-------------------------------------------------------

बीस लाख करोड़ के पैकेज में पर्यटन को ठेंगा 

डॉ प्रदीप श्रीवास्तव

वैश्विक महामारी से उपजे भयंकर आर्थिक संकट के निवारण हेतु भारत सरकार ने 'आत्म निर्भर भारत अभियान' के लिए बीस लाख (20,000000000000) करोड़ के आर्थिक पैकेज प्रदान किया है । जिसमे हर सेक्टर को राहत के नाम पर कुछ न कुछ आर्थिक सहायता दी गई है । लेकिन देश की अर्थ व्यवस्था को सर्वाधिक आर्थिक सहायता देने वाले पर्यटन उधोग को इस पैकेज में मिला "शून्य"का पैकेज । इससे पर्यटन  उद्योग  में मायूसी सी छाई है। आर्थिक पैकेज जारी करने के बाद वित्तमंत्री श्रीमती निर्मला सीता रमण ने कई चरणों में पत्रकार सम्मेलन कर हर क्षेत्र के बारे में जानकारी दी । अंतिम समय तक पर्यटन उद्योग  से जुड़े सभी सेक्टर के लोगों में इस बात की आस थी कि इस बार वित्त मंत्री जी जरूर कोई न कोई घोषणा इस क्षेत्र के लिए करेंगी । लेकिन अंतिम बार भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी ।
उल्लेखनीय है कि आर्थिक पैकेज की घोषणा के पूर्व वित्त मंत्रालय ने पर्यटन क्षेत्र से जुड़े सभी प्रमुख संगठनों जैसे FAITH,CII,IHHA,एवं FHTR के साथ बैठ कर विचार-विमर्श भी किया था। लेकिन इसके बावजूद उनके विचारों को इस आर्थिक पैकेज में शामिल ही नहीं किया गया।  इससे यह बात स्पष्ट होती है कि पर्यटन उद्योग के माध्यम से सरकार के सरकारी खजाने में राजस्व बढ़ाने वाले पर्यटन उद्योग को तज़रीह नहीं देना ही उचित समझा । जिसके चलते पर्यटन उद्योग  के विभिन्न सेक्टरों से जुड़े लोगों में काफी निराशा है। क्यों कि इस उद्योग से जुड़े लोगों को चिंता इस बात की सता रही है कि साठ दिनों से अधिक समय हो रहा है ,पर्यटन के नाम पर कोई भी यात्रा किसी ने नहीं की है । जिसके कारण इस उद्योग से जुड़े लोगों को खाने के लाले पड़ रहे हैं ,यदि यही हाल रहा तो अगले तीन चार महीनों में तो हालात बद से बद्तर हो जाएंगे। जब कि पर्यटन उद्योग एक ऐसा उद्योग है

