में आने लगी थी। इस आन्दोलन के माध्यम से महात्मा गाँधी ने एक बार फिर दुनिया को सत्य और अहिंसा की ताकत का परिचय कराया। भारत में नमक बनाने की परम्परा प्राचीन काल से रही है। परम्परागत ढंग से नमक बनाने का काम किसानों द्वारा किया जाता रहा है, जिसे नमक किसान भी कहा जाता था। बिहार और कई अन्य प्रान्तों में यह कार्य ख़ास जाति के हवाले था। धीरे-धीरे नमक बनाने की तकनीक में सुधार आरंभ हुआ था लेकिन समय के साथ नमक जरूरत की वस्तु की बजाय व्यापार की वस्तु बनने लगा था।
2 मार्च 1930 को लार्ड इरविन को लिखे एक पत्र में गांधी जी कहते हैं, ‘राजनीतिक दृष्टि से हमारी स्थिति गुलामों से अच्छी नहीं है, हमारी संस्कृति की जड़ ही खोखली कर दी गयी है। हमारा हथियार छीनकर हमारा सारा पौरुष अपहरण कर लिया गया है।’ इसी पत्र में वे आगे लिखते हैं, ‘इस पत्र का हेतु कोई धमकी देना नहीं है। यह तो सत्याग्रही का साधारण और पवित्र कर्तव्य मात्र है। इसलिए मैं इसे भेज भी खासतौर पर एक ऐसे युवा अंग्रेज मित्र के हाथ रहा हूँ, जो भारतीय पक्ष का हिमायती है, जिसका अहिंसा पर पूर्ण विश्वास है और जिसे शायद विधाता ने इसी काम के लिए मेरे पास भेजा है।’ जिस अंग्रेज युवक का गांधीजी जिक्र कर रहे हैं उसका नाम रेजिनाल्ड रेनाल्ड था। यह युवक गांधीजी के साथ आश्रम में रह चुका था और गांधीजी की नीतियों में पूरा यकीन रखता था। लार्ड इरविन को पत्र लिखने के पीछे गांधीजी का उद्देश्य चेतावनी की बजाय सूचना देना था क्योंकि वे गरीबों के दृष्टि से इस क़ानून को सबसे अधिक अन्यायपूर्ण मानते थे।
तय कार्यक्रम के अनुसार दिनांक 12 मार्च को साबरमती आश्रम से दांडी मार्च प्रारंभ हुआ। ठीक साढ़े छह बजे गांधीजी ने अपने 79 अनुयायियों के साथ आश्रम छोड़ा और मार्च आरंभ किया। दांडी तक की 241 मील की दूरी उन्होंने 24 दिन में पूरी की। इस दौरान गांधीजी जहां पर विश्राम करते थे, वहीं जनसमूह को सम्बोधित करते थे। उनके भाषणों ने लोगों में अंग्रेजों के जुल्म के विरूद्ध माहौल पैदा कर दिया था।
दांडी यात्रा के दौरान यह तय किया गया कि नमक कानून पर ही लोग अपनी शक्ति केंद्रित रखें और साथ ही यह चेतावनी भी दी गई कि गांधीजी के दांडी पंहुचकर नमक तोडने से पहले सविनय अवज्ञा शुरू नहीं की जाएगी। गांधी जी की अनुमति से सत्याग्रहियों के लिए एक प्रतिज्ञा पत्र बनाया गया। इस पत्र की शर्तों में शामिल था कि मैं जेल जाने को तैयार हूं और इस आंदोलन में और जो भी कष्ट और सजाएं मुझे दी जाएंगी, उन्हें मैं सहर्ष सहन करूंगा। 4 अप्रैल 1930 को रात्रि में पदयात्रा ने दांडी में प्रवेश किया। 5 अप्रैल की प्रातः खादी धारण किए हुए सैंकड़ों गांधीवादी सत्याग्रही दांडी तट पर एकत्र हुए। दांडी में प्रेस वार्ता भी आयोजित की गई। सरोजिनी नायडू, डॉ. सुमंत, अब्बास तैयबजी, मिट्ठूबेन पेटिट भी गांधीजी से मिलने आए। अपने संबोधन में गांधीजी ने अगले दिन सुबह नमक कानून तोड़ने की जानकारी दी। 6 अप्रैल को प्रातः दांडी तट पर नमक हाथ में लेकर गांधीजी ने नमक कानून तोड़ा। ब्रिटिश कानून के तहत उन्हें हिरासत में लिया गया।
गिरफ्तारी से पूर्व गांधीजी ने अपना संदेश में कहा था, “त्याग के बिना मिला हुआ स्वराज टिक नहीं सकता। अतः सम्भव है जनता को असीम बलिदान करना पड़े। सच्चे बलिदान में एक ही पक्ष को कष्ट झेलने पड़ते है, अर्थात बिना मारे मरना पड़ता है।” दांडी यात्रा का वर्णन करते हुए लन्दन टेलीग्राफ के संवाददाता अश्मीद बार्टलेट ने लिखा था, ‘कौन जाने यह घटना आगे चलकर ऐतिहासिक बन जाए? एक ईश्वर दूत की गिरफ्तारी कोई छोटी बात है? सच्चे-झूठे की भगवान जाने, परन्तु इसमें कोई शक नहीं, गांधी आज करोड़ों भारतीयों की दृष्टि में महात्मा और दिव्य पुरुष हैं।’
भारत की आजादी का यह सबसे महत्वपूर्ण पड़ाव था, जो दांडी यात्रा के बीज से निकला था। गांधीजी की दांडी यात्रा के साथ भारत भर में राष्ट्रीय चेतना की लहर चल पड़ी। भारत की स्वतंत्रता के लिए गांधी जी का दांडी मार्च आज भी मुश्किल वक्त में सही फैसला करने की राह दिखाता है और लोगों को त्याग की अहमियत समझाता है। यही वजह है कि करीब 91 साल बाद जब मैं उसी मिट्टी पर आजादी के 75 साल के अमृत उत्सव के मौके पर पदयात्रा करूंगा तब देश के हालात बदले हुए हैं। अब हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि भारत का सफर अब स्वाबलंबन और स्वाभिमान के साथ तय होगा। हम दुनिया के सामने अब याचक नहीं होंगे। हमारी छवि अब दुनिया अपने केनवास पर दाता के रूप में बनाएगी। हमने विश्व में संकट के समय में दवा हो या वैक्सीन दूसरे देशों को अपना कुंटुंबी मानकर पहुंचाई है। हम श्रम की भाषा इसलिए बोलना चाहते हैं कि हमारी आने वाली नस्ले दीनता की भाषा न बोलें। प्रधानमंत्री का कहना है कि देश जब आजादी का सौवां महोत्सव मनाएगा तो पूरी दुनिया के सामने हम एक ऐसा उदाहरण होगें, जिसके विजय गीत दुनिया के हर आंगन में दोहराए जाएंगे और हमारी संस्कृति का वैभव गान हर दिल में होगा।
(केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार)
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