जयशंकर प्रसाद आधुनिक हिन्दी साहित्य के शिखर हैं : डॉ0 हरिशंकर मिश्र
लखनऊ: / उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा जयशंकर प्रसाद स्मृति समारोह के शुभ अवसर पर आज 24 जनवरी, 2025 को एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन हिन्दी भवन के निराला सभागार लखनऊ में किया गया। इस अवसर पर डॉ0 रामकृष्णने कहा-जयशंकर प्रसाद जी ने पूरे भारतीय इतिहास को अपने नाटकों के माध्यम से समाज को परिचित कराया। धु्रवस्वामिनी, चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, अजातशत्रु जैसे नाटकों में ऐतिहासिक तत्व परिलक्षितहोते हैं। उन्होंने काव्य की अमर कृतियों को रचा। उनकी रचना ’कामायनी’ में मानवीय संवेदनाओं की झलक दिखायी पड़ती है। प्रसाद जी पौराणिकता व आधुनिकता का सामंजस्य स्थापित करते हुए अपनी लेखनी चलाते हैं। उनकी काव्य रचना’ कामायनी’ धीरे-धीरे उदात्त की ओर अग्रसर होती है। प्रसाद जी के काव्यों में छायावादी तत्व विद्यमान हैं। प्रसाद जी का मानना था कि जीवन में सुख और दुःख दोनो हैं। जीवन का सत्य केवल तपस्या नहीं है। वे ’कामायनी’ में ’मनु’ के माध्यम से मानव संस्कृति का संदेश देते हैं। वे नवजागरण व संस्कृति के संवाहक हैं। प्रसाद जी नारी के सर्वोत्तम गुणों की खोज करते हुए दिखाई पड़ते हैं। उनके काव्य में माया, ममता, दया के तत्वों की प्रधानता है। प्रसाद की ’कामायनी’ रचना भारतीय संस्कृति की संवाहक है। प्रसाद राष्ट्रीय चेतना के प्रतीक हैं।
अपने सम्बोधन में डॉ0 हरिशंकर मिश्र ने कहा-जयशंकर प्रसाद आधुनिक हिन्दी साहित्य के शिखर हैं। प्रसाद जी ने साहित्य के उच्च मानदंडों को स्थापित किया। प्रसाद जी का जीवन काफी संघर्षमय रहा है। प्रसाद काफी अध्ययनशील थे। प्रसाद में कवि की प्रतिभा जन्म से थी। प्रसाद जी को ब्रजभाषा से प्रेरणा मिली। प्रसाद ने अपनी ब्रजभाषा की रचनाओं को खड़ी बोली में भी अनुवाद किया। प्रसाद हिन्दी सेवी प्रकृति के थे। प्रसाद जी भारतीय संस्कृति के संवाहक थे। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी था। प्रसाद मूलतः कवि के रुप में हमारे सामने आते हैं। वे कहानीकार, नाटककार, उपन्यासकार थे। उनका लेखन मर्यादित था। उनका समय जागरण व सुधारकाल का था। लेकिन प्रसाद ने साहित्य में स्थूल से सूक्ष्म की ओर ले जाने की चेतना जागृत की। ’कामायनी’ प्रसाद का प्रमुख महाकाव्य है। कामायनी में भाव व मनोविकार के तत्व विद्यमान हैं। ’मनु’ पात्र उनके प्रतीक हैं। प्रसाद का अध्ययन व चिंतन काफी गहरा था। प्रसाद का दार्शनिक पक्ष काफी गम्भीर था। उनका मानना था कि श्रद्धा व विश्वास एक दूसरे के पूरक हैं। वे रूढ़ियों के पक्षधर नहीं थे। प्रसाद प्रेम व सौन्दर्य के कवि हैं। प्रसाद का साहित्यिक योगदान विशालकाय है। निदेशक ने कहा-जयंशकर प्रसाद जी हिन्दी काव्य में प्रेम, सौन्दर्य, करुणा, वेदना और मानवता के संवाहक हैं। प्रसाद एक बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न हिन्दी कवि, उपन्यासकार, नाटककार, कहानीकार के रूप में हिन्दी साहित्य जगत में प्रसिद्ध हैं। उनके हृदय में सौन्दर्य मस्तिष्क में प्रश्नों का अम्बार और वाणी में सूक्ष्म अभिव्यंजना की क्षमता है। उनका काव्य प्रेम, सौन्दर्य, जागरण, मानवतावाद और जीवन मूल्यों की प्रतिष्ठा का काव्य है। वे प्रकृति की कमनीय छवियों को उद्धृत करने में सक्षम हैं। उनमें भावुकता और विचारों का समन्वय है। प्रसाद ने ’चित्राधार’, ’प्रेम पथिक’, ’करुणालय’, ’महाराणा का महत्व’, ’कानन-कुसुम’, ’झरना’, ’आँसू’, ’लहर’ और ’कामायनी’ जैसी कालजयी रचनाऐं रचित की व छायावाद के आधार स्तम्भों में अमिट छाप छोड़कर अमर हो गये।डॉ0 अमिता दुबे, प्रधान सम्पादक, उ0प्र0 हिन्दी संस्थानद्वारा कार्यक्रम का संचालन एवं संगोष्ठी में उपस्थित समस्त साहित्यकारों, विद्वत्तजनों एवं मीडिया कर्मियों का आभार व्यक्त किया गया।