29 दिसंबर 1926 को हुआ था लखनऊ रेलवे स्टेशन भवन का उद्घाटन
![]() |
| सौ साल का लखनऊ का चारबाग रेलवे स्टेशन |
विमलेश चंद्र / वडोदरा, गुजरात
भारतीय रेल में विरासत को विशेष तौर पर संरक्षित किया जाता रहा है। चाहे वह स्टेशन भवन हो, रोलिंग स्टॉक हो, रेलवे का कोई संरचना हो या और कुछ। भारतीय रेल में वर्तमान समय में मार्च 2025 की सूची के अनुसार रेलवे से जुड़े कुल 94 विरासत भवन हैं,जिसमें मंडल कार्यालय भवन, क्षेत्रीय रेलवे कार्यालय भवन या अन्य कार्यालय भवन शामिल हैं। इन सभी 94 भवन को विरासत का दर्जा दिया गया है। इसी तरह कुल 81 रेलवे स्टेशन भवन को भी विरासत भवन का दर्जा दिया गया है। ठीक इसी तरह से रेलवे में कुल ऐसे 40 रेलवे पुल और सुरंग हैं, जिन्हें विरासत का दर्जा दिया गया है। कुल 326 रोलिंग स्टॉक (कोच, वैगन, क्रेन) को विरासत का दर्जा दिया गया है। इसके अतिरिक्त कुल 156 डीजल और बिजली इंजन को भी विरासत का दर्जा दिया गया है। भारतीय रेल में कुल 293 भाप इंजनों को भी विरासत के तौर पर रखा गया हैं।
1-लखनऊ रेलवे स्टेशन के इतिहास की जानकारी-यह ध्यान रखने वाली बात है कि पूर्वोत्तर रेलवे के लखनऊ स्टेशन को, लखनऊ जंक्शन स्टेशन कहते हैं जबकि उत्तर रेलवे के लखनऊ स्टेशन को केवल लखनऊ या फिर चारबाग लखनऊ कहते हैं।यह दोनों रेलवे स्टेशन, लखनऊ शहर के दो प्रमुख रेलवे स्टेशन है। चारबाग लखनऊ स्टेशन से लखनऊ–मुरादाबाद लाइन, लखनऊ-गोरखपुर लाइन, वाराणसी-अयोध्या-चारबाग लखनऊ लाइन, वाराणसी-रायबरेली-चारबाग लखनऊ लाइन, वाराणसी-सुलतानपुर-चारबाग लाइन शामिल हैं। चारबाग लखनऊ रेलवे स्टेशन पर हर दिन 280 से ज्यादा ट्रेनें आती जाती हैं और ढाई लाख से ज्यादा यात्रियों का आवागमन होता है। यहां लखनऊ रेलवे स्टेशन कुल 9 प्लेटफार्म हैं।
लखनऊ रेलवे स्टेशन और इससे जुडी रेलवे लाईन का निर्माण, अवध और रोहिल खंड रेलवे ने किया था। अवध और रोहिलखंड रेलवे कंपनी का गठन, गारंटी रेलवे कंपनी के अंतर्गत वर्ष 1867 में किया गया था और इसने अपना मुख्यालय लखनऊ के हजरतगंज में बनाया था। इसने बहुत सारी रेल लाइन बनाई और साथ ही साथ कानपुर का गंगा नदी पर बना रेल पुल, वाराणसी में बना रेल पुल, राजघाट में बना रेल पुल, गजरौला में बना रेल पुल और इलाहाबाद में बना रेल पुल इसके प्रमुख पुल में शामिल थे। अवध और रोहिलखंड रेलवे, उत्तर भारत में एक लंबी नेटवर्क वाली रेलवे थी, जो मुख्य रूप से गंगा के उत्तर में बनारस (वाराणसी) से शुरू होकर दिल्ली तक फैली हुई थी। 01 जनवरी 1889 को भारत सरकार ने अवध और रोहिलखंड रेलवे को अपने अधीन कर लिया और इसे राज्य रेलवे बना दिया। इसके बाद अवध और रोहिलखंड रेलवे को 01 जुलाई 1925 को ईस्ट इंडियन रेलवे में मिला दिया गया था।
23 अप्रैल 1867 को लखनऊ-कानपुर 47 मील लंबी रेल लाइन शुरू हुई थी
01 जनवरी 1872 को खोला गया था लखनऊ-बाराबंकी-फैजाबाद रेलवे लाइन
