अष्टलक्ष्मी के गौरव की पुनर्स्थापना : जी किशन रेड्डी
जब भी मैं पूर्वोत्तर क्षेत्र की यात्रा करता हूं, तो मैं अक्सर स्मृतियों में खो जाता हूं और पूरे भारत के साथी युवा मोर्चा कार्यकर्ताओं के साथ की गयी अपनी पिछली यात्राओं को याद करता हूं। उन दिनों, परिवहन व संचार संपर्क सुविधाओं की कमी, सुरक्षा के खतरे, बंद और चक्का जाम की असुविधा तथा अवसंरचना की कमी को नजरअंदाज करते हुए, हमने इन अवसरों का उपयोग, क्षेत्र के अपने भाइयों और बहनों के साथ बातचीत करने, उनकी संस्कृति का अनुभव करने और चुनौतियों व समाधानों पर चर्चा करने में किया।
हालाँकि, परिवर्तन शुरू करने के लिए हमारे अटूट उत्साह और अथक प्रयास को राजनीतिक उपेक्षा, घोर अन्याय और शेष भारत से स्पष्ट अलगाव के कारण कड़ी बाधाओं का सामना करना पड़ा। अफसोस की बात है कि पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्य, जो हमारे देश का अभिन्न अंग हैं, को अक्सर "सौतेली बहनें" कहा जाता था। हालाँकि, कुछ साल बाद, आज, जब मैं उन्हीं स्थानों की दोबारा यात्रा करता हूँ, तो मैं संतुष्टि और राहत की गहरी भावना से भर जाता हूँ। हमारे पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों को आखिरकार वह ध्यान और समर्थन मिल रहा है, जिनके वे हकदार हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों का संदर्भ "अष्टलक्ष्मी" के रूप दिया जाता है, जो अधिक उपयुक्त है। नौ साल पहले, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने स्पष्ट रूप से घोषणा की थी, "भारत तब तक प्रगति नहीं कर सकता, जब तक कि भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र विकसित नहीं होता।" उस दूरदर्शी विश्वास के साथ, भविष्य में निर्बाध विकास को सक्षम बनाने के लिए पिछले 9 वर्षों में किए गए रणनीतिक प्रयासों ने एक ठोस आधार तैयार किया है।
पिछले साढ़े 9 वर्षों में 5 लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च करने के साथ, भारत सरकार ने क्षेत्र के विकास के लिए बड़े पैमाने पर वित्तपोषण किया। 2014 और 2023 के बीच पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए 54 केंद्रीय मंत्रालयों के सकल बजट आवंटन में लगभग 233 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 6,600 करोड़ रुपये की नई मंजूर की गयी पीएम-डिवाइन योजना, पूर्वोत्तर क्षेत्र के लोगों के लिए आजीविका और विकास के अवसरों का सृजन करेगी। विवेकपूर्ण और लक्षित निवेश के साथ वित्तीय प्रोत्साहन से, सरकार को परिवहन व संचार संपर्क सुविधा तथा अवसंरचना निर्माण जैसी क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौतियों का समाधान करने में मदद मिली।
‘भूपेन हजारिका सेतु’ नदी पर बना भारत का सबसे लंबा पुल है , जो 2003 से लंबित था, का उद्घाटन मई 2017 में किया गया। इससे असम और अरुणाचल प्रदेश के बीच की यात्रा-अवधि 6 घंटे से कम होकर 01 घंटे की रह गयी है। 25 दिसंबर, 2018 को भारत के सबसे लंबे रेल पुल बोगीबील का उद्घाटन किया गया, जिससे दिल्ली और डिब्रूगढ़ के बीच यात्रा-अवधि में 3 घंटे की कमी आयी है। दिलचस्प बात यह है कि पुल का काम 2002 में भारत रत्न अटल जी के नेतृत्व में शुरू हुआ था, लेकिन 2004 में यूपीए के सत्ता में आने के बाद यह काम बाधित हो गया। काम में तेजी 2014 में आई, जब प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने बागडोर संभाली।
इसी तरह, 2014 से पहले केवल गुवाहाटी रेल-मार्ग से ही जुड़ा था, लेकिन आज राजधानी परिवहन संपर्क परियोजना के तहत अरुणाचल, त्रिपुरा और मणिपुर भी जुड़ गए हैं और बाकी 5 राज्यों को जोड़ने का काम भी जल्द पूरा हो जाएगा। उहम अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करके स्थलाकृतियों से जुड़ी बाधाओं को दूर कर रहे हैं। हमने पूर्वोत्तर में जिरीबाम-इम्फाल रेल लाइन पर दुनिया के सबसे ऊंचे तटबंध पुल का निर्माण करके विश्व रिकॉर्ड बनाया है।
