उसे याद करते हुए नरेश अग्रवाल की प्रेम कविताओं का संग्रह है जिसमें 102 छोटी कविताएँ संकलित हैं। इसकी अधिकांश कविताएँ देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर प्रशंसित हो चुकी हैं। कवि नरेश अग्रवाल ने प्रेम को कई कोणों से देखने महसूसने और आत्मसात करने का प्रयास किया है जिसमें कवि को अन्ततः सफलता मिली है। कवि प्रेमाभिव्यक्ति में इस कदर डुबा है कि वह जिधर भी देखता है, उसे प्रेम ही प्रेम दिखाई पड़ता है। कवि प्रेम में भीगा हुआ है, फिर भी उसे शांति नहीं है। वह चाहता है कि मैं ही प्रेमय बन जाऊँ, ताकि लोग मेरी नज़रों के सामने प्रेम के सिवाय कुछ न दिखें। कवि नरेश अग्रवाल ने ‘समर्पण’ में लिखा है कि यह पुस्तक समर्पित है उन सभी को जिनसे मैंने प्रेम किया है। चाहे वह अधूरा रहा या कुछ दूर चलकर रुक गया या लम्बे समय तक साथ देकर थक गया या जो अभी भी साथ है।

डाॅ. ओम निश्चल ने लिखा है कि ‘‘ हर कवि चाहे वह कितना क्रांतिकारी क्यों न हो, उसकी कविता के केन्द्र में प्रेम का निवास होता है। सृष्टि के लाभ, छंद की तरह उसकी कविता जीवन के लाभ, छंद को पकड़ती और सहेजती है। प्रेम का अनुभव एक अनुष्ठान की तरह उसकी कविताओं की मनोभूमि में विन्यस्त होता है। नरेश अग्रवाल का यह कविता-संग्रह ‘उसे याद करते हुए’ प्रेम की इसी प्रनोति पर आधारित है जिसमें वे कहीं इस नतीजे पर पहुँचते हैं- हृदय जब प्रेम के द्वार पर दस्तक देता है तो मन किसी व्यंजन की तरह मधुर कलरव में खो जाता है, वह जैसे संसर्ग के हर सर्ग की परिक्रमा का पुण्यफल अर्जित करता है, कुदरत की निर्वाह किन्तु अनिद्म आत्मा में बीज बनकर सामने की इच्छा लिये हुए बारम्बार लौटने की कामना से प्रतिभुत होता है।’’

‘पंख के सहारे’ कविता के माध्यम से कवि ने प्रेम करने के हर तौर-तरीके को मानने से इनकार कर दिया है। वह कहता है कि हम उतना ही प्रेम करें, ताकि दुनिया हमें कभी अलग-अलग न समझे। पंक्षी पंख के सहारे जीता है, उसी तरह मैं प्रेम के सहारे जीना चाहता हूँ। प्रेम करने के .......मायाजाल कवि के पसंद नहीं है। वह तो प्रेम को हृदय से अहसास करते हुए जीवन गुजार देना चाहता है। कवि ने लिखा है-

‘‘क्या ये शर्त है

साथ-साथ जीने की?

मैं किसी शर्त को नहीं मानता

न हो किसी नियम-कानून को

केवल तुम्हें अपने में महसूस करते हुए

हर पल जीता हूँ,

जैसे पंक्षी पंख के सहारे!’’

‘यह विश्वास ही है’ कविता के माध्यम से कवि ने कहना चाहा है कि प्रेमसी का दिया हुआ हर चीज उसे स्वीकार है, वह चाहे अमृत हो या जहर हो। वह प्रेम में कुछ भी स्वीकार करने को तैयार है। वह बस इतना ही चाहता है कि तुम्हारा साथ बना रहे तो वह हर चीज को स्वीकार कर लेगा। यानी प्रेमसी के सिवाय किसी दूसरे का दिया हुआ कोई भी चीज उसे स्वीकार नहीं है। कवि ने लिखा है-

‘‘इस प्याले में

अमृत भी हो सकता है

यह जहर भी

अगर यह मेरी प्रेमसी का हो

आँखें बंद कर जी जाऊँ

किसी दूसरे का होगा

त्याग दूँगा अविश्वसनीय समझकर’’

‘शुक्रिया तुम्हारा’ कविता के आध्यम से कवि ने प्राकृतिक उपादानों से प्रेम को परिभाषित करने की कोशिश की है। प्रकृति ने हमें जो कुछ दिया है, उसमें छिपाव नहीं है, वह खुला है। वह चाहता है कि तुममें भी छुपाने का एहसास है, पर तुमने उसे छुपाने की कोशिश नहीं की। अपनी गलतियाँ भी तुमने हंसते-हंसते स्वीकारा है। तुमने मुझसे कुछ भी छुपाने की कोशिश नहीं की। मैंने उसे हमेशा प्रकृति प्रदत्त ही समझा है। कवि ने लिखा है-