लखनऊ जंक्शन से पहली रेल की शुरुआत, लखनऊ से सीतापुर के बीच 15 नवंबर 1886 को
लखनऊ को कोलकाता से 13 अक्टूबर 1893 को जोड़ा गया
लखनऊ , कोलकाता से लाहौर रेल रूट का एक प्रमुख रेलवे स्टेशन था
26 दिसंबर 1916 को पं. जवाहर लाल नेहरू और महात्मा गांधी की इस स्टेशन पर हुई थी मुलाकात
इसके द्वारा पहली रेलगाड़ी 23 अप्रैल 1867 को लखनऊ-कानपुर 47 मील लंबी रेल लाइन शुरू हुई थी। कानपुर और लखनऊ के बीच रेलवे लाइन की शुरुआत के बाद लखनऊ-बाराबंकी-फैजाबाद रेलवे लाइन को 01 जनवरी 1872 को खोला गया था और इसी समय लखनऊ-बरेली-सहारनपुर रेल लाइन को भी खोला गया था। वर्ष 1873 से 1875 तक इसका नेटवर्क लखनऊ से शाहजहांपुर और दूसरी तरफ जौनपुर तक बढ़ाया गया। अप्रैल 1867 में जब लखनऊ से कानपुर के लिए पहली रेल लाइन बनाई गई थी, उस समय लखनऊ, अवध और रोहिलखंड रेलवे का मुख्यालय हुआ करता था। फिर इस रेलवे का नया और काफी बड़ा मुख्यालय भवन का निर्माण वर्ष 1888 में किया गया, जो वर्तमान में लखनऊ मण्डल का मण्डल कार्यालय भवन है। वर्ष 1857 में स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान ब्रिटिश शासकों को मिलिट्री ले जाने, ले आने के लिए लखनऊ में रेल लाइन बनाने का जरूरत महसूस हुई थी और फिर यहां रेल लाइन बनाने की स्वीकृति दी गई थी।यह स्टेशन भवन मिलिट्री कैंट से जुड़ा हुआ था। लखनऊ को कोलकाता से 13 अक्टूबर 1893 को जोड़ा गया था। वर्ष 1925 में कोलकाता और लाहौर के बीच की रेलवे लाइन, ईस्ट इंडियन रेलवे का एक हिस्सा थे और इस रेल लाइन को कानपुर और लखनऊ से बढ़ते हुए मुगलसराय तक बढ़ाया गया था। उस समय अवध और रोहिलखंड रेलवे बहुत जल्दी ही एक प्रसिद्ध रेल कंपनी के रूप में स्थापित हो गई और कंपनी ने बहुत सारे जगहों पर अपना रेल नेटवर्क बढ़ा दिया। इस रेलवे का मेंन रूट मुगलसराय से सहारनपुर होते हुए था और साथ ही कई ब्रांच लाइन भी बनाई जिसमें अलीगढ़ से चंदौसी, रोजा से सीतापुर, लक्सर से हरिद्वार और इलाहाबाद से फैजाबाद तक शामिल थे। ईस्ट इंडिया रेलवे के साथ, अवध और रोहिलखंड रेलवे का पैसेंजर इंटरचेंज पॉइंट वाले रेलवे स्टेशन में कानपुर, अलीगढ़, इलाहाबाद, गाजियाबाद और मुगलसराय स्टेशन शामिल थे जबकि उस समय की रेल कम्पनी नार्थ वेस्टर्न रेलवे में सहारनपुर को इसका पैसेंजर इंटरचेंज पॉइंट रखा गया था। उस समय लखनऊ स्टेशन, कोलकाता से लाहौर रेल रूट का एक प्रमुख रेलवे स्टेशन था और उसके आगे नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर रेलवे के लिए भी लखनऊ एक महत्वपूर्ण स्टेशन था। उस समय बनाये गये कैरेज एवं वैगन कारखाना और इंजन कारखाना आज भी सफलता पूर्वक संचालित हैं। लखनऊ का यह स्टेशन, स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े कई घटनाओं का साक्षी रहा है जिसमें 26 दिसंबर 1916 को देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू और महात्मा गांधी की इस स्टेशन पर मुलाकात भी शामिल है।
