रजनीकान्त अपनी पत्नी लता के साथ 
बनाम रजनीकांत अर्थात तमिलनाडू में भाजपा

प्रणाम/वसुंधरा  पोस्ट 
लखनऊ , गुरुवार 1 अप्रैल की सुबह जब भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर  दक्षिण फिल्म उधयोग के आइकन रजनीकांत को वर्ष 2019 का प्रतिष्ठित दादा साहेब फाल्के पुरस्कार देने की घोषणा की तो चारों तरफ हर्ष की लहर दौड़ पड़ी , लेकिन दूसरी ओर यह बात भी होने लगी कि यह घोषणा यदि पाँच  दिन बाद होती तो क्या अतिशयोक्ति होती । क्यों कि 6 अप्रैल को ही  रजनीकांत के गृह राज्य तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान है। इसी बात को लेकर जब एक पत्रकार ने सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश  जावडेकर  से पूछा कि आज कि यह घोषणा महज संयोग है या इसके पीछे कोई और बात , इसी प्रश्न पर जवाडेकर साहब भड़क गए और उन्होने उस पत्रकार को यह नसीहत दे डाली कि जरा ‘उचित’ सवाल पूछा करो। अब आप ही सोचो जब तमिलनाडू में विधान सभा के चुनाव हो रहे हैं तो यह सवाल वाजिब ही तो है। लेकिन साहब यह राजनीति कि उठा-पटक साधारण लोगों के समझ के बाहर है ,यह सोचना राजनीतिक पार्टियों का है , जो अनुचित है।  रजनी कांत को दादा साहब फाल्के सम्मान देना वास्तव मैं गर्व की बात है,जिसका हर भारतीय स्वागत करता है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी के इस 'तीर 'इस बार न सही , लेकिन 2026 के विधान सभा चुनाव एवं 2024 के संसदीय चुनाव में तमिलनाडू में कमाल के खिलाने से कोई नहीं रोक सकता है। यही दूरगामी रणनीति मोदी व शाह की है।  
व्यावसायिक सिनेमा में अन्यतम और दीर्घावधि योगदान के लिए रजनीकांत को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार के लिए चुना जाना प्रत्याशित ही था। जिस जूरी ने उनका नाम का चुनाव किया, उनमें आशा भोसले जैसी हस्तियां शामिल थीं। 2019 का दादा साहब फाल्के सम्मान हिन्दी सिनेमा के सरताज अमिताभ बच्चन को दिया गया था । उल्लेखनीय है कि यह सम्मान पाने वाली पहली अदाकारा थीं देविका रानी । एक निम्न मध्यमवर्गीय मराठा परिवार में जन्मे रजनीकांत का बस कंडक्टर से सिने उद्योग का आइकन बनने की कहानी भी कुछ परिकथा-सी है। बंगलुरू में एक बस कंडक्टर में अभिनय प्रतिभा की खोज उनके सहयोगी बस ड्रायवर ने खोजी और एक तमिल फिल्म प्रोड्यूसर ने रजनीकांत को अपनी फिल्म में चांस भी दे दिया। चाकलेटी चेहरा न होने के बावजूद रजनीकांत ने अपनी जबर्दस्त एक्टिंग से साबित कर दिया कि दक्षिण के फिल्माकाश पर नया सूरज उदित हो चुका है।
रजनीकांत अपनी कई फिल्मो में ‘लार्जर देन लाइफ’ सुपर हीरो की तरह नजर आते हैं। उनकी पंचलाइनें प्रशंसकों को दीवाना बना देती हैं। उनकी कुछ हिंदी फिल्मो के चंद हिट डायलाॅग-‘मैं शक की बुनियाद पर केस का पन्ना खोलता हूं..और यकीन में बदलकर बंद कर देता हूं ( ‍फिल्म ‘फूल बने अंगा’रे)। किसी भी चीज की कामयाबी में साथ तो बहुत लोग देते हैं, लेकिन उसकी वजह बताता है एक दुश्मन (‘लिंगा’)। मौत से जिंदा लौटने का अलग ही मजा है (‘2.0’)। मैं दिखता एक इंसान हूं पर हूं एक मशीन (‘रोबोट’)।
