अयोध्या का अनियंत्रित विकास, नष्ट कर रहा है सरयू नदी की जीवंतता को...
ओम प्रकाश सिंह / अयोध्या से
अयोध्या में पर्यटन के त्वरित विस्तार और शहरी विकास ने सरयू नदी के पारिस्थितिक तंत्र पर गंभीर दबाव डाला है। समस्या केवल प्रदूषण के आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विकास-पर्यावरण असंतुलन का एक संरचनात्मक प्रतीक बन रहा है।अयोध्या के निकट गंगेय डॉलफिन की भी अच्छी संख्या सरयू में है लेकिन नया घाट के पास नदी में बढ़ती मोटर बोट उन्हें अयोध्या के पास आने नहीं देती हैं जो उनके प्राकृतिक प्रवास और नदी में उनके विस्तार को रोकता है।
अयोध्या का मांझा क्षेत्र अपने आप में बहुत ही समृद्ध वेटलैंड रहा है, विशेषकर मांझा जमथरा। सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी बार बार नदी के बाढ़ क्षेत्र को संरक्षित करने और उनके किसी तरह के निर्माण को रोकने का आदेश देता है और गंगा व उसकी सभी सहायक नदियों के बाढ़ क्षेत्र के निर्धारण का कार्य प्रगति पर है, जबकि अयोध्या में संवेदनशील जैवतंत्र वाले मांझा क्षेत्र में ही निर्माण बढ़ रहा है। साथ ही नदी के दूसरी ओर सरयू और टेढ़ी नदी के बांंध क्षेत्र में अंधाधुंध निर्माण भी चिंता का विषय है। गोण्डा प्रशासन एनजीटी के आदेश पर टेढ़ी नदी के बाढ़ क्षेत्र का निर्धारण कर रहा है। गोण्डा शहर के निकट टेढ़ी नदी के बाढ़ क्षेत्र में हो रहे निर्माण पर एनजीटी ने रोक लगाया है जबकि अयोध्या के पास टेढ़ी नदी के बाढ़ क्षेत्र में ही निर्माण हो रहा है। अयोध्या के कछार में एनजीटी के निर्देशों के बावजूद हेलीपैड बना दिया गया है गजब यह है कि इस निर्माण की जिम्मेदारी कोई भी सरकारी विभाग लेने को तैयार नहीं है।
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| डालफिन का प्रतीकात्मक चित्र |
अपर्याप्त सीवेज प्रबंधन बड़ा मुद्दा है। 26.94 एमएलडी घरेलू सीवेज और 7.84 एमएलडी औद्योगिक अपशिष्ट का नदी में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से छोड़ा जाना यह संकेत देता है कि मौजूदा सीवेज ट्रीटमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर न तो वर्तमान जनसंख्या और न ही बढ़ते पर्यटन दबाव के अनुरूप है। यह प्रशासनिक विफलता का संकेत है, क्योंकि धार्मिक-पर्यटन शहर होने के बावजूद अपशिष्ट प्रबंधन को प्राथमिकता नहीं दी गई। फीकल कोलीफॉर्म का 1,100-2,900 एमपीएन/100 तक पहुंचना सीधे सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम को रेखांकित करता है, विशेष रूप से जब नदी का उपयोग धार्मिक स्नान के लिए होता है।
रामनगरी में पर्यटन का पर्यावरणीय प्रभाव अस्थायी न होकर दीर्घकालिक होता जा रहा है। दीपोत्सव, राम नवमी, परिक्रमा मेले, राम मंदिर से जुड़े विशिष्ट आयोजनों के दौरान ठोस कचरा और जैविक अपशिष्ट में तीव्र वृद्धि होती है। बीओडी और सीओडी में वृद्धि तथा आयोजन के बाद 15-20 प्रतिशत प्रदूषण बढ़ना यह दर्शाता है कि 'इवेंट-आधारित विकास' के लिए कोई प्रभावी पर्यावरणीय वहन क्षमता का विश्लेषण नहीं किया गया। यह विकास मॉडल अल्पकालिक आर्थिक लाभ को प्राथमिकता देता है, जबकि दीर्घकालिक पारिस्थितिक लागत की अनदेखी करता है।
जलीय पारिस्थितिकी पर प्रभाव अत्यंत चिंताजनक है। डीओ स्तर में गिरावट, एल्गल ब्लूम की वृद्धि और राइनेरिया बग का स्क्विज़िंग केवल 3.42 किमी तक सीमित, यह संकेत देता है कि नदी की स्व-शुद्धिकरण क्षमता कमजोर हो रही है। गंगेय डॉल्फिन, घड़ियाल और रोहू मछली जैसी संवेदनशील प्रजातियों का निवास स्थान नष्ट होना जैव विविधता ह्रास का स्पष्ट प्रमाण है। यह केवल प्रजातियों की संख्या में कमी नहीं, बल्कि पूरे खाद्य-जाल और पारिस्थितिक संतुलन के विघटन का संकेत है।
शहरीकरण और पर्यटन गतिविधियों से उत्पन्न शोर, कंपन और नौका यातायात को अक्सर नगण्य माना जाता है, जबकि यह जलीय जीवों के व्यवहार, प्रजनन और प्रवास पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है। यह दर्शाता है कि पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन में भौतिक-रासायनिक मानकों पर तो ध्यान दिया जाता है, लेकिन जैव-व्यवहारिक प्रभावों की अनदेखी होती है।मानव स्वास्थ्य और सामाजिक प्रभाव भी गंभीर हैं। जलजनित रोगों का खतरा तीर्थयात्रियों और स्थानीय निवासियों दोनों के लिए बढ़ रहा है। यद्यपि औसत डब्ल्यूक्यूआई 42.5 होने से उपचार के बाद पानी पीने योग्य माना जाता है, तीर्थ स्थलों पर उच्च प्रदूषण यह दर्शाता है कि 'औसत' आंकड़े वास्तविक जोखिम को छिपाते हैं। यह असमानता नीति-निर्माण में क्षेत्र-विशिष्ट हस्तक्षेप की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
समग्र रूप से देखा जाए तो अयोध्या का विकास मॉडल पर्यावरणीय स्थिरता के बजाय अनियंत्रित और अवसंरचनात्मक विस्तार पर केंद्रित हो रहा है, जो कि सरयू नदी के लिए अभिशाप साबित होगा। यदि सीवेज शोधन क्षमता में वृद्धि, ठोस कचरा प्रबंधन, राइनेरियन बफर पुनर्स्थापना और पर्यटन वहन क्षमता का वैज्ञानिक निर्धारण नहीं किया गया, तो सरयू नदी न केवल धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान खो सकती है, बल्कि एक जीवंत नदी से प्रदूषित नाले में परिवर्तित होने का खतरा भी उत्पन्न हो जाएगा।



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