2-वर्तमान में चारबाग स्टेशन का विकास कार्य-वर्तमान में री-डेवलपमेंट के तौर पर इस स्टेशन को एयर पोर्ट की तरह बनाया जा रहा है। इसके लिए सेकंड एंट्री बनायीं जा रही है। जिस पर 1,28,605 वर्ग मीटर में छह मंजिला भवन तैयार हो रही है। इसमें आरक्षण काउंटर, वेटिंग हॉल, कैफेटेरिया, रिटायरिंग रूम समेत कई सुविधाएं उपलब्ध होंगी। व्यवसायिक गतिविधियों के लिए मॉल भी बन रहा है। इस परियोजना में स्काईवाक से जुड़ेंगे चारबाग और लखनऊ जंक्शन स्काईवाक से जुड़ेंगे। कॉनकोर्स बन रहा है। कुल 12 एस्केलेटर और लिफ्ट बनाया जा रहा है। मल्टी स्टोरी पार्किंग भी बनेगी। चारबाग स्टेशन तक पहुंचने के लिए दिसंबर 2025 से ऐसे हजारों यात्रियों को बड़ी राहत मिलने लगेगी क्योंकि दिसंबर में चारबाग की सेकेंड एंट्री गेट खोल दी जाएगी। सेकेंड एंट्री गेट यात्री लोग वे सीधे स्टेशन के अंदर पहुंच जाएंगे। चारबाग रेलवे स्टेशन पर अभी तक एक ही रूट से यात्री आते जाते हैं, जिससे अक्सर रेलवे स्टेशन के आसपास ट्रैफिक जाम की समस्या खड़ी हो जाती है। यात्रियों की सुविधा के लिए चारबाग रेलवे स्टेशन से मेट्रो स्टेशन तक स्काईवॉक भी तैयार किया जा रहा है। स्काईवॉक से मेट्रो स्टेशन, लखनऊ जंक्शन और चारबाग लखनऊ एक साथ जुड़ जाएंगे। चारबाग रेलवे स्टेशन की पूरी परियोजना को तकरीबन 500 करोड़ रुपए की लागत से विकसित किया जा रहा है।
3-चारबाग (लखनऊ) रेलवे स्टेशन भवन का गौरवपूर्ण 100 वर्ष-उत्तररेलवे का लखनऊ मंडल का लखनऊ रेलवे स्टेशन, जिसे सामान्यतया चारबाग रेलवे स्टेशन कहा जाता है। इसे चारबाग इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह रेलवे स्टेशन चारबाग एरिया या लोकेशन में स्थित है। मुगल शासन काल में यहाँ चार बगीचे बनवाए गए थे, जिसके कारण इस लोकेशन को चारबाग कहते हैं। अभी 01 अगस्त 2025 को चारबाग रेलवे स्टेशन भवन के फाउंडेशनके निर्माण का 100 वर्ष पूरा हुआ है। मतलब उस समय यदि किसी भवन का फाउंडेशन सफलता पूर्वक बन गया तो उसका भी स्मारक बोर्ड (स्टोन) लगाकर समारोह आयोजित किया जाता था। वैसे इस भवन का निर्माण कार्य दिसम्बर 1926 में पूरा हुआ और 29 दिसंबर 2026 को इस उद्घाटन किया गया था। इस तरह से इसका फाउंडेशन निर्माण का 100 साल अभी 01 अगस्त 2025 पूरा हो गया है। इससे जुड़ा एक फोटो इस लेख के साथ प्रकाशित है, जिसमें इस भवन के फाउंडेशन के निर्माण से जुड़े लोगों की जानकारी दी हुई है। यह स्टोन बोर्ड, इस भवन के मीनार में जमींन से लगभग दो तीन मीटर की ऊँचाई पर लगा हुआ है। चूंकि इस रेलवे स्टेशन भवन का उद्घाटन 29 दिसंबर 1926 को हुआ था, तो उस हिसाब से 28 दिसंबर 2025 को यह स्टेशन भवन अपना 99 वर्ष पूरा कर लेगा और 29 दिसंबर 2025 से अपने 100 वें गौरवपूर्ण वर्ष में मतलब शताब्दी वर्ष में प्रवेश कर लेगा और फिर ठीक एक वर्ष बाद 28 दिसंबर 2026 को इसका 100 वर्ष पूरा हो जाएगा। उस हिसाब से अब चारबाग लखनऊ रेलवे स्टेशन का स्टेशन भवन का समारोह शताब्दी समारोह आयोजित किया जाएगा। यह ध्यान रखने वाली बात है कि पूर्वोत्तर रेलवे के लखनऊ स्टेशन को, लखनऊ जंक्शन स्टेशन कहते हैं जबकि उत्तर रेलवे के लखनऊ स्टेशन को केवल लखनऊ कहते हैं। इस स्टेशन भवन से जुड़े रोचक जानकारी इस प्रकार है।