यह भी रजनीकांत की महानता है कि उन्होंने यह अवार्ड अपने पुराने बस ड्राइवर साथी राजबहादुर और अपने पहले फिल्म डायरेक्टर स्व. के.बालाचंदर को समर्पित‍ किया। तमिलनाडु में तो रजनीकांत को उनके प्रशंसक भगवान’ मानते हैं। आदर से उन्हें ‘थलाइवा’ ( नेता) का कहा जाता है। वो देश के सर्वाधिक महंगे फिल्मी हीरो में से हैं। 2019 में रजनीकांत ने एक फिल्म में काम करने की फीस 81 करोड़ रू. लेकर नया रिकाॅर्ड बनाया था। अपनी कमाई में से वो कई सामाजिक कार्यों के लिए भी भरपूर मदद देते हैं। लिहाजा रजनीकांत की लोकप्रियता का क्षितिज बहुत व्यापक है। संभवत: इसी कारण से बीते तीन सालों से वो राजनीति के दलदल में कदम रखने की हिम्मत जुटा रहे थे। उन्होंने एक संगठन भी बना लिया था। लेकिन ऐन वक्त पर पैर पीछे खींच लिए। रजनीकांत को अपनी यूनिक डायलाॅग डिलीवरी के साथ बेबाक राजनीतिक वक्तव्यों के लिए भी जाना जाता है। उनके बयानों और गति‍विधियों में कई बार भाजपा और उसकी विचारधारा से नजदीकियां देखी गईं। एक बारगी यह मान लिया गया था कि रजनीकांत या तो भाजपा में शामिल होंगे या फिर कोई नई पार्टी बनाकर भाजपा से गठबंधन करेंगे।
जहां तक रजनीकांत को सिने उद्दयोग का यह सबसे बड़ा पुरस्कार देने की बात है तो इसके लिए वो सर्वथा पात्र हैं। क्योंकि रजनीकांत ने अपनी अभिनय की अलग शैली तथा अदाकारी का नया स्टाइल विकसित किया और उसे इस कदर लोकप्रिय बनाया कि वह ‘रजनीकांत स्टाइल’ के नाम से मशहूर हो गया। उनके अभिनय में चेहरे के भावों के साथ चमत्कृत करने वाली शारीरिक अदाएं भी होती हैं। जिससे रजनीकांत की यह छवि बनी कि वो ‘कुछ भी’ कर सकते हैं। अर्थात असंभव को संभव बनाने का नाम ही रजनीकांत है। उनकी तुलना बाॅलीवुड के 20 वीं सदी के महानायक अमिताभ बच्चन से भी की जाती है।
उधर तमिलनाडु में भारतीय जनता पार्टी रजनीकांत में अपनी राजनीतिक संभावनाएं ढूंढती रही है। उसे उम्मीद थी कि रामकृष्ण मिशन स्कूल में शिक्षा ग्रहण करने वाले और रजनीकांत अगर भारतीय संस्कारों को तरजीह देने वाली रजनीकांत भाजपा में आते हैं या उसके साथ सियासी समझौता करते हैं तो द्रविड राजनीति के दो कोणो के बीच एक हिंदू वादी कोण भी खड़ा किया जा सकता है। लेकिन इसी अति आशावाद को रजनीकांत ने शायद अपनी सीमाओं के रूप में चीन्हा। पहला कारण तो यह कि रजनीकांत भले खुद को ‘तमिल’ मानने लगे हों, लेकिन वो मूलत: गैर तमिल यानी मराठा हैं। वो सक्रिय राजनीति में आते तो उन पर पहला वार ‘गैर द्रविड’ के रूप में होता। दूसरे, अपने ‘अति मानव’ की जो छवि रजनीकांत ने खुद गढ़ी है, उसके राजनीतिक दांवपेंचों और चुनावी हार- जीत से ध्वस्त होने का खतरा भी था। आखिर चमत्कारिक अभिनय और राजनीतिक चमत्कार दो बिल्कुल अलग-अलग बाते हैं और दोनो के तकाजे भी भिन्न-भिन्न हैं। इन दोनो में संतुलन बिरले ही बिठा पाते हैं, उनमें से एक बड़ा चेहरा अम्मा जयललिता थीं।
जाहिर है कि रजनीकांत को अपने राजनीतिक करिश्मे पर पूरा आत्मविश्वास नहीं होगा, इसलिए उन्होंने सियासी अखाड़े में खम ठोकने से कदम पीछे खींच लिए। लेकिन भाजपा को शायद अभी भी उम्मीद है कि रजनीकांत का नाम भी कुछ कमाल तो कर ही सकता है। तमिलनाडु में भाजपा इस चुनाव में अन्नाद्रमुक गठबंधन में है और 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। रजनीकांत को दादा साहेब फाल्के पुरस्कार देने से यह सकारात्मक संदेश तो तमिलों में जा ही सकता है कि मोदी सरकार और देश तमिलनाडु की प्रतिभाओं का सम्मान करने में कहीं भी पीछे नहीं है। हालांकि यह पुरस्कार राज्य में भाजपा को पिछले विधानसभा चुनाव में मिले मात्र 2.41 प्रतिशत वोटों में कितना इजाफा कर पाएगा, यह देखने की बात है। लेकिन पार्टी को उम्मीद है कि एआईएडीएमके का पल्ला पकड़ कर वह राज्य में अपनी उल्लेखनीय मौजूदगी दर्ज करा सकती है।