‘‘लेकिन तुम्हारे पास तो था

बहुत कुछ छुपाने के लिए

लेकिन शुक्रिया तुम्हारा

तुमने स्वयं को कभी ढ़का नहीं

न ही कभी मुझसे छल किया

अपनी गलतियों को भी

हमेशा हँसते-हँसते स्वीकारा’’

‘प्रेम’ कविता के माध्यम से कवि ने प्रेम में असफल प्रेमी की मनःस्थिति का वर्णन किया है। वह अपनी प्रेमिका को कई रूपों में देखता है। उसे पहली प्रेम याद है जब वह पंद्रह साल का था, फिर प्रौढ़ावस्था काल और अंत में वह असहाय हो जाती है, तब का लेकिन वह प्रेम करने में असमर्थ है, क्योंकि उसके पीछे घर-परिवार खड़ा है। जब वह प्रेम करना चाहा था, तब तो स्थितियाँ अनुकूल नहीं बन सकी थी। वह चाहते हुए भी अपनी प्रेमिका को स्वीकार नहीं कर पाता है, क्योंकि वह पारिवारिक बंधन से बंध चुका है। कवि ने लिखा है-

‘‘आखिरी मौका था प्रेम को

अपने में पिघला लेने का

इस बार भी तुमसे प्रेम हुआ

लेकिन साहस नहीं रहा

मेरे पीछे परिवार खड़ा था’’

‘तुम्हारा चेहरा’ कविता के माध्यम से कवि प्रेम में अपनी प्रेमिका के आदते स्वरूप को देखना पसंद नहीं करता है। उसे लगने लगता है कि तुम्हारे चेहरे का ढ़का जाना, आधे संसार का ढ़क जाना है। कवि को लगता है कि मेरा संसार ही आदम हो गया है, जबकि वह चाहता है कि तुम्हारा चेहरा प्रकृति की तरह अनावृति हो। ताकि सब कुछ मैं साफ-साफ देख सकूँ। कवि को अपनी प्रेमिका की हर गतिविधि पर नज़र है। तभी तो वह उसी के सहारे जीने की कला सीख रही है। कवि ने लिखा है-

‘‘तुमने हाथों से

अपना चेहरा क्यों ढ़क लिया

इससे आधा संसार ढ़क गया मेरा

जंगल आधे हो गए

सूची की रोशनी मद्धिम

भूख आधी, प्यास लुप्त

साँसे सिर्फ एक नाम से

ऊर्जा सिमटकर हो गई छोटी’’

‘चाबी’ कविता के माध्यम से कवि ने घर-गृहस्थी के लिए मिली चाबी का जिक्र किया है। वह कहता है कि यह चाबी मुझे मिली थी तब, जब हम दोनों ने लिये थे सात फेरे। यह चाबी अद्भुत है, बेमिशाल है, क्योंकि अकेले में हमने जब-जब खोलना चाहा है घर-गृहस्थी के द्वार को पर वह खुलता नहीं है। कवि ने लिखा है-

‘‘घर की चाबी का एक छोर

मैं पकड़े होता हूँ दूसरा तुम

दोनों मिलकर ही

गृहस्थी का द्वार खोलते हैं हमेशा

लिये थे सात फेरे जिसदिन

हाथ पकड़े हुए एक-दूसरे का

सचमुच उसी दिन

मिली थी यह चाबी अद्भुत!’’

‘मेरे पत्र’ कविता के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि मेरे पत्र तुम तक नहीं पहुँचेंगे, क्योंकि तुम्हारे चारों तरफ पहरे का जाल बिछा हुआ है। तुम तक पहुँचने के पहले ही इन्हें फाड़ दिया जाएगा, पर मैं पत्र तो लिखता ही रहूँगा। इस बार कागज पर नहीं, आकाश रूपी पन्ने पर लिखूँगा। तुमे आकाश में देखो..... वे तुम्हें मिल जाएँगे। वह भी चमचमाते हुए। तुम्हें भ्रमित होने की कोई गुंजायश नहीं रहने दूँगा। कवि ने लिखा है-

‘‘इसलिए उन्हें रात में

काले आसमान पर लिखता हूँ

ठीक से देखों तो पढ़ पाओ

ये सितारों के प्रकाश से चमक रहे हैं

चाँद के साथ-साथ चल रहे हैं

ये हमेशा जिंदा हैं अमर होकर’’

‘मेरे मार्ग को भी देखो’ कविता के माध्यम से कवि अपनी प्रेमिका से कहता है कि तुम अमीर घराने की हो, तो तुम्हारे देखने का नजरिया भी अलग होगा, पर कवि चाहता है कि  तुम आकर मिलो-हम अमरी-गरीबों की बातें नहीं करेंगे, बल्कि शुद्ध प्यार की बातें करेंगे। शुद्ध प्यार तुम्हारे पास नहीं होगा, वह तो हमारे पास है। मेरे पास कला है, संगीत और कविताएँ हैं, जो किसी धनवान के पास नहीं होती। कवि ने लिखा है-