4-चारबाग (लखनऊ) रेलवे स्टेशन भवन के निर्माण की जानकारी-चारबाग (लखनऊ) रेलवे स्टेशन भवन का निर्माण, उस समय करीब 70 लाख रुपये की लागत से तैयार हुआ था। लखनऊ स्टेशन भवन राजस्थानी, अवधी,मुगल और ब्रिटिश स्थापत्य वास्तु शैली का अनूठा उदाहरण है। इस रेलवे स्टेशन भवन की छतें, मेहराबें और गुंबद किसी शाही महल जैसी सुन्दरता और भव्यता जैसा आभास कराती हैं। जिस स्थान पर आज लखनऊ स्टेशन है,उस चारबाग का उपयोग सन 1857 में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने शस्त्रागार के रूप में किया था। बाद में अंग्रेजों ने इसी स्थान पर रेलवे स्टेशन बनाने का निर्णय लिया। ब्रिटिश वास्तुकार जे.एच. हार्निमन और भारतीय वास्तुकार इंजीनियर चौबे मुक्ता प्रसाद ने लखनऊ स्टेशन की भव्य भवन की डिजाइन तैयार की थी। बिशप जार्ज हरवर्ट ने 21 मार्च 1914 को इस स्टेशन भवन के पहला चरण की नींव रखी थी। स्टेशन का पहला चरण जहां आज रेल डाक सेवा है, वह वर्ष 1923 में पूरा हुआ और दूसरा व अंतिम चरण वर्ष 1925 में पूरा हुआ था। एक अगस्त 1925 को ईस्ट इंडिया रेलवे के जी.एल. काल्विन ने प्रथम श्रेणी पोर्टिको के पास एक संदूक को गाड़ा था। इस संदूक में उस समय में प्रचलित सिक्का और उस दिन का अखबार रखा गया था।
उत्तर भारत का प्रमुख लखनऊ का यह चारबाग रेलवे स्टेशन, भारतीय रेल की शान, स्थापत्य सौंदर्य का प्रतीक और लखनऊ की सांस्कृतिक पहचान है।चारबाग रेलवे स्टेशन की भवन को देखकर पहली नज़र में देखने पर यह कोई रेलवे स्टेशन नहीं बल्कि इसकी विशाल और खूबसूरत संरचना किसी राजमहल जैसा लगती है। मुगल, राजस्थानी, ब्रिटिश और अवधी स्थापत्य शैली का सम्मिलित प्रभाव इसकी हर ईंट में महसूस होता है। लाल और सफेद पत्थरों से बनी इसकी मेहराबें, मीनारें और छतरियां स्थापत्य कला का शानदार उदाहरण प्रस्तुत करती हैं। इसकी विशेष बात यह है कि इसकी वास्तुकला इस तरह से तैयार की गई थी कि स्टेशन के अंदर और बाहर की आवाजें एक-दूसरे को सुनाई नहीं देती हैं।
चारबाग रेलवे स्टेशन का निर्माण को तीन भागों में बाँट सकते हैं। लखनऊ में जब वर्ष 1867 में रेल लाईन आई, तब इसके रेलगाड़ियों का संचालन, वर्तमान स्टेशन भवन से काफी दूर आम के एक बड़े बगीचे में बने अस्थायी भवन से शुरू किया गया था। स्वाभाविक रूप से वर्ष 1867 में जब लखनऊ में पहली रेल लाईन आई, तब तुरंत का तुरंत बहुत ज्यादा लागत वाला कोई बड़ा स्टेशन बनाया नहीं जा सकता था, इसलिए इस अस्थायी भवन से रेलगाड़ी संचालन का शुरूआत किया गया था। फिर चारबाग रेलवे स्टेशन