इसके अलावा, पर्यटन और आर्थिक क्षमता को व्यापक प्रोत्साहन देते हुए, पिछले 9 वर्षों में हवाई संपर्क सुविधा में कई गुनी वृद्धि हुई है। 2014 में केवल 9 हवाई-अड्डे थे, आज हमारे पास 17 हवाई-अड्डे हैं। अरुणाचल प्रदेश का पहला ग्रीनफील्ड हवाई अड्डा, डोनी पोलो हवाई अड्डा या अगरतला में महाराजा बीर बिक्रम (एमबीबी) हवाई अड्डे का अत्याधुनिक एकीकृत टर्मिनल, जिसका उद्घाटन 2022 में प्रधानमंत्री द्वारा किया गया था, हवाई संपर्क सुविधा में तेजी से हुई प्रगति के उज्ज्वल उदाहरण हैं।
पिछली सरकारें लंबे समय से यह तर्क देतीं रहीं कि भूमि से घिरे पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास में कमी अपरिहार्य है। इस बात को चुनौती देते हुए नरेन्द्र मोदी सरकार क्षेत्र की जलमार्ग क्षमता का उपयोग करने के लिए काम कर रही है। 2014 से पहले केवल 01 राष्ट्रीय जलमार्ग था और अब पूर्वोत्तर क्षेत्र में 20 राष्ट्रीय जलमार्ग हैं, जो ब्रह्मपुत्र और बराक नदियों की विशाल नौवहन क्षमता को रेखांकित करते हैं।
दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ घनिष्ठ आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों का निर्माण करते हुए तथा क्षेत्र में आवश्यक परिवहन संपर्क सुविधा को बढ़ावा देकर, पूर्वोत्तर क्षेत्र को एक्ट ईस्ट नीति के केंद्र बिंदु के रूप में विकसित किया जा रहा है। म्यांमार के साथ 2,904 करोड़ रुपये की कलादान मल्टीमॉडल परियोजना, बांग्लादेश के साथ 1,100 करोड़ रुपये की अगरतला-अखौरा रेलवे परियोजना, 1,548 करोड़ रुपये की भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग परियोजना आदि ऐसी प्रमुख परियोजनाएं हैं, जो पूर्वोत्तर क्षेत्र को भारत के 'पड़ोसी पहले' और 'एक्ट ईस्ट’ नीतियों के केंद्र में रखती हैं। 1972 के बाद पहली बार 2015 में अंतर्देशीय जल पारगमन और व्यापार पर भारत बांग्लादेश प्रोटोकॉल का नवीनीकरण और बांग्लादेश के चटग्राम व मोंगला बंदरगाहों के उपयोग तक पहुंच; ‘एक्ट ईस्ट’ नीति की महत्वपूर्ण उपलब्धियां रही हैं।
क्षेत्र में शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास किए गए हैं। 2014 से 2022 के बीच उग्रवाद में 76 प्रतिशत की गिरावट आई है। सुरक्षा बलों और नागरिकों की मौत की संख्या में क्रमशः 90 प्रतिशत और 97 प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी है। 8,000 से अधिक उग्रवादियों ने आत्मसमर्पण किया है। “अफस्पा” के परिधि क्षेत्र में 75 प्रतिशत की कमी आयी है। स्थायी समाधान की दिशा में आगे बढ़ते हुए विद्रोही समूहों के साथ कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए हैं और मुख्यधारा के साथ उनके पुन: एकीकरण में मदद के लिए पुनर्वास पैकेज प्रदान किए गए हैं।
पूर्वोत्तर क्षेत्र में विकास और शांति को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए, प्रधानमंत्री ने पिछले साढ़े 9 वर्षों स्वयं 60 से अधिक बार पूर्वोत्तर क्षेत्र की यात्राएं की हैं और क्षेत्र में विकास करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प को दोहराया है।
अपने मूल में प्रतिबद्धता, सुदृढ़ता और सशक्तिकरण को रखते हुए, पूर्वोत्तर क्षेत्र अब अमृत काल की दहलीज पर खड़ा है। पिछले 9 वर्ष निर्णायक रहे हैं; अगले 25 वर्ष, पूर्वोत्तर भारत कहे जाने वाले ‘धरती के स्वर्ग’ के जादू को दुनिया के सामने लायेंगे। (PIB)
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