‘‘आकर मिलो बातें करेंगे

अमीरी और तरक्की की नहीं

शुद्ध प्यार की

जो तुम्हारे पास नहीं, वह यहाँ है

कला है मेरे पास, संगीत है, कविताएँ हैं,

जो नहीं होती किसी धनिक के पास’’

‘उसकी यादें’ कविता के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि जो चीजें शुरू से मेरे संसर्ग में रही हैं, उसकी यादें उम्र के अंतिम पड़ाव में भी बनी हुई हैं। वह कहता है कि हम कभी मिलकर खोला करते थे, जिस कमरे में, वह कमरा जर्जर हो चुका है। वे बिछौने याद दिलाती हैं कि कोई न कोई था मेरे साथ, वर्षों तक। उम्र गुजरती गई, पर यादें ज्यों-की-त्यों मानस पटल पर बनी हुई हैं। यह जाने का नाम ही नहीं लेती हैं। कवि ने लिखा है-

‘‘चिन्ह् जिसके अब तक मिटे नहीं

उम्र गुजरती रही हर दिन

उसकी यादें और अधिक गहराई तक

अब भी मुझ पर कब्जा किए हुए’’

‘बंधन मेरा छोटा-सा’ कविता के माध्यम से कवि अपने सामथ्र्य की बात कहता है। वह अपनी प्रेमसी से कहता है कि तुम्हारे पहला प्रेमी जो था, वह बहुत बड़ा था। मैं तो छोट हूँ। मेरे पास तुम्हारे लिए बहुत कुछ नहीं है, लेकिन जो है, वह तुम्हारे पहले वाले प्रेमी से बहुत है, मजबूत है, जो कभी तुम्हें छोड़ेगा नहीं। अगर तुम मेरे पास आओगी, तो सिर्फ तुम ही रहोगी। तुम्हारे पहले वाले प्रेमी के पास कई प्रेमिकाएँ थी। यह सब मेरे साथ नहीं होगा। कवि ने लिखा है-

‘‘बस बंधन मेरा छोटा-सा

लेकिन है बहुत मजबूत,

जो केवल एक को ही बाँधता

नहीं लेता अनेक को

अपने आगोश में

तुम्हारे पुराने प्रेमी की तरह’’

पाता बहुत अधि हूँ, कविता में कवि को विश्वास है कि अंगूर और अंजीर के पाल तुम्हारे से ही पकते हैं, पर गिरते हैं तो मेरी झोली में ही। फिर से नए आते हैं, यही तो तुम्हारा प्रेम है, जो कभी खत्म होने का नाम ही नहीं लेता है। वे सदा मेरे ऊपर बरसते रहते हैं। पर्वत की ढ़लान की तरह प्रेम लुढ़ककर मेरे पास ही आ जाते हैं। वे कही इधर-उधर नहीं भटकते।

कवि ने लिखा है -

‘‘अंगूर और अंजीर के फल

उगते हैं तुम्हारे शरीर से

पकते हैं, गिरते हैं मेरी झोली में

फिर से नए आते हैं

यही प्यार देने का तरीका है तुम्हारा’’

‘कोई फर्क नहीं पड़ता’ कविता के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि तुम्हारे प्रेम के आगे सुख-दुख समान बने रहते हैं। सूर्य का उदय होना और अस्त होना, उसी प्रकार चंद्रमा का अस्त होना और उदय होना-सुख-दुख के दो पहलू हैं।

लेकिन कवि अपनी प्रेमिका से कहता है कि तुम्हारा प्रेम स्थायी है, सुख के क्षण कुछ कम भी हो जाए, तो कोई फर्क नहीं पड़ता वह यथावत बना रहता है। कवि ने लिखा है-

‘‘लेकिन हमारे प्रेम ने

बनाई है ऐसी जगह

जहाँ कोई फर्क नहीं पड़ता

सुख की दो चार बूँद सूख जाने से’’

‘उसे याद करते हुए’ नरेश अग्रवाल की छोटी-छोटी प्रेम कविताओं का संग्रह है। इसमें छोटी-छोटी कविताएँ संकलित है। ये कविताएँ दिल की गहराई को छूने में पूरी तरह समर्थ हैं। नरेश अग्रवाल कम से कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कहने में सक्षम हैं।

ये सूत्र-काव्य के लिए भी जाने जाते हैं। समकालीन कविता में नरेश अग्रवाल की महत्वपूर्ण भूमिका है। इस संग्रह की कविताएँ एक बार पढ़ना शुरू करेंगे तो बिना पूरा पढ़े, छोड़ने का मन नहीं करेगा। कवि को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ!

समीक्षक:निलोत्पल रमेश, ‘उसे याद करते हुए’ - कविता-संग्रह , कवि - नरेश अग्रवाल , प्रकाशक - भारतीय ज्ञानपीठ, नयी दिल्ली-110003

मूल्य-250/- रूपये, पृष्ठ-122, वर्ष-2022 .