पर एक छोटा रेलवे स्टेशन भवन बनाया गया, जिसकी नींव वर्ष 1914 में बिशप जॉर्ज हरवर्ट ने रखी और यह वर्ष 1923 में बनकर तैयार हुआ। वर्ष 1923 में बनाया गया स्टेशन भवन अब पार्सल घर के तौर पर उपयोग हो रही है। इसके साथ ही साथ तीसरा और वर्तमान मुख्य स्टेशन भवन का भी निर्माण कार्य शुरू करवाया गया था और जिसकी नींव के निर्माण का कार्य 01 अगस्त 1925 को पूरा हुआ था। अब इसी मुख्य स्टेशन भवन का शताब्दी वर्ष शुरू होने जा रहा है।
यहां दीवार पर लगे संगमरमर के बोर्ड पर ईस्ट इंडियन रेलवे के जीएल कॉल्विन, तत्कालीन एग्जीक्यूटिव इंजीनियर आर. ई. मैरियट, कॉन्ट्रैक्टर जे. सी. बनर्जी और ऑर्किटेक्ट जे. एच. हॉर्निमैन का नाम लिखा हुआ है।इस बड़े और खूब सूरत स्टेशन भवन का निर्माण कार्य दिसंबर 1926 में पूरा हुआ और 19 दिसंबर 1926 को इस स्टेशन भवन का उद्घाटन तत्कालीन यूनाइटेड प्रोविंस (वर्तमान में उत्तर प्रदेश) के गवर्नर द्वारा किया गया था। तत्कालीन मुंबई वीटी स्टेशन भवन (वर्तमान में छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनल) के बाद चारबाग लखनऊ के इस स्टेशन भवन को ब्रिटिश समय का सबसे अच्छा स्टेशन भवन माना जाता था। यह लखनऊ शहर की दक्षिण में स्थित इस स्टेशन के भवन के सामने बना हुआ विशाल गार्डन या बगीचा इस स्टेशन की सुंदरता को काफी बढ़ा देता है। चारबाग रेलवे स्टेशन भवन की छत पर बड़ी बड़ी पानी की 6 टंकियां बनी हुई हैं। लखनऊ की तरह कानपुर को भी इस शहर के भवन के अनुसार ही इस डिजाइन में आर्किटेक्चर में बनाया गया था। उस समय लखनऊ एक बहुत बड़ा शहर था और तत्कालीन यूनाईटेड प्रोविन्स (वर्तमान में उत्तर प्रदेश) की राजधानी भी थी, तो उस हिसाब से यहां पर एक बहुत बड़े स्टेशन के निर्माण का विकल्प तलाशा गया था। इस स्टेशन को बनाने का प्लानिंग, योजना और इसे पूरा करने का कार्य अवध और रोहिलखंड रेलवे ने किया था लेकिन जब यह रेलवे स्टेशन बनकर तैयार हो गया तो इस स्टेशन को 01 जुलाई 1925 को ईस्ट इंडियन रेलवे को दे दिया गया था। उस समय इस स्टेशन भवन के यात्री सुविधाओं से जुड़े वेटिंग रूम को बहुत बेहतरीन तरीके से बनाया गया था और फर्श पर अच्छे क्वालिटी के टाइल्स लगाए गए थे। इसके प्रवेश द्वार और प्रवेश हाल को भी काफी बड़ा और बहुत बेहतर तरीके से बनाया गया था और यात्री सुविधाओं को भी नियमित रूप से अपग्रेड किया जाता था और रेलगाड़िया की सूचना के लिए बहुत तरह के आधुनिक सूचना प्रणाली स्थापित की गई थी। इसके यार्ड का री-मॉडलिंग भी बहुत अच्छे तरीके से किया गया था, जिससे की बहुत सारी रेल गाड़ियों का एक साथ मेंटेनेंस हो सके। 