जो हर वर्ग के लिए सबसे अधिक रोजगार उपलब्ध कराता है।
    पता हो कि इस संदर्भ में उद्योग से जुड़े लोगों ने सरकार से इस बात पर चर्चा भी की थी कि इस उद्योग से जुड़े लोगों का बिजली के बिलों को माफ किया जाय साथ ही जीएसटी में भी कटौती की जाए । राज्य करों को बाद में वापस करने की अनुमति दी जाए। उद्योग से जोड़े लोगों के वेतन भुगतान में सरकार सहायता करे , जिसके तहत बिना किसी ब्याज के लोन उद्योग से जुड़े लोगों को दी जाए । क्यों कि इस समय पूरी दुनिया के पर्यटन उद्योगों पर संकट के बादल उमड़-घुमड़ रहे हैं ,जिससे भारत भी अछूता नहीं है। अब तक ये कोरोना वायरस घरेलू यात्रा और पर्यटन उद्योग को हजारों करोड़ों का चपत लगा चुका है। यही कारण है कि सरकार ने इस महामारी के चलते सभी वीज़ा निलंबित कर दिये। भारतीय उद्योग परिसंघ  (सी.आई.आई.) के मुताबिक भारतीय पर्यटन उद्योग के लिए यह समय सबसे बुरे संकटों में से एक है । इस महामारी ने घरेलू पर्यटन उधयोग के साथ – साथ विदेश घूमने जाने वाले लोगों को भी अपनी चपेट में ले लिया है। इसी कारण घरेलू व विदेश पर्यटन उद्योग पर बुरा असर पड़ा है । जिसका प्रभाव इस उद्योग से जुड़े ,होटल,क्रूज,ट्रैवल एजेंट ,पर्यटन सेवा कंपनियाँ , रेस्तरां , थीम पार्क , विरासत स्थल एवं साहसिक पर्यटन उद्योग पर पड़ रहा है ।
   एक गैर सरकारी आंकड़े के मुताबिक पर्यटन उद्योग पर कोरोना का व्यापक असर पड़ा है । जिसके अनुसार अक्टूबर से मार्च के बीच भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या 60 से 65 प्रतिशत होती है,जिससे भारत के पर्यटन के खाते में 28 अरब डालर से अधिक राशि पहुँचती है। लेकिन बीते साल नवंबर में ,जब कोरोना के पैर फैलाने की खबर आने लगी तो उसके बाद से यात्रा टिकटों, होटल बुकिंग आदि का रद्दीकरण शुरू हो गया ,जिसके कारण मार्च माह तक रद्दीकरण का आंकड़ा 80 प्रतिशत के ऊपर पहुँच गया था,जो अब शून्य पर पहुँच चुका है। आज पूरी दुनिया कोरोना की चपेट में है,जिसके कारण वैश्विक कारोबार में काफी गिरावट आई। कोरोना के चलते दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन एवं अमेरिका के कारोबार में सुस्ती छा गई । जिसका गंभीर असर वैश्विक पर्यटन उद्योग पर पड़ा है। विश्व पर्यटन और पर्यटन परिषद (डब्ल्यू.टी.टी.सी.) के मुताबिक इस वैश्विक महामारी का सबसे अधिक असर चीनी पर्यटकों के खर्चे पर पड़ी है। यहाँ यह जानना जरूरी है कि चीनी पर्यटक सबसे अधिक खर्च कर के पर्यटन पर निकलते हैं। इससे ग्लोबल टूरिज़म इंडस्ट्री को 25 बिलियन अमेरिकी डालर (1.87 करोड़ ) से अधिक का नुकसान हुआ होगा?
     अगर हम वैश्विक परिपेक्ष्य में देखें तो अब तक सौ करोड़ बिलियन डालर का नुकसान (एक अनुमान के मुताबिक) हो चुका होगा। सबसे अधिक बुरा हाल उन देशों का है जो पूर्ण रूप से पर्यटन पर आधारित हैं, जैसे हांगकांग , मकाउ , थाइलैंड , कंबोडिया , फिलीपींस आदि । भारत का भी पर्यटन उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है , इसमें कोई दो राय नहीं है । या यूं कह सकते हैं कि भारतीय राजस्व में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पर्यटन उद्योग की कमर टूट सी गई है। भारतीय पर्यटन उद्योग को विदेशी पर्यटकों से काफी राजस्व की प्राप्ति होती है । पिछले कुछ दशकों में केंद्र व राज्यों की अर्थव्यवस्था के विकास में यह उद्योग एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में उभर कर आया है । सन 1951 में भारत आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या मात्र 17 हज़ार हुआ करती थी। जबकि आज सात मिलियम से कहीं अधिक है। वहीं दूसरी ओर आज भारत से विदेश जाने वालों की संख्या पंद्रह मिलियन से अधिक है। उनमें हिन्दी भाषी पर्यटकों की संख्या पचास प्रतिशत से अधिक है। इस समय देश की जो स्थिति दिख रही है , उससे तो नहीं लगता कि नवंबर-दिसंबर तक हालात में कोई सुधार हो पाएगा।  
 घूमना-फिरना यानी पर्यटन को सिर्फ मनोरंजन तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए,बल्कि इससे काफी ज्ञान वर्धक लाभ भी मिलता है। बचपन से हम पढ़ते आते हैं कि पहाड़ बहुत ऊंचे होते है ,वहाँ जंगल व ,खाइयाँ होती हैं , जंगलों में खतरनाक जानवर होते हैं। लेकिन जब हम सब पहाड़ पर जाते हें तो उन्हें नजदीक से देखते हैं, एक ओर हजारों फीट गहरी खाई तो दूसरी ओर सैकड़ो फीट ऊंचे-ऊंचे पेड़ ,जिन्हें हम स्पर्श भी कर सकते हैं। इस तरह का ज्ञान किताबों में नहीं मिलता। विश्व पर्यटन संगठन के अनुसार जो यात्रा के माध्यम से सामान्य मौसम में बाहर दूर-दराज जगहों पर घूमने जाते है , वह चाहे मनोरंजन के उद्देश्य से हो या फिर धार्मिक , आस्था या अन्य उद्देश्य से हो । जिसमें पर्यटक अपने आस-पास की दुनिया से वाकिफ तो होता ही है वहीं उसे नई जानकारियाँ  भी मिलती हैं। दुनिया भर के पर्यटक अपने मन में एक नई जिज्ञासा लिए भारत में ताजमहल हो या लखनऊ का ईमामबाड़ा ,खजुराहो के मंदिर हों या फिर बनारस के घाट देखने आते हैं । वहीं भारतीय पर्यटक मिस्र का पिरामिड हो या चीन की दीवार या फिर कंबोडिया के मंदिर देखने जरूर जाते हैं ।
सैर-सपाटे के लिए भारतीय पर्यटकों की पहली पसंद इटली ही है। अगर देखें तो भारतीय पर्यटकों की समूह पर्यटन यात्रा आम तौर पर लंदनसे शुरू हो कर रोममें जा कर खत्म होती हैं। इन दिनों (गर्मियों में) वैसे भी भारतीय पर्यटक अगर देश में घूमना –फिरना चाहते हें तो पहाड़ों की ओर भागते हैं। वहीं विदेश जाने वाले पर्यटकों को इटली व यूरोपीय देशों में घूमना अधिक पसंद होता है। लेकिन कोरोना के चलते यह सीजन तो चौपट हो ही गया ,जिसका सीधा असर पर्यटन उद्योग से जुड़े छोटे-मोटे रोजगारों पर पड़ा है , जिसकी भरपाई तो नहीं दिखती । पर्यटन स्थलों पर छोटे-मोटे काम करने वालों के सामने संकट के बादल उमड़-घुमड़ रहे हैं। गाइड व छोटे स्तर के होटल व्यवसाइयों पर तो मानो गाज़ सी गिर पड़ी है , लोग भुखमरी के शिकार हो रहे हैं। केंद्र व राज्य सरकार को इस ओर सोचने की बहुत जरूरत है ,नहीं तो आने वाले दिनों में पर्यटन रोजगार पर भरी असर पड़ेगा।