5-लखनऊ के दोनों स्टेशन 100 मीटर से कम दूरी होने पर भी दोनों के औसत ऊंचाई में 2.8 मीटर का अंतर-साबरमती नाम के दो रेलवे स्टेशन हैं लेकिन 300 मीटर दूर होते हुए भी दोनों स्टेशन की ऊँचाई (MSL) एक समान है। वहीं लखनऊ के दोनों स्टेशन मतलब उत्तर रेलवे का लखनऊ चारबाग स्टेशन और पूर्वोत्तर रेलवे का लखनऊ जंक्शन के बीच 100 मीटर से भी कम दूरी होने पर भी दोनों स्टेशन की ऊँचाई में 2.8 मीटर का अंतर है। लखनऊ जंक्शन का ऊँचाई 120.714 मीटर है और लखनऊ चारबाग स्टेशन का ऊँचाई 123.50 मीटर है। इसका कारण यह है कि चारबाग रेलवे स्टेशन और रेल लाईन को मिट्टी और पथ्थर इत्यादि से पाट कर ज्यादा ऊंचाई पर बनाया गया था, जबकि लखनऊ जंक्शन को समतल जमीन पर ही बना दिया गया था।
चारबाग लखनऊ से 23 अप्रैल 1867 को पहली रेल गाड़ी शुरू हुई थी जबकि पूर्वोत्तर रेलवे के लखनऊ जंक्शनस्टेशन पर पहली रेल लाइन का शुरुआत, लखनऊ से सीतापुर के बीच 15 नवंबर 1886 को रोहिल कुंड एण्ड कुमाऊं रेलवे के अंतर्गत लखनऊ-बरेली रेलवे द्वारा मीटर गेज रेलगाड़ी चलाकर लखनऊ मीटर गेज स्टेशन शुरू किया गया था, जबकि यहां लखनऊ जंक्शन से गोरखपुर की तरफ की रेल लाइन, बाराबंकी-मल्हार-डालीगंज मीटर रेल लाइन सेक्शन की शुरुआत 24 नवंबर 1896 को किया गया था, जबकि डालीगंज से लखनऊ मीटर गेज रेलवे स्टेशन तक, मीटर रेल लाईन लखनऊ-बरेली रेलवे द्वारा पहले ही बनाया जा चुका था। लखनऊ जंक्शन से जुड़ा मल्हार-डालीगंज-लखनऊ सेक्शन का गेज परिवर्तन 1 जनवरी 1984 को किया गया था।
विमलेश चन्द्र, मकान संख्या-32, शिवाय बंगलोज कालोनी, पोस्ट-बाजवा, शहर-वडोदरा, गुजरात-391310,

%20%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A5%87%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%A8%20%E0%A4%AD%E0%A4%B5%E0%A4%A8%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%B6%E0%A4%A8%E0%A5%80%20%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82%20%E0%A4%A6%E0%A5%83%E0%A4%B6%E0%A5%8D%E0%A4%AF.jpeg)

%20%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A5%87%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%A8%20%E0%A4%AD%E0%A4%B5%E0%A4%A8%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%20%E0%A4%B2%E0%A4%97%E0%A4%BE%20%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A1%20%E0%A4%94%E0%A4%B0%20%E0%A4%AD%E0%A4%B5%E0%A4%A8%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%AE%E0%A5%80%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0.jpg)
%20%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A5%87%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%A8%20%E0%A4%AD%E0%A4%B5%E0%A4%A8%20%E0%A4%AA%E0%A4%B0%20%E0%A4%B2%E0%A4%97%E0%A4%BE%20%E0%A4%AC%E0%A5%8B%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A1.jpg)
%20%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%B5%E0%A5%87%20%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%87%E0%A4%B6%E0%A4%A8%20%E0%A4%AD%E0%A4%B5%E0%A4%A8.jpeg)


0 टिप